Friday, December 28, 2018

अंकुरित मूंग की दाल के 10 अद्भुत फायदे।

मूंग की दाल का सेवन आप सब ने किसी न किसी रूप में ज़रूर किया होगा। मूंग की दाल की कई रेसपी जैसे मूंग की दाल, मूंग सैंडविच, अंकुरित मूंग की दाल सलाद, मूंग दाल की खिचड़ी, मूंग दाल की बरिया, मूंग दाल का लड्डू और सबसे स्पेशल रेसपी मूंग दाल का हलवा आदि व्यंजनों को आप सब ने ज़रूर टेस्ट किया होगा। मूंग की दाल का उपयोग केवल व्यंजन बनाने के लिए नहीं बल्कि वज़न घटाने के लिए भी लोग इसका उपयोग करते है क्योंकि अंकुरित मूंग की दाल के सेवन से शरीर में कुल 30 कैलोरी और 1 ग्राम फ़ैट ही पहुंचता है।
अंकुरित मूंग दाल में कई पोषक तत्व जैसे मैग्‍नीशियम, कॉपर, फ़ोलेट, राइबोफ्लेविन, विटामिन, विटामिन सी, विटामिन बी, फ़ाइबर, पौटेशिय, कैल्शियम, फ़ास्फ़ोरस, मैग्नीशियम, आयरन, विटामिन बी -6, नियासिन, थायमिन और प्रोटीन आदि मौजूद होते है इसलिए इसका सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहद लाभकारी है।
*फ़ायदेमंद अंकुरित मूंग की दाल* 〰〰〰〰〰〰〰

*पोषक तत्वों से परिपूर्ण:-*
पोषक तत्वों से परिपूर्ण संतुलित आहार और उचित पोषक तत्वों को पाने के लिए नियमित अंकुरित मूंग की दाल का सेवन अवश्‍य करें क्योंकि यह शरीर में आवश्‍यक तत्‍वों की कमी हो पूरा कर शरीर को हृष्ट पुष्ट बनाती है। मूंग दाल की अंकुरण की अवस्था में बीजों में विटामिन सी, आयरन तथा फ़ास्फ़ोरस की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। इतना ही नहीं अंकुरण के बाद विभिन्न दालों में पाया जाने वाला स्टार्च, ग्लूकोज़ में तथा फ्राक्टोज़, माल्टोज़ में बदल जाता है। इससे इनका स्वाद तो बढ़ता ही है साथ ही वे सुपाच्य भी हो जाती हैं।
*रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं:-*
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने व बीमारियों से लड़ने के लिए नियमित मूंग की दाल का सेवन करें। यह शरीर को ताक़त प्रदान करती हैं। इसमें मौजूद एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-इंफ़्लामेट्री गुण शरीर की इम्‍यूनिटी पॉवर को बढ़ाते हैं।
*कब्‍ज़ में राहत:-*
कब्‍ज़ में राहत प्रदान करें अंकुरित मूंग की दाल में फ़ाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है। जो पाचन क्रिया को ठीक कर कब्ज़ से छुटकारा दिलाती है।
*ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करें:-*
ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करें अंकुरित मूंग की दाल में मौजूद पेप्टिसाइड बीपी को संतुलित और शरीर को फ़िट रखती है जिससे आप हेल्दी और एक्टिव बने रहते है।
*आयरन का अच्छा स्रोत:-*
आयरन का अच्छा स्रोत मूंग की दाल आयरन का एक अच्छा स्रोत है। एनीमिया के रोग से बचने के लिए व आयरन की कमी को दूर करने के लिए मूंग की दाल का भरपूर सेवन करें।
*वज़न घटाने में मददगार:-*
वज़न घटाने में मददगार अगर आप मोटापे से परेशान है और वज़न घटाना चाहते है तो अंकुरित मूंग की दाल का सेवन करें क्योंकि ये न सिर्फ़ आपकी कैलोरी घटाती है बल्कि आपको लंबे समय तक भूख भी नहीं लगने देती। इसलिए रात के खाने में आप चपाती के साथ एक कटोरी मूंग दाल खाएं जिससे आपको भरपूर पोषण भी मिलेगा।
*मूंग दाल के लाभ :*
*कब्ज़:-*
अगर आपको कब्ज़ हो जाएँ तो मूंग की दाल की खिचड़ी खाएं क्योंकि मूंग दाल की खिचड़ी खाने से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है। 2. किसी भी बीमारी के बाद शरीर बहुत कमज़ोर हो जाता है।तो इस कमजोर शरीर को हृष्ट पुष्ट बनाने के लिए नियमित मूंग की दाल का सेवन करें।
*दाद, खाज-खुजली:-*
अगर आप दाद, खाज-खुजली की समस्या से परेशान है तो मूंग की दाल को छिलके के साथ पीस कर पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को प्रभावित जगह पर लगा लें इससे बेहद आराम मिलेगा।
*त्वचा एवं बाल :-*
अंकुरित मूंग की दाल आपकी त्वचा से लेकर आपके बालों को निखारने में मदद करती हैं। अगर आप बाल झड़ने की समस्या से परेशान हैं तो आप अंकुरित दाल की एक कटोरी रोज़ सुबह नाश्‍ते में लें। ऐसा करने से आपके बालों को सही पोषण मिलेगा।
तो आज से ही अंकुरित मूंग की दाल का नियमित सेवन करें और रक्त अल्पता, हडि्डयों की बीमारियां, मानसिक तनाव, कब्ज़, अनिद्रा, बवासीर, मोटापा तथा पेट के कई अन्य रोगों से छुटकारा पाएं.
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Thursday, November 15, 2018

भारतीय स्वयं अपनी दुर्गति के लिए जिम्मेदार है ।

खेती बाड़ी छोड़ी , घर का पारिवारिक काम छोड़ा, दुकान छोड़ी,
शारीरिक श्रम से शर्म करी
समाजिक स्तर नौकरी करने वाली गुलामी में ऊंचा समझा

ब्राह्मण ने अध्यापन छोड़ा,
क्षत्रिय ने रक्षा हथियार
वैश्य समाज ने दुकान व्यापार
शूद्र वर्ण व्यवस्था जो कि एक कलाकार का समाज था उनको अंग्रेजो ने कानून के तहत काम छुड़ाया और अब हम शुद्ध देसी भोजन को तरसते है, अच्छे ज्ञान शिक्षा को तरसते हैं, व्यवस्था को तरसते हैं, सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंतित हैं

21 राज्यों में *जावेद हबीब के 300 शानदार एयरकंडीशन सैलून खुल गये* । और भारतीय हिंदु नाई दलित OBC बन के नौकरी खोज रहा है ।

26 राज्यो सहित 30 देशों में चमड़े के जूते और चप्पलों का कारोबार करने वाली 600 करोड़ की कंपनी मेट्रो शुज के मालिक फराह मलिक अरबपति बन गए ।

देश विदेश में चमड़ों और जूते चप्पलों का कारोबार करके मिर्जा ट्रेनर्स में मालिक मिर्जा बन्धु अरबपति हो गए ..

और साजिश के तरह कभी दलितों का एकाधिकार वाले चमड़े, जूते, चप्पलें, बार्बर शॉप आदि जो थे वो वामपंथीयो, मुस्लिमों और फर्जी अम्बेडकरवादियों के साजिश से कब दलितों के हाथ से निकलकर मुस्लिमों के हाथ मे चली गयी पता भी नहीं चला.....

एक समय खादिम शूज वाले बर्मन परिवार ने इनको अच्छी टक्कर दी थी लेकिन आफताब अंसारी ने उनका अपहरण कर लिया, करोड़ो की फिरौती वसूली गयी फिर उन्होंने दशकों तक विस्तार नही किया, अब कर रहे है जब इस मार्केट में एकाधिकार हो चुका है....

बैंकर माफिया और उसके पैसों से पैदा किए हुए नमाजवादियों व दलितवादी नेताओं ने हिन्दू नाई से कहा - ब्राह्मण जनसंख्या में इतने कम हैं, पर सबसे अधिक सत्ता के मजे यही ले रहे हैं, तुमको सदियों सदियों तक नाई बनाकर रखना चाहते हैं . . . मत करो ये काम . . . बच्चों को तो पढ़ाओ लिखाओ, सरकारी नौकरी दिलवाओ, और सुनो, जाति प्रमाण पत्र बनवा लो, काँग्रेस/सरकार तुमको *OBC में जोड़ देगी, आरक्षण दे देगी*, मौज करो, इन ब्राह्मणों पण्डितों के चक्कर में मत फँसो ।

हिन्दू नाई ने सोचा - *आरक्षण मिलेगा, सरकारी नौकरी मिलेगी, इसलिए दुकान बंद कर दी, शहर चला गया* । अपना बड़ा सा घर छोड़ा, किराए पर एक कमरे में गुजारा किया, बच्चों को गली के अंग्रेजी स्कूल में डाला, जब बच्चे *जॉनी जॉनी यस पापा गाते थे, हिन्दू नाई सोचता था, बच्चे कम से कम IAS* तो कर ही जाएँगे ।

उसने एक फैक्ट्री में 7000 में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली, जब जब खान्ग्रेसियों और नमाज़वादी नेताओं ने बुलाया, धरने प्रदर्शन आंदोलन में गया भी, *सरकारी नौकरी कितने नाईयों लुहारों बढ़ईयों धोबियों को मिल सकेगी, बेटे बेरोजगार* घूमने लगे तो घर में झगड़ा बढ़ने लगा । जो भी हो, 20 साल बीत गए, बच्चे अब भी बेरोजगार थे ।

हिन्दू नाई से रात को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी होती नहीं थी, नींद लग जाती थी, नौकरी छूट गयी ।, *हिन्दू नाई वापस गाँव लौट आया, उसने फिर से अपनी बाल काटने की दुकान खोलनी चाही, पास के कस्बे में जाकर देखा, जहाँ 20 साल पहले 2 सैलून थे*, वो भी हिन्दू नाईयों के, अब उसी कस्बे में 50 सैलून खुल चुके थे और सारे के सारे सैलून मुस्लिमों के थे ।

हिन्दू नाई ने रोजगार छोड़ा तो मुस्लिमों ने कब्ज़ा कर लिया ।

हिन्दू बढ़ई ने अपना काम छोड़ा तो मुस्लिमों ने बाजार पर कब्जा कर लिया ।

हिन्दू लुहार ने अपना काम छोड़ा
तो मुस्लिमों ने वेल्डिंग की दुकानें खोल कर पूरा बाजार कब्ज़ा लिया ।

हिन्दू धोबी ने सरकारी नौकरी के चक्कर में कपड़े धोने छोड़े, गाँव के घर घर से परिचय टूटा, नाते टूटे तो मुस्लिम ड्राई क्लीन और जीन्स की रंगाई में छा गए ।

हिन्दू SC ने जूते बनाने छोड़ दिए, तो आज अरबों रुपए का चमड़े माँस, चर्बी, हड्डी और सारा का सारा जूता बाजार मुस्लिमों के कब्जे में है ।

मुस्लिम OBC और SC/ST के पेट पर लात मार रहे हैं ।

पण्डितों का काम पूजा पाठ है, पुरोहिताई है, ये काम मुस्लिम कभी नहीं करेंगे, लिख लो ।

आरक्षण और सरकारी नौकरी के लालच में कितने लोगों को रोजगार मिला, *करोड़ों युवा मैकाले अंग्रेजी शिक्षा पद्धति सिस्टम में फंसकर एक डिग्री लेकर सड़क पर घूम रहे हैं* ।

हम हिन्दुओं के पारंपरिक रोजगार इतने बुरे थे क्या.....?

ये है काँग्रेसी/ वामपंथियों का कमाल..!

आंखें खोलें . . .
सत्य को पहचानें...
याद रखें ! न तो आप दलित है, न SC, ST, OBC और न ही General. आप केवल और केवल हिन्दू हैं हिन्दुस्तानी भारतीय हैं ।।

Thursday, October 25, 2018

शादी के बाद क्यों बढ़ जाता है महिलाओं का वजन?

शादी के पहले हर लड़की अपने आपको स्लीम ट्रीम देखने के लिए हर तरह के उपाय करती है जिससे उसका वजन ना बढ़े पर अक्सर आपने सुना होगा कि शादी हो जाने के बाद लड़कियों का वजन बढ़ने लगता है और लगातार बढ़ते वजन के चलते काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आखिर क्या कारण है जिससे शादी के बाद लड़कियों का वजन क्यों बढ़ जाता है। आइएं जानें…

स्ट्रेस – शादी के बाद कई महिलाओं के लिए नए माहोल में ढलना मुश्किल हो जाता है. इससे स्ट्रेस बढ़ता है और ज्यादा स्ट्रेस ईटिंग करने लगती है.

प्रेगनेंसी – ज्यादातर कपल्स शादी के 1-2 साल के अंदर फॅमिली प्लान कर लेते हैं. ज्यादातर महिलाएं प्रेगनेंसी के दौरान बढे हुए बजन को बच्चे के जन्म के बाद भी कम करने की कोशिश नही करतीं.

सोशल प्रेशर – शादी के पहले अच्छा दिखने के लिए करीबी टोकते हैं, तो महिलाएं अपना ध्यान रखती है. शादी के बाद यह प्रेशर ख़त्म हो जाता है, तो महिलाएं अपनी फिटनेस का ख्याल रखना छोड़ देती है.

ज्यादा टी.वी. देखना – शादी के बाद नई फॅमिली के साथ अक्सर बैठकर बातें करना या देर तक टीवी देखना कॉमन है. खाना खाकर ज्यादा देर तक बैठे रहने के कारण वजन बढ़ता है.

उम्र का असर – आजकल लोग ज्यादातर 28-30 की उम्र में सेटल होने के बाद शादी करते हैं. स्टडीज कहती है कि 30 के बाद बॉडी का मेटाबोलिज्म रेट कम हो जाता है जिससे वजन बढ़ने लगता है.

बाहर का खाना – न्यूली वेड्स शुरुआत में हर शाम या वीकेंड पर बाहर जाते हैं और हाई कैलोरी फ़ूड खाते हैं. इससे कमर के आसपास फैट जमा होने लगता है.

प्राथमिकता में बदलाव – शादी के बाद महिलाओं की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. ज्यादातर पति और दुसरे फॅमिली मेम्बेर्स के अनुसार रूटीन बन जाता हैं. खुद पर ध्यान नही दे पातीं और वजन लगता है.

नींद – शादी के बाद ज्यादातर महिलाओं का स्लीपिंग टाइम और पैटर्न बदल जाता है. कई बार नींद पूरी नही होती कम सोने के कारण वजन बढ़ने लगता है.

लापरवाही – शादी के पहले महिलाएं अपने लुक्स को लेकर सजग रहती हैं और एक्सरसाइज करती हैं. लेकिन बाद में बिजी लाइफ के कारण फिटनेस का ख्याल रखना मुश्किल होने लगता है.

हार्मोनल चेंजेस – शादी के बाद की बदली हुई लाइफस्टाइल के कारण बॉडी में कई हार्मोनल चंजेस होते हैं. ये वजन बढाने के लिए जिम्मेदार होते हैं.
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वजन घटाने में मदद करेंगे ये फ़ूड –
1- रोज एक छोटा टुकड़ा अदरक चुसे या खाने से पहले एक छोटा चम्मच अदरक के रस में जरा सा काला नमक मिलाकर पिए.
2- खाने में ज्यादा मात्रा में मिर्च शामिल करें इसमें काप्सीसन नमक तत्व होता है जो बॉडी फैट तेजी से घटाता है 3- रोज सुबह खाली पेट एक एक छोटा चम्मच एलोवेरा और आंवले का जूस मिलाकर पिए, उसके बाद एक गिलास पानी पी लें.
4- रोज सुबह खाली पेट कच्चा टमाटर खाएं जिससे भूख कंट्रोल करने और वजन घटाने में मदद मिलेगी.
5- रात में एक गिलास गर्म पानी में 3 चम्मच सोंफ डालकर रख दें, सुबह इस पानी को छानकर पी लें.
6- रोज सुबह खाली पेट एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर खाकर गुनगुना पानी पिए.

Wednesday, September 26, 2018

चौदह वर्ष के वनवास।

#चौदह_वर्ष_के_वनवास_के_दौरान_प्रभु_श्रीराम_कहाँ__कहाँ_रहे_थे

प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया।

जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में;

1. श्रृंगवेरपुर: - राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था।

2. सिंगरौर: - इलाहाबाद से लगभग 35.2 किमी उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित ‘सिंगरौर’ नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे ‘तीर्थस्थल’ कहा गया है।

3. कुरई: - इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे।

इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था।

4. चित्रकूट के घाट पर: - कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। यहां गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। यहां स्थित स्मारकों में शामिल हैं, वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप इत्यादि।

चित्रकूट में श्रीराम के दुर्लभ प्रमाण,,चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।

5. अत्रि ऋषि का आश्रम: - चित्रकूट के पास ही सतना मध्यप्रदेश स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। वहां श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया। अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा हैं। अत्रि ऋषि की पत्नी का नाम है अनुसूइया, जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी।

अत्रि पत्नी अनुसूइया के तपोबल से ही भगीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रविष्ट हुई और ‘मंदाकिनी’ नाम से प्रसिद्ध हुई। ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने अनसूइया के सतीत्व की परीक्षा ली थी, लेकिन तीनों को उन्होंने अपने तपोबल से बालक बना दिया था। तब तीनों देवियों की प्रार्थना के बाद ही तीनों देवता बाल रूप से मुक्त हो पाए थे। फिर तीनों देवताओं के वरदान से उन्हें एक पुत्र मिला, जो थे महायोगी ‘दत्तात्रेय’। अत्रि ऋषि के दूसरे पुत्र का नाम था ‘दुर्वासा’। दुर्वासा ऋषि को कौन नहीं जानता?

अत्रि के आश्रम के आस-पास राक्षसों का समूह रहता था। अत्रि, उनके भक्तगण व माता अनुसूइया उन राक्षसों से भयभीत रहते थे। भगवान श्रीराम ने उन राक्षसों का वध किया। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका वर्णन मिलता है।

प्रातःकाल जब राम आश्रम से विदा होने लगे तो अत्रि ऋषि उन्हें विदा करते हुए बोले, ‘हे राघव! इन वनों में भयंकर राक्षस तथा सर्प निवास करते हैं, जो मनुष्यों को नाना प्रकार के कष्ट देते हैं। इनके कारण अनेक तपस्वियों को असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ा है। मैं चाहता हूं, तुम इनका विनाश करके तपस्वियों की रक्षा करो।’

राम ने महर्षि की आज्ञा को शिरोधार्य कर उपद्रवी राक्षसों तथा मनुष्य का प्राणांत करने वाले भयानक सर्पों को नष्ट करने का वचन देखर सीता तथा लक्ष्मण के साथ आगे के लिए प्रस्थान किया।

6. दंडकारण्य: - अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया। यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। ‘अत्रि-आश्रम’ से ‘दंडकारण्य’ आरंभ हो जाता है। छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों पर राम के नाना और कुछ पर बाणासुर का राज्य था। यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहीं पर राम ने अपना वनवास काटा था। यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे।

‘अत्रि-आश्रम’ से भगवान राम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां ‘रामवन’ हैं। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए। बाद में सतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं। उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि।

शहडोल (अमरकंटक): - राम वहां से आधुनिक जबलपुर, शहडोल (अमरकंटक) गए होंगे। शहडोल से पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम ‘रामगढ़’ है। 30 फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे ‘सीता कुंड’ कहा जाता है। यहां वशिष्ठ गुफा है। दो गुफाओं के नाम ‘लक्ष्मण बोंगरा’ और ‘सीता बोंगरा’ हैं। शहडोल से दक्षिण-पूर्व की ओर बिलासपुर के आसपास छत्तीसगढ़ है।

वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।

दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा। यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसका इन्द्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोइंदारी (गोदावरी) तट तक तथा अलीपुर, पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक राज्य था। वर्तमान बस्तर की ‘बारसूर’ नामक समृद्ध नगर की नींव बाणासुर ने डाली, जो इन्द्रावती नदी के तट पर था। यहीं पर उसने ग्राम देवी कोयतर मां की बेटी माता माय (खेरमाय) की स्थापना की। बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां वर्तमान में गोंड जाति निवास करती है तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है।

इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे।

स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

दंडकारण्य क्षे‍त्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक आश्रम था।

7. पंचवटी, नासिक: - दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों, तालाबों, पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया।

उस काल में पंचवटी जनस्थान या दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 32 किमी दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है।

अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष थे- पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था।

यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। यहां पर मारीच वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि। यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है।

मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।

8. सीताहरण का स्थान सर्वतीर्थ: - नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है।

जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।

9.पर्णशाला, भद्राचलम: - पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को ‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ भी कहते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था।

इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।

10. सीता की खोज तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र: - सर्वतीर्थ जहां जटायु का वध हुआ था, वह स्थान सीता की खोज का प्रथम स्थान था। उसके बाद श्रीराम-लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।

11. शबरी का आश्रम पम्पा सरोवर: - तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है।

पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे ‘पम्बा’ नाम से भी जाना जाता है। ‘पम्पा’ तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथ ‘रामायण’ में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है।

12. हनुमान से भेंट: - मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया।

ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था।

ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है। पास की पहाड़ी को ‘मतंग पर्वत’ माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था।

13. कोडीकरई: - हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके राम और उनकी सेना ने समुद्र की ओर प्रस्थान किया। श्रीराम ने पहले अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया।

तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है।

लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।

14.रामेश्‍वरम: - रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।

15.धनुषकोडी: : - वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया।

छेदुकराई तथा रामेश्वरम के इर्द-गिर्द इस घटना से संबंधित अनेक स्मृतिचिह्न अभी भी मौजूद हैं। नाविक रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक स्थान से यात्रियों को रामसेतु के अवशेषों को दिखाने ले जाते हैं।

धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।

इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

दरअसल, यहां एक पुल डूबा पड़ा है। 1860 में इसकी स्पष्ट पहचान हुई और इसे हटाने के कई प्रयास किए गए। अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहने लगे तो स्थानीय लोगों में भी यह नाम प्रचलित हो गया। अंग्रेजों ने कभी इस पुल को क्षतिग्रस्त नहीं किया लेकिन आजाद भारत में पहले रेल ट्रैक निर्माण के चक्कर में बाद में बंदरगाह बनाने के चलते इस पुल को क्षतिग्रस्त किया गया।

30मील लंबा और सवा मील चौड़ा यह रामसेतु 5 से 30 फुट तक पानी में डूबा है। श्रीलंका सरकार इस डूबे हुए पुल (पम्बन से मन्नार) के ऊपर भू-मार्ग का निर्माण कराना चाहती है जबकि भारत सरकार नौवहन हेतु उसे तोड़ना चाहती है। इस कार्य को भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट का नाम दिया है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्रीजयसूर्या ने इस डूबे हुए रामसेतु पर भारत और श्रीलंका के बीच भू-मार्ग का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा था।

16.’नुवारा एलिया’ पर्वत श्रृंखला: --वाल्मिकी रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। ‘नुवारा एलिया’ पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।

श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं।

श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1 -2)। श्रुति स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं।