Sunday, December 3, 2017

शहीद खुदीराम बोस।

अंग्रेजों से देश को आजाद कराने की खातिर, मात्र 19 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ जाने वाले, शहीद खुदीराम बोस के जन्म दिवस (3-दिसंबर) पर कोटि कोटि नमन
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खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के, बहुवैनी नामक गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस तथा माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था. बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े.

स्कूल छोडने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए, इसके अलावा वे ‘युगांतर’ नाम की क्रांतिकारी संस्था से भी जुड़े रहे. 1905 में बंगाल के विभाजन (बंग - भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में भी उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया. लोगों को जागरूक करने के लिए क्रान्ति कारियों के पत्रक बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.

फरवरी 1906 में मिदनापुर में लगी एक प्रदर्शनी में, क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियाँ बांटने का काम किया. एक पुलिस वाले ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, तो वे उसे घूसा जड़ कर भाग लिए. 28 फरवरी 1906 को खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिये गये लेकिन वह कैद से भाग निकले.

अप्रैल में वह फिर से पकड़े गये लेकिन कोई गवाह न मिलने के कारण 16 मई 1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया. 6 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परन्तु गवर्नर बच गया. सन 1908 में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया.

बंग भंग के बिरोध में हुए आन्दोलन के समय, कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने, आन्दोलनकारियों को बहुत ही क्रूर दण्ड दिये थे. इसके पुस्कारस्वरूप उसे पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा गया. ‘युगान्तर’ समिति की एक गुप्त बैठक में "न्यायधीश किंग्जफोर्ड" को मारने का निश्चय हुआ.

इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार का चयन किया गया. मुजफ्फरपुर आकर इन दोनों ने सबसे पहले किंग्जफोर्ड के बँगले की निगरानी की और उसके आने जाने के समय और बग्घी की पहेचान की. 30 अप्रैल 1908 को ये दोनों नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोडागाडी से उसके आने की राह देखने लगे.

रात साढे आठ बजे क्लब से किंग्जफोर्ड की बग्घी आते हुए देखकर खुदीराम ने, बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंका. लेकिन उस समय उस बग्घी में किंग्जफोर्ड के बजाय दो यूरोपियन महिलाए बैठी थी, उनके परखच्चे उड़ गए. अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया.

अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गये. 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी. उस समय उनकी उम्र लगभग 19 बर्ष थी. अलौकिक धैर्य का परिचय देते खुदीराम अपने हाथ में भगवद्गीता हाथ में लेकर, खुशी - खुशी फाँसी चढ गये .

इस बम काण्ड से घबराकर, किंग्जफोर्ड ने नौकरी छोड दी. लेकिन कुछ ही दिनों बाद उस अत्याचारी की स्वाभाविक मौत हो गई. फाँसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसकी किनारी पर खुदीराम बोस लिखा होता था. बंगाल के लोक गायक आज भी उनके गीत गाते हैं.

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