Sunday, December 31, 2017

देश में चल रहे गुप्त षड्यंत्र को समझे.

*देश में चल रहे गुप्त षड्यंत्र को समझने के लिए कृपया पांच मिनट हमें दीजिए*
*लेख से पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ।*
*हमारे देश में एक महान वैज्ञानिक हुए हैं प्रो. श्री जगदीश चन्द्र बोस। भारत को और हम भारत वासियों को उन पर बहुत गर्व है। इन्होने सबसे पहले अपने शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि मानव की तरह पेड़ पौधों में भी भावनाएं होती हैं। वे भी हमारी तरह हँसते खिलखिलाते और रोते हैं। उन्हें भी सुख दुःख का अनुभव होता है। और श्री बोस के इस अनुसंधान की तरह इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।*

*श्री बोस ने शोध के लिये कुछ गमले खरीदे और उनमे कुछ पौधे लगाए। अब इन्होने गमलों को दो भागों में बांटकर आधे घर के एक कोने में तथा शेष को किसी अन्य कोने में रख दिया। दोनों को नियमित रूप से पानी दिया, खाद डाली। किन्तु एक भाग को श्री बोस रोज़ गालियाँ देते कि तुम बेकार हो, निकम्मे हो, बदसूरत हो, किसी काम के नहीं हो, तुम धरती पर बोझ हो, तुम्हे तो मर जाना चाहिए आदि आदि। और दूसरे भाग को रोज़ प्यार से पुचकारते, उनकी तारीफ़ करते, उनके सम्मान में गाना गाते। मित्रों देखने से यह घटना साधारण सी लगती है। किन्तु इसका प्रभाव यह हुआ कि जिन पौधों को श्री बोस ने गालियाँ दी वे मुरझा गए और जिनकी तारीफ़ की वे खिले खिले रहे, पुष्प भी अच्छे दिए।*
* इस साधारण सी घटना से बोस ने यह सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से गालियाँ खाने के बाद पेड़ पौधे नष्ट हो गए। अर्थात उनमे भी भावनाएं हैं।*
*जब निर्जीव से दिखने वाले सजीव पेड़ पौधों पर अपमान का इतना दुष्प्रभाव पड़ता है तो मनुष्य सजीव सदेह का क्या होता होगा??~~*
*वही होता है जो आज हमारे भारत देश का हो रहा है।*
*500 -700 वर्षों से हमें यही सिखाया पढाया जा रहा है कि तुम बेकार हो, खराब हो, तुम जंगली हो, तुम तो हमेशा लड़ते रहते हो, तुम्हारे अन्दर सभ्यता नहीं है, तुम्हारी कोई संस्कृती नहीं है, तुम्हारा कोई दर्शन नहीं है, तुम्हारे पास कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, तुम्हारे पास कोई ज्ञान विज्ञान नहीं है आदि आदि। मित्रों अंग्रेजों के एक एक अधिकारी भारत आते गए और भारत व भारत वासियों को कोसते गए। अंग्र जों से पहले ये गालियाँ हमें फ्रांसीसी देते थे, और फ्रांसीसियों से पहले ये गालियाँ हमें पुर्तगालियों ने दीं। इसी क्रम में लॉर्ड मैकॉले का भी भारत में आगमन हुआ। किन्तु मैकॉले की नीति कुछ अलग थी। उसका विचार था कि एक एक अंग्रेज़ अधिकारी भारत वासियों को कब तक कोसता रहेगा? कुछ ऐसी परमानेंट व्यवस्था करनी होगी कि हमेशा भारत वासी खुद को नीचा ही देखें और हीन भावना से ग्रसित रहें।*
*इसलिए उसने जो व्यवस्था दी उसका नाम रखा Education System. सारा सिस्टम उसने ऐसा रचा कि भारत वासियों को केवल वह सब कुछ पढ़ाया जाए जिससे वे हमेशा गुलाम ही रहें। और उन्हें अपने धर्म संस्कृती से घृणा हो जाए। इस शिक्षा में हमें यहाँ तक पढ़ाया कि भारत वासी सदियों से गौमांस का भक्षण कर रहे हैं। अब आप ही सोचे यदि भारत वासी सदियों से गाय का मांस खाते थे तो आज के हिन्दू ऐसा क्यों नहीं करते? और इनके द्वारा दी गयी सबसे गंदी गाली यह है कि हम भारत वासी आर्य बाहर से आये थे। आर्यों ने भारत के मूल द्रविड़ों पर आक्रमण करके उन्हें दक्षिण तक खदेड़ दिया और सम्पूर्ण भारत पर अपना कब्ज़ा ज़मा लिया। और हमारे देश के वामपंथी चिन्तक आज भी इसे सच साबित करने के प्रयास में लगे हैं।*
*इतिहास में हमें यही पढ़ाया गया कि कैसे एक राजा ने दूसरे राजा पर आक्रमण किया। इतिहास में केवल राजा ही राजा हैं प्रजा नदारद है, हमारे ऋषि मुनि नदारद हैं। और राजाओं की भी बुराइयां ही हैं अच्छाइयां गायब हैं। आप जरा सोचे कि अगर इतिहास में केवल युद्ध ही हुए तो भारत तो हज़ार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता। और राजा भी कौन कौन से गजनी, तुगलक, ऐबक, लोदी, तैमूर, बाबर, अकबर, सिकंदर जो कि भारतीय थे ही नहीं। राजा विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान गायब हैं। इनका ज़िक्र तो इनके आक्रान्ता के सम्बन्ध में आता है। जैसे सिकंदर की कहानी में चन्द्रगुप्त का नाम है। चन्द्रगुप्त का कोई इतिहास नहीं पढ़ाया गया। और यह सब आज तक हमारे पाठ्यक्रमों में है।*
*इसी प्रकार अर्थशास्त्र का विषय है। आज भी अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले बड़े बड़े विद्वान् विदेशी अर्थशास्त्रियों को ही पढ़ते हैं। भारत का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री चाणक्य तो कही है ही नहीं। उनका एक भी सूत्र किसी स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता। जबकि उनसे बड़ा अर्थशास्त्री तो पूरी दुनिया में कोई नहीं हुआ।*
*दर्शन शास्त्र में भी हमें भुला दिया गया। आज भी बड़े बड़े दर्शन शास्त्री अरस्तु, सुकरात, देकार्ते को ही पढ़ रहे हैं जिनका दर्शन भारत के अनुसार जीरो है। अरस्तु और सुकरात का तो ये कहना था कि स्त्री के शरीर में आत्मा नहीं होती वह किसी वस्तु के समान ही है, जिसे जब चाहा बदला जा सकता है। आपको पता होगा १९५० तक अमरीका और यूरोप के देशों में स्त्री को वोट देने का अधिकार नहीं था। आज से २०-२२ साल पहले तक अमरीका और यूरोप में स्त्री को बैंक अकाउंट खोलने का अधिकार नहीं था। साथ ही साथ अदालत में तीन स्त्रियों की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती थी।*
*इसी कारण वहां सैकड़ों वर्षों तक नारी मुक्ति आन्दोलन चला तब कहीं जाकर आज वहां स्त्रियों को कुछ अधिकार मिले हैं। जबकि भारत में नारी को सम्मान का दर्जा दिया गया। हमारे भारत में किसी विवाहित स्त्री को श्रीमति कहते हैं। कितना सुन्दर शब्द हैं श्रीमती जिसमे दो देवियों का निवास है। श्री होती है लक्ष्मी और मति यानी बुद्धि अर्थात सरस्वती। हम औरत में लक्ष्मी और सरस्वती का निवास मानते हैं। किन्तु फिर भी हमारे प्राचीन आचार्य दर्शन शास्त्र से गायब हैं। हमारा दर्शन तो यह कहता है कि पुरुष को सभी शक्तियां अपनी माँ के गर्भ से मिलती हैं और हम शिक्षा ले रहे हैं उस आदमी की जो यह मानता है कि नारी में आत्मा ही नहीं है।*
*चिकत्सा के क्षेत्र में महर्षि चरक, शुषुक, धन्वन्तरी, शारंगधर, पातंजलि सब गायब हैं और पता नहीं कौन कौन से विदेशी डॉक्टर के नाम हमें रटाये जाते हैं। आयुर्वेद जो न केवल चिकित्सा शास्त्र है अपितु जीवन शास्त्र है वह आज पता नहीं चिकित्सा क्षेत्र में कौनसे पायदान पर आता है????*
*बच्चों को स्कूल में गणित में घटाना सिखाते समय जो प्रश्न दिया जाता है वह कुछ इस प्रकार होता है----*
*पापा ने तुम्हे दस रुपये दिए, जिसमे से पांच रुपये की तुमने चॉकलेट खा ली तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे????*
*यानी बच्चों को घटाना सिखाते समय चॉकलेट कम्पनी का उपभोगता बनाया जा रहा है। हमारी अपनी शिक्षा पद्धति में यदि घटाना सिखाया जाता तो प्रश्न कुछ इस प्रकार का होता---*
*पिताजी ने तुम्हे दस रुपये दिए जिसमे से पांच रुपये तुमने किसी गरीब लाचार को दान कर दिए तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे????*
*जब बच्चा बार बार इस प्रकार के सवालों के हल ढूंढेगा तो उसके दिमाग में कभी न कभी यह प्रश्न जरूर आएगा कि दान क्या होता है, दान क्यों करना चाहिए, दान किसे करना चाहिए आदि आदि? इस प्रकार बच्चे को दान का महत्त्व पता चलेगा। किन्तु चॉकलेट खरीदते समय बच्चा यही सोचेगा कि चॉकलेट कौनसी खरीदूं कैडबरी या नेस्ले???*
*अर्थ साफ़ है यह शिक्षा पद्धति हमें नागरिक नहीं बना रही बल्कि किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का उपभोगता बना रही है। और उच्च शिक्षा के द्वारा हमें किसी विदेशी यूनिवर्सिटी का उपभोगता बनाया जा रहा है या किसी विदेशी कम्पनी का नौकर।*
*मुझे इंजीनियरिंग के विद्यार्थी ने ये कहा कि मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में कभी यह नहीं सीखा कि कैसे मै अपने तकनीकी ज्ञान से भारत के कुछ काम आ सकूँ, बल्कि यह सीखा कि कैसे मै किसी Multi National Company में नौकरी पा सकूँ, या किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिला ले सकूँ।*
*तो मित्रों सदियों से हमें वही सब पढ़ाया गया कि हम कितने अज्ञानी हैं, हमें तो कुछ आता जाता ही नहीं था, ये तो भला हो अंग्रेजों का कि इन्होने हमें ज्ञान दिया, हमें आगे बढ़ना सिखाया आदि आदि। यही विचार ले कर लॉर्ड मैकॉले भारत आया जिसे तो यह विश्वास था कि स्त्री में आत्मा नहीं होती और वह हमें शिक्षा देने चल पड़ा। हम भारत वासी जो यह मानते हैं कि नारी में देवी का वास है उसे मैकॉले की इस विनाशकारी शिक्षा की क्या आवश्यकता है???*
*हमारे प्राचीन ऋषियों ने तो यह कहा था कि दुनिया में सबसे पवित्र नारी है और पुरुष में पवित्रता इसलिए आती है क्यों कि उसने नारी के गर्भ से जन्म लिया है। जो शिक्षा मुझे मेरी माँ से जोडती है उस शिक्षा को छोड़कर मुझे एक ऐसी शिक्षा अपनानी पड़ी जिसे मेरी माँ समझती भी नहीं। हम तो हमारे देश को भी भारत माता कहते हैं। किन्तु हमें उस व्यक्ति की शिक्षा को अपनाना पड़ा जो यह मानता है कि मेरी माँ में आत्मा ही नहीं है। और एक ऐसी शिक्षा पद्धति जो हमें नारी को पब, डिस्को और बीयर बार में ले जाना सिखा रही है, क्यों????*
*आज़ादी से पहले यदि यह सब चलता तो हम मानते भी कि ये अंग्रेजों की नीति है, किन्तु आज क्यों हम इस शिक्षा को ढो रहे हैं जो हमें हमारे भारत वासी होने पर ही हीन भावना से ग्रसित कर रही है? आखिर कब तक चलेगा यह सब?*
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भारत के ये 11 अजब गज़ब गाँव।

भारत के ये 11 अजब गज़ब गाँव जहाँ आप एक बार जरूर जाना चाहेंगे। 

  
1. एक गाँव जहां दूध दही मुफ्त मिलता है.
यहां के लोग कभी दूध या उससे बनने वाली चीज़ो को बेचते नही हैं बल्कि उन लोगों को मुफ्त में दे देते हैं जिनके पास गएँ ये भैंसे नहीं हैं धोकड़ा गुजरात के कक्ष में बसा ऐसा ही अनोखा गाँव है आज जब इंसानियत खो सी गयी है लोग किसी को पानी तक नही पूछते श्वेत क्रांति के लिए प्रसिद्ध ये गाँव दूध दही ऐसे ही बाँट देता है, यहां पर रहने वाले एक पुजारी बताते हैं की उन्हें महीने में करीब 7,500 रुपए का दूध गाँव से मुफ्त में मिलता है।
2. इस गाँव में आज भी राम राज्य है.
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के नेवासा तालुके में शनि शिन्ग्नापुर भारत का एक ऐसा गाँव है जहाँ लोगों के घर में एक भी दरवाजा नही है यहाँ तक की लोगों की दुकानों में भी दरवाजे नही हैं, यहाँ पर कोई भी अपनी बहुमूल्य चीजों को ताले – चाबी में बंद करके नहीं रखता फिर भी गाँव में आज – तक कभी कोई चोरी नही हुई |
3. एक अनोखा गाँव जहाँ हर कोई संस्कृत बोलता हैं.
आज के समय में हमारे देश की राष्ट्र भाषा हिंदी भी पहचान के संकट से जूझ रही हैं , कर्नाटक के शिमोगा शहर के कुछ ही दूरी पर एक गाँव ऐसा बसा हैं जहाँ ग्रामवासी केवल संस्कृत में ही बात करते हैं। शिमोगा शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर मुत्तुरु अपनी विशिष्ठ पहचान को लेकर चर्चा में हैं। तुंग नदी के किनारे बसे इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है।
करीब पांच सौ परिवारों वाले इस गांव में प्रवेश करते ही “भवत: नाम किम्?” (आपका नाम क्या है?) पूछा जाता है “हैलो” के स्थान पर “हरि ओम्” और “कैसे हो” के स्थान पर “कथा अस्ति?” आदि के द्वारा ही वार्तालाप होता हैं। बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं- सभी बहुत ही सहज रूप से संस्कृत में बात करते हैं। भाषा पर किसी धर्म और समाज का अधिकार नहीं होता तभी तो गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवार के लोग भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोलते हैं जैसे दूसरे लोग।
गाँव की विशेषता हैं कि गाँव की मातृभाषा संस्कृत हैं और काम चाहे कोई भी हो संस्कृत ही बोली जाती हैं जैसे इस गांव के बच्चे क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए भी संस्कृत में ही बातें करते हैं। गांव में संस्कृत में बोधवाक्य लिखा नजर आता है। “मार्गे स्वच्छता विराजते। ग्रामे सुजना: विराजते।” अर्थात् सड़क पर स्वच्छता होने से यह पता चलता है कि गाँव में अच्छे लोग रहते हैं। कुछ घरों में लिखा रहता है कि आप यहां संस्कृत में बात कर कर सकते हैं। इस गांव में बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में होती है
4. एक गांव जो हर साल कमाता है 1 अरब रुपए
यूपी का एक गांव अपनी एक खासियत की वजह से पूरे देश में पहचाना जाता है। आप शायद अभी तक इस गांव की पहचान से दूर रहे हों, लेकिन देश के कोने-कोने में इस गांव ने अपने झंडे गाड़ दिए हैं।
अमरोहा जनपद के जोया विकास खंड क्षेत्र का ये छोटा सा गांव है सलारपुर खालसा। 3500 की आबादी वाले इस गांव का नाम पूरे देश में छाया है और इसका कारण है टमाटर। गांव में टमाटर की खेती बड़े पैमाने पर होती है और 17 साल में टमाटर आसपास के गांवों जमापुर, सूदनपुर, अंबेडकरनगर में भी छा गया है।
देश का शायद ही कोई कोना होगा, जहां पर सलारपुर खालसा की जमीन पर पैदा हुआ टमाटर न जाता हो। गांव में 17 साल से चल रही टमाटर की खेती का क्षेत्रफल फैलता ही जा रहा है और अब मुरादाबाद मंडल में सबसे ज्यादा टमाटर की खेती इसी गांव में होती है। कारोबार की बात करें, तो पांच माह में यहां 60 करोड़ का कारोबार होता है।
जनपद में 1200 हेक्टेयर में होने वाली टमाटर की खेती में इन चार गांवों में ही अकेले 1000 हेक्टेयर में खेती होती है। जिसके चलते यह गांव मुरादाबाद मंडल में भी अव्वल नंबर पर है। जबकि सूबे में भी टमाटर खेती में आगे रहने वाली जगहों में इस गांव का नाम शामिल है।
इस साल की बात करें, तो प्रदेश में डेढ़ क्विंटल टमाटर बीज की बिक्री हुई थी। जिसमें अकेले सलारपुर खालसा में ही 80 किलो बीज बिका था।
5. ये है जुड़वों का गाँव, रहते है 350 से ज्यादा जुड़वाँ.
केरल के मलप्पुरम जिले में स्तिथ कोडिन्ही गाँव (Kodihni Village)  को जुड़वों के गाँव (Twins Village) के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर वर्तमान में करीब 350 जुड़वा जोड़े रहते है जिनमे नवजात शिशु से लेकर 65 साल के बुजुर्ग तक शामिल है। विशव स्तर पर हर 1000 बच्चो पर 4 जुड़वाँ पैदा होते है, एशिया में तो यह औसत 4  से भी कम है। लेकिन कोडिन्ही में हर 1000 बच्चों पर 45 बच्चे जुड़वा पैदा होते है। हालांकि यह औसत पुरे विशव में दूसरे नंबर पर , लेकिन एशिया में पहले नंबर पर आता है।  विशव में पहला नंबर नाइज़ीरिआ के इग्बो-ओरा को प्राप्त है जहाँ यह औसत 145 है। कोडिन्ही गाँव एक मुस्लिम बहुल गाँव है जिसकी आबादी करीब 2000 है। इस गाँव में घर, स्कूल, बाज़ार हर जगह हमशक्ल नज़र आते है।
6. एक गाँव जिसे कहते है भगवान का अपना बगीचा.
जहाँ एक और सफाई के मामले में हमारे अधिकांश गाँवो, कस्बों और शहरों की हालत बहुत खराब है वही यह एक सुखद आश्चर्य की बात है की एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गाँव भी हमारे देश भारत है। यह है मेघालय का मावल्यान्नॉंग गांव जिसे की भगवान का अपना बगीचा (God’s Own Garden) के नाम से भी जाना जाता है। सफाई के साथ साथ यह गाँव शिक्षा में भी अवल्ल है।  यहाँ की साक्षरता दर 100 फीसदी है, यानी यहां के सभी लोग पढ़े-लिखे हैं। इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं।
खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट का यह गांव मेघालय के शिलॉंन्ग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर है। साल 2014 की गणना के अनुसार, यहां 95 परिवार रहते हैं। यहां सुपारी की खेती आजीविका का मुख्य साधन है। यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं।
7. एक श्राप के कारण 170 सालों से हैं वीरान – रात को रहता है भूत प्रेतों का डेरा ये कल्पना है
हमारे देश भारत के कई शहर अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओ को समेटे हुए है ऐसी ही एक घटना हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा(Kuldhara) गाँव कि, यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं।कुलधरा(Kuldhara) गाँव के हज़ारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे  और जाते जाते श्राप दे गए थे कि यहाँ फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा।
8. इस गांव में कुछ भी छुआ तो लगता है 1000 रुपए का जुर्माना.
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के अति दुर्गम इलाके में स्तिथ है मलाणा गाँव। इसे आप भारत का सबसे रहस्यमयी गाँव कह सकते है। यहाँ के निवासी खुद को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते है। यहां पर भारतीय क़ानून नहीं चलते है यहाँ की अपनी संसद है जो सारे फैसले करती है। मलाणा भारत का इकलौता गांव है जहाँ मुग़ल सम्राट अकबर की पूजा की जाती है।
हिमाचल के मलाणा गांव में लगे नोटिस बोर्ड।
कुल्लू के मलाणा गांव में यदि किसी बाहरी व्यक्ति ने किसी चीज़ को छुआ तो जुर्माना देना पड़ता है। जुर्माने की रकम 1000 रुपए से 2500 रुपए तक कुछ भी हो सकती है।
अपनी विचित्र परंपराओं लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण पहचाने जाने वाले इस गांव में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इनके रुकने की व्यवस्था इस गांव में नहीं है। पर्यटक गांव के बाहर टेंट में रहते हैं। अगर इस गांव में किसी ने मकान-दुकान या यहां के किसी निवासी को छू (टच) लिया तो यहां के लोग उस व्यक्ति से एक हजार रुपए वसूलते हैं।
ऐसा नहीं हैं कि यहां के निवासी यहां आने वाले लोगों से जबरिया वसूली करते हों। मलाणा के लोगों ने यहां हर जगह नोटिस बोर्ड लगा रखे हैं। इन नोटिस बोर्ड पर साफ-साफ चेतावनी लिखी गई है। गांव के लोग बाहरी लोगों पर हर पल निगाह रखते हैं, जरा सी लापरवाही भी यहां आने वालों पर भारी पड़ जाती है।
मलाणा गांव में कुछ दुकानें भी हैं। इन पर गांव के लोग तो आसानी से सामान खरीद सकते हैं, पर बाहरी लोग दुकान में न जा सकते हैं न दुकान छू सकते हैं। बाहरी ग्राहकों के दुकान के बाहर से ही खड़े होकर सामान मांगना पड़ता है। दुकानदार पहले सामान की कीमत बताते हैं। रुपए दुकान के बाहर रखवाने के बाद सामन भी बाहर रख देते हैं।
9. यह गाँव कहलाता है ‘मिनी लंदन’.
झारखंड की राजधानी रांची से उत्तर-पश्चिम में करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित एक कस्बा गांव है मैक्लुस्कीगंज। एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाई गई दुनिया की इस बस्ती को मिनी लंदन भी कहा जाता है।
घनघोर जंगलों और आदिवासी गांवों के बीच सन् 1933 में कोलोनाइजेशन सोसायटी ऑफ इंडिया ने मैकलुस्कीगंज को बसाया था। 1930 के दशक में रातू महाराज से ली गई लीज की 10 हजार एकड़ जमीन पर अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की नामक एक एंग्लो इंडियन व्यवसायी ने इसकी नींव रखी थी। चामा, रामदागादो, केदल, दुली, कोनका, मायापुर, महुलिया, हेसाल और लपरा जैसे गांवों वाला यह इलाका 365 बंगलों के साथ पहचान पाता है जिसमें कभी एंग्लो-इंडियन लोग आबाद थे। पश्चिमी संस्कृति के रंग-ढंग और गोरे लोगों की उपस्थिति इसे लंदन का सा रूप देती तो इसे लोग मिनी लंदन कहने लगे।
मैकलुस्की के पिता आइरिश थे और रेल की नौकरी में रहे थे। नौकरी के दौरान बनारस के एक ब्राह्मण परिवार की लड़की से उन्हें प्यार हो गया। समाज के विरोध के बावजूद दोनों ने शादी की। ऐसे में मैकलुस्की बचपन से ही एंग्लो-इंडियन समुदाय की छटपटाहट देखते आए थे। अपने समुदाय के लिए कुछ कर गुजरने का सपना शुरू से उनके मन में था। वे बंगाल विधान परिषद के मेंबर बने और कोलकाता में रियल एस्टेट का कारोबार भी खूब ढंग से चलाया।कोलकाता में प्रॉपर्टी डीलिंग के पेशे से जुड़ा टिमोथी जब इस इलाके में आया तो यहां की आबोहवा ने उसे मोहित कर लिया। यहां के गांवों में आम, जामुन, करंज, सेमल, कदंब, महुआ, भेलवा, सखुआ और परास के मंजर, फूल या फलों से सदाबहार पेड़ उसे कुछ इस कदर भाए कि उसने भारत के एंग्लो-इंडियन परिवारों के लिए एक अपना ही चमन विकसित करने की ठान ली।
1930 के दशक में साइमन कमीशन की रिपोर्ट आई जिसमें एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रति अंग्रेज सरकार ने किसी भी तरह की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया था। पूरे एंग्लो-इंडियन समुदाय के सामने खड़े इस संकट को देखते हुए मैकलुस्की ने तय किया कि वह समुदाय के लिए एक गांव इसी भारत में बनाएंगे। बाद ऐसा ही हुआ। कोलकाता और अन्य दूसरे महानगरों में रहने वाले कई धनी एंग्लो-इंडियन परिवारों ने मैकलुस्कीगंज में डेरा जमाया, जमीनें खरीदीं और आकर्षक बंगले बनवाकर यहीं रहने लगे।
इंसानों की तरह मैकलुस्कीगंज को भी कभी बुरे दिन देखने पड़े थे। यहां के लोग उस दौर को भी याद करते हैं जब एक के बाद एक एंग्लो-इंडियन परिवार ये जगह छोड़ते चले गए। कुछ 20-25 परिवार रह गए, बाकी ने शहर खाली कर दिया। इसके बाद तो खाली बंगलों के कारण भूतों का शहर बन गया था मैकलुस्कीगंज।
लेकिन, और अब यह दौर है जब गिने-चुने परिवार मैकलुस्कीगंज को आबाद करने में जुटे हैं। यहां कई हाई प्रोफाइल स्कूल खुल गए हैं, जिनमें पड़ने के लिए दूर-दूर से छात्र आ रहे हैं। पक्की सड़कें बनी हैं, जरूरत के सामान की कई दुकानें भी खुल गई हैं। एक के बाद कई स्कूल खुल गए हैं। साथ ही बस्ती की अधिकतर गलियों या बंगलों में छात्रावास होने के साइनबोर्ड भी मिलेंगे। ये सब एक नए मैकलुस्कीगंज की ओर मिनी लंदन को ले जा रहे हैं।
10. एक गाँव जहाँ छत पर रखी पानी की टंकियों से होती है घरो की पहचान.
यह कहानी है पंजाब के जालंधर शहर के एक गांव उप्पलां की। इस गाँव में अब लोगों की पहचान उनके घरों पर बनी पानी की टंकियों से होती है। अब आप सोच रहे होंगे की पानी की टंकियों में ऐसी क्या विशेषता है तो हम आपको बता दे की यहाँ के मकानो की छतो पर आम वाटर टैंक नहीं है, बल्कि यहाँ पर शिप, हवाईजहाज़, घोडा, गुलाब, कार, बस आदि अनेकों आकर की टंकिया है।
इस गांव के अधिकतर लोग पैसा कमाने लिए विदेशों में रहते है। गांव में खास तौर पर एनआरआईज की कोठियां में छत पर इस तरह की टंकिया रखी है। अब कोठी पर रखी जाने वाली टंकियो से उसकी पहचानी जा रही हैं। नामी परिवार अपने घरों पर तरह तरह की टंकियां बनवा रहे हैं। कोई गुलाब का फूल बना खुशहाली का संकेत देता है तो कोई घोड़ा बनाकर रुआबदार परिवार का संदेश देता है। कोई शेर बनाकर अपनी बहादुरी जाहिर करता है तो कोई बाज बनाकर अपनी पहचान को दमदार रूप से प्रस्तुत करता है।
तरसेम सिंह उप्पल जब 70 साल पहले हांगकांग गए थे तो उन्होंने सफर शिप से किया था। अपने बेटों को अपनी पहली यात्रा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा था कि हम भी अपने घर पर शिप बनवाएंगे। 1995 में यह शिप बनाई गई।
82 साल के गुरदेव सिंह द्वारा बनाया गया बब्बर शेर भी कई सालों तक चर्चा का विषय बना रहा। क्यों जो गुरदेव सिंह ने शेर पर खुद की मूरत बनाकर बिठा दी थी। कहा जाता है कि ऐसे करते ही गांव में लोग इकट्‌ठा होना शुरू हो गए। कहा गया कि शेर पर तो शेरां वाली माता ही बैठ सकती है। आनन फानन में मूरत हटा ली गई। शेर की मूरत वैसे की वैसी ही है। हटाई गई गुरदेव सिंह की मूरत अब भी कोठी में पड़ी है।
11. इसे कहते है मंदिरों का गाँव और गुप्त काशी
झारखंड के दुमका जिले में शिकारीपाड़ा के पास बसे एक छोटे से गांव ” मलूटी” में आप जिधर नज़र दौड़ाएंगे आपको प्राचीन मंदिर नज़र आएंगे। मंदिरों की बड़ी संख्या होने के कारण इस क्षेत्र को गुप्त काशी और मंदिरों का गाँव भी कहा जाता है। इस गांव का राजा कभी एक किसान हुआ करते था। उसके वंशजों ने यहां 108 भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया।
ये मंदिर बाज बसंत राजवंशों के काल में बनाए गए थे।  शुरूआत में कुल 108 मंदिर थे, लेकिन संरक्षण के आभाव में अब सिर्फ 72 मंदिर ही रह गए हैं। इन मंदिरों का निर्माण 1720 से लेकर 1840 के मध्य हुआ था। इन मंदिरों का निर्माण सुप्रसिद्व चाला रीति से की गयी है। ये छोटे-छोटे लाल सुर्ख ईटों से निर्मित हैं और इनकी ऊंचाई 15 फीट से लेकर 60 फीट तक हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर रामायण-महाभारत के दृश्यों का चित्रण भी बेहद खूबसूरती से किया गया है।
मलूटी पशुओं की बली के लिए भी जाना जाता है। यहां काली पूजा के दिन एक भैंस और एक भेड़ सहित करीब 100 बकरियों की बली दी जाती है। हालांकि पशु कार्यकर्ता समूह अक्सर यहां पशु बली का विरोध करते रहते हैं। जहां तक बात है मंदिरों के संरक्षण की तो बिहार के पुरातत्व विभाग ने 1984 में गांव को पुरातात्विक प्रांगण के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी। इसके तहत मंदिरों का संरक्षण कार्य शुरू किया गया था और आज पूरा गांव पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण पर्यटक यहां रात में रुकने से घबराते हैं।
मलूटी गांव में इतने सारे मंदिर होने के पीछे एक रोचक कहानी है। यहां के राजा महल बनाने की बजाए मंदिर बनाना पसंद करते थे और राजाओं में अच्‍छे से अच्‍छा मंदिर बनाने की होड़ सी लग गई। परिणाम स्‍वरूप यहां हर जगह खूबसूरत मंदिर ही मंदिर बन गए और यह गांव मंदिर के गांव के रूप में जाना जाने लगा। मलूटी के मंदिरों की यह खासियत है कि ये अलग-अलग समूहों में निर्मित हैं। भगवान भोले शंकर के मंदिरों के अतिरिक्त यहां दुर्गा, काली, धर्मराज, मनसा, विष्णु आदि देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त यहां मौलिक्षा माता का भी मंदिर है, जिनकी मान्यता जाग्रत शाक्त देवी के रूप में है।
यह गांव सबसे पहले ननकार राजवंश के समय में प्रकाश में आया था। उसके बाद गौर के सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह (1495–1525) ने इस गांव को बाज बसंत रॉय को इनाम में दे दिया था। राजा बाज बसंत शुरुआत में एक अनाथ किसान थे। उनके नाम के आगे बाज शब्‍द कैसे लगा इसके पीछे एक अनोखी कहानी है। एक बार की बात है ज‍ब सुल्तान अलाउद्दीन की बेगम का पालतू पक्षी बाज उड़ गया और बाज को उड़ता देख गरीब किसान बसंत ने उसे पकड़कर रानी को वापस लौटा दिया। बसंत के इस काम से खुश होकर सुल्तान ने उन्‍हें मलूटी गांव इनाम में दे दिया और बसंत राजा बाज बसंत के नाम से पहचानें जाने लगें

किडनी का सिकुड़ना का इलाज।

दोस्तों किडनी फेलियर का एक सबसे बड़ा कारन है किडनी का सिकुड़ना। अगर किडनी सिकुड़ जाए तो क्या करें.
जब हमारी किडनी सिकुड़ जाती है तो किडनी की छोटी रचना जिसे हम नेफ्रॉन्स कहते है जो फ़िल्टर का कम करती है ये नेफ्रान्स दब जाते है और उनका फंक्शन ठीक से नहीं हो पता जिससे किडनी फ़िल्टर भी ठीक से नहीं हो कर पाती और वही बिषैला पदार्थ हमारे ब्लड में शरीर में जाने लगता है और Creatinine, urea ये सब ब्लड में बढ़ जाते है।
ऐसे मरीज जिनकी किडनी सिकुड़ गयी है और डॉक्टर ने बोल दिया है की इसका कोई इलाज नहीं है किडनी ट्रांस्प्लांट के आलावा वो मरीज निराश न हो। उनके लिए विशेष आयुर्वेदिक इलाज बता रहें हैं आयुर्वेदिक
जिन मरीजों की किडनी सिकुड़ गयी हो और डॉक्टर उनको किडनी ट्रांसप्लांट ही एक मात्र विकल्प बता रहें हों ऐसे मरीजो को करना क्या है के “मकोय” यह एक पौधा होता है जो पूरे भारत में पाया जाता है.
संस्कृत में इसको काकमाची, असमिया में पीचकटी, गुजरती में पीलूडी, बंगाली में काकमाची, गुडकमाई, तमिल में मन्टटकल्ली, तेलुगु में गजूचेट्टू, नेपाली में परे गोलभेरा, जंगली बिही, काकमाची, काली गेडी, पंजाबी में काकमाच, मराठी में कमोनी, काकमाची, मेको, मलयालम में क्रीन्टाकली कहते हैं.
इसका वानस्पतिक नाम Solanum americanum Mill है. इंग्लिश में इसको Common nightshade कहते हैं.
फल छोटे छोटे होते है कुछ लोग इसे खाते भी है. इसका पूरा पौधा ले लीजिये इसको अच्छे से धुलाई कर के इसका रस निकाल लें, इस मकोय के रस को 20 ml दिन में दो बार पीना है तीन महीने तक लगातार.
3 महीने बाद सोनोग्राफी करवा के देखे किडनी के सिकुड़ने में यह बहुत ही लाभकारी है।
विशेष – मकोय की सब्जी भी बना कर खायी जाती है. इसके फल भी खाए जाते हैं. इसका अर्क भी आता है. जिस भी प्रकार से किडनी के रोगी इसका सेवन करें तो उनको लाभ होगा.

Thursday, December 28, 2017

56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है...???

भगवान को लगाए जाने वाले भोग
की बड़ी महिमा है |
इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे
छप्पन भोग कहा जाता है |
यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी,
पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म
होता है |
अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान
को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे
कई रोचक कथाएं हैं |
ऐसा भी कहा जाता है
कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर
भोजन कराती थी | अर्थात्...बालकृष्ण आठ बार
भोजन करते थे |
जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत
को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक
भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया |
आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र
की वर्षा बंद हो गई है,
सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर
निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन
करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार
सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और
मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ. भगवान के
प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए
सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन
और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56
व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया |
गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग...
श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह
तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया,
अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस
मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप
में प्राप्त हों |
श्रीकृष्ण ने
उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी |
व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के
उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन
भोग का आयोजन किया |
छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां...
ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान
श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर
विराजते हैं |
उस कमल की तीन परतें होती हैं...
प्रथम परत में "आठ",
दूसरी में "सोलह"
और
तीसरी में "बत्तीस पंखुड़िया" होती हैं |
प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में
भगवान विराजते हैं |
इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है |
56 संख्या का यही अर्थ है |
-:::: छप्पन भोग इस प्रकार है ::::-
1. भक्त (भात),
2. सूप (दाल),
3. प्रलेह (चटनी),
4. सदिका (कढ़ी),
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),
6. सिखरिणी (सिखरन),
7. अवलेह (शरबत),
8. बालका (बाटी),
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),
11. बटक (बड़ा),
12. मधु शीर्षक (मठरी),
13. फेणिका (फेनी),
14. परिष्टïश्च (पूरी),
15. शतपत्र (खजला),
16. सधिद्रक (घेवर),
17. चक्राम (मालपुआ),
18. चिल्डिका (चोला),
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),
20. धृतपूर (मेसू),
21. वायुपूर (रसगुल्ला),
22. चन्द्रकला (पगी हुई),
23. दधि (महारायता),
24. स्थूली (थूली),
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),
26. खंड मंडल (खुरमा),
27. गोधूम (दलिया),
28. परिखा,
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),
30. दधिरूप (बिलसारू),
31. मोदक (लड्डू),
32. शाक (साग),
33. सौधान (अधानौ अचार),
34. मंडका (मोठ),
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही),
37. गोघृत,
38. हैयंगपीनम (मक्खन),
39. मंडूरी (मलाई),
40. कूपिका (रबड़ी),
41. पर्पट (पापड़),
42. शक्तिका (सीरा),
43. लसिका (लस्सी),
44. सुवत,
45. संघाय (मोहन),
46. सुफला (सुपारी),
47. सिता (इलायची),
48. फल,
49. तांबूल,
50. मोहन भोग,
51. लवण,
52. कषाय,
53. मधुर,
54. तिक्त,
55. कटु,
56. अम्ल.
|| जय श्री कृष्णा
🚩🚩🚩🚩🇮🇳🚩🚩🚩🚩

📜अपनी भारत की संस्कृति
को पहचाने.
ज्यादा से ज्यादा
लोगो तक पहुचाये. खासकर अपने बच्चो को बताए क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा..
राधे राधे

Wednesday, December 27, 2017

जीएम सरसो का विरोध क्यों नही हो रहा?

जीएम सरसों में
1. Streptomyces hygroscopicus,
और
2. Bacillus amyloliquifacians

नामक बैक्टीरिया मिलाया गया है।

इन दोनों के बारे में आप गूगल पर और रिसर्च कर सकते हैं।

पहले चक्र में यह मधुमक्खियों की प्रजाति को नष्ट करना आरम्भ कर देगा।

मधुमक्खियों की प्रजनन शक्ति नष्ट हो जाएगी जिससे मधुमक्खियों की परागण पद्धति की समाप्ति होगी और फल तथा फूलों का निर्माण अगले 40-50वर्ष में समाप्त हो जाएगा।

यह सृष्टि चक्र का नियम है कि यदि मधुमक्खी समाप्त होगी तो इंसान 15 वर्ष में ही मृत्यु के कगार पर होगा।

उसके उपरांत आपको पूर्ण रूपेण जीएम फलों पर निर्भर होना पड़ेगा।

दूसरे चक्र में यह मूल रूप से मनुष्यों की प्रजनन शक्ति को क्षीण करेगा। नपुंसकता के लक्षण बढ़ेंगे अप्रत्याशित दृष्टि से।

(फिर डॉक्टरों से दवाई ली जाएगी नपुंसकता निवारण की।

अब जो भक्त और अंधभक्त मुंह में कुछ न कुछ जमाये बैठे हैं... वह इस सड़कार का नही अपितु अपने परिवार का, अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में विचार करें।

भाई  मधुमक्खियों की वजह से pollination ( संभोग जैसा) होता है.. जिससे फल लगेंगे..

ये पौधों की life cycle है, ये खत्म तो सब कुछ खत्म।

इसे परागण क्रिया कहते हैं।

शरीर का immunity system powerful करने हेतु भी, पराग पोलीसेकेराइड रोग से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में सुधार, Macro Phase की Phagocytic गतिविधि को सक्रिय कर सकते हैं।

प्रकृति में जितने भी फल, फूल और बाकी सिस्टम हैं वे सब इन्हीं की देन हैं। अगर पॉलीनेशन में पराग के कण एक पौधे से दूसरे पौधे तक न ले जाएं तो कुछ भी नहीं पनपने वाला।

इसी सड़कार ने पूर्व में बीटी-कॉटन के बीज को भारत में खेती हेतु पारित किया था ।

बीटी-कॉटन के वह बीज भी #Monsanto और #DuPont जैसी मनुष्य और प्रकृति विरोधी कम्पनियो द्वारा बनाये गए।

आज मधुमक्खियां बीटी-कॉटन के खेतों के पास भी नहीं फटक रहीं। और उनकी संख्या में भी भारी कमी पाई गई है।

वह दिन दूर नही जब प्राकृतिक फल केवल किताबों की बातें हो जाएंगी और दुनिया को #Monsanto #DU-Pont आदि मनुष्य और प्रकृति विरोधी कम्पनियो द्वारा उत्पन्न अप्राकॄतिक फल और सब्जियों पर निर्भर रहकर जीवन गुजारना पड़ेगा।

भेड़ कौन है और भेड़िया कौन है?
भेड़ की खाल में भेड़िया कौन है?

यह सब अनुमान लगाना आप सबका कार्य है।

आपको प्रकृति ने जो प्राकृतिक सरसों उपयोग हेतु दी है... वही आपके हेतु वरदान है।

कृपया #Monsanto की प्रयोगशालाओं में बने अप्राकॄतिक और बैक्टीरिया युक्त जीएम सरसों को भारत में आने से रोकिये।

न रोक पाये तो इतिहास साक्षी बनेगा कि धर्म की बकैती केने वाले ही अधर्म स्थापित करवा गए।

भावी पीढ़ियों के शत्रु आप स्वयं हैं... जब तक आप चुप हैं।

कोलेस्ट्रॉल। सच क्या, झूठ क्या।

कोलेस्ट्रॉल : विश्व का सबसे बड़ा मेडिकल घोटाला -

कृपया आप अपने परिवार को स्वस्थ रखने के लिए कोलेस्ट्राल नियंत्रण से सम्बंधित मेरे इस लेख को ध्यान से पढ़ें तथा सम्पूर्ण मानव समाज के भले के लिए इसका अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करें.
कोलेस्ट्रॉल का नाम सुनते ही अधिकाँश लोगो की हृदय गति बढ़ जाती है।
सभी डॉक्टर, वैद्य, मीडिया, प्रचार माध्यम आदि आपको आजतक समझाते आये हैं कि कोलेस्ट्रॉल बढऩे का सीधा मतलब है हृदय रोग होना; या जीवन पर खतरा होना.
कोलेस्ट्रॉल एक मुलायम चिपचिपा पदार्थ होता है जो रक्त शिराओं एवं कोशिकाओं में पाया जाता है।
सच्चाई यह है कि तंत्रिका कोशिकाओं के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए कोलेस्ट्राल हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक है।
एस्ट्रोजन, टेस्टोस्टेरोन, और corticosteroids सहित सभी स्टेरॉयड हार्मोन के निर्माण के लिए भी कोलेस्ट्रॉल ही मुख्य पदार्थ है।
अतः हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल की उपस्थिति बहुत जरुरी है.
तथा यह हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
इसलिए शरीर में उच्च कोलेस्ट्रॉल का होना हमारे लीवर के तंदुरुस्त होने की निशानी है.
हमारे शरीर की जरुरत हेतु 80 प्रतिशत कोलेस्ट्रॉल का निर्माण लीवर करता है और बाकी मात्र 20 प्रतिशत कोलेस्ट्रॉल हम भोजन से प्राप्त होता है।
फिर भी यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि WHO तथा अमेरिकन स्वास्थ्य अधिकारियों ने 1970 के दशक के बाद से कोलेस्ट्राल के हृदय रोग और धमनियों में जमा होने से बचने के लिए उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले पूर्ण वसा वाले डेयरी उत्पादों और अच्छी वसा वाले खाद्य पदार्थों से दूर रहने के लिए चेतावनी दी और इस तरह से कई तरह के पोषक तत्वों को खतरनाक खाद्य पदार्थ की सूची में डाल दिया था.
अब अमेरिकी सरकार ने कोलेस्ट्रॉल को आधिकारिक तौर पर या खतरनाक खाद्य पदार्थ की सूची से हटा दिया है.
इस तरह से अमेरिकी सरकार ने कोलेस्ट्राल को किसी भी द्रष्टि से खतरनाक नहीं मानकर अपनी चालीस साल पुरानी चेतावनी पर यू-टर्न ले लिया है.
अमेरिका हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ स्टीवन Nissen ने कहा है कि
"यह कोलेस्ट्राल पर अभी दिया गया निर्देश वास्तव में दशकों चल रहे गलत फैसले को अंततः सही किया जाना है."
उन्होंने कहा कि हमारे रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर में 20 प्रतिशत ही हमारे भोजन से मिलता है, बाकी सभी कोलेस्ट्राल तो हमारे खुद के लीवर द्वारा ही बनाया जाता है. 
इस तरह से तो हम सभी पागल हैं जो कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के लिए अपना बहुत ज्यादा पैसा और समय लगा रहे थे।
डॉ जार्ज वी मान एमडी एसोसिएट डायरेक्टर का कहना है कि -
संतृप्त आहार, वसा और ज्यादा कोलेस्ट्रॉल कोरोनरी ब्लाकिंग या हृदय रोग का कारण नहीं है. यह एक मिथक या भ्रान्ति या विश्व की सबसे बड़ी धोखे                          बाजी है।
अतः किसी भी रूप में ज्यादा कोलेस्ट्रॉल हृदय रोग का कारण नहीं है.
पिछले 40 वर्षों से अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत से कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं की बिक्री से अमेरिकी औषध उद्योग को 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की कमाई या रू 100000000000000/- (रू. दस लाख करोड़) से ज्यादा की कमाई हुई है. पूरे विश्व में डॉक्टरों, जांच एजेंसियों, हॉस्पिटल आदि को तो आजतक इससे सैकड़ों गुना ज्यादा फायदा हुआ होगा.
परिणामस्वरुप अकेले अमेरिका में दस लाख से ज्यादा नागरिकों की मौत का कारण भी कोलेस्ट्राल कम करने की दवाइयां बनी.
अतः कोलेस्ट्राल नियंत्रण के नाम पर पिछले 40 साल से किया जा रहा यह एक खतरनाक षड्यंत्र है, जिससे अब आपको खुद को और अपने परिवार को बचाना ही है.
कोलेस्ट्राल नियंत्रण के नाम पर की जा रही मेडिकल धोखाधड़ी की सच्चाई इस तरह की है –
1. दिल के दौरे के अधिकाँश मरीजों में सामान्य कोलेस्ट्रॉल स्तर मिला है।
2. खराब कोलेस्ट्रॉल सरीखी कोई बात नहीं होती है.
3. कोलेस्ट्राल दिल का दौरा पड़ने का कारण नहीं है.
4. एलडीएल या एचडीएल की तरह कोई भी कोलेस्ट्राल ख़राब नहीं होता है.
5. कोलेस्ट्रॉल का स्तर हमारे शरीर में अधिक होने से हमे पता चलता है कि हमारा लीवर सही काम कर रहा है.
6. विचार करें कि कोलेस्ट्रॉल अगर कही भी जमता होता है, तो हमारे मानव शरीर में फ़ैली खून की असंख्य नलियों में किसी और जगह पर क्यों नहीं जमता है?
7. यहाँ तक कि कोलेस्ट्राल हमाऋ किडनी, पेन्क्रियाज, मूत्राशय, पित्ताशय तथा मस्तिष्क की बाल से भी बारीक नसों में भी नहीं जमता है,
8. तो फिर ऐसा कैसे और क्यों हो सकता है कि कोलेस्ट्रॉल दिल को जाने वाली महा धमनियों में जम कर उन्हें ब्लॉक करे?
9. कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का प्रयास हर अस्पताल और मेडिकल क्लिनिक में होता है, यह एक बहुत, बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है।
10. कोलेस्ट्राल नियंत्रण की सभी दवाइयां लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए नहीं बनायी गयी हैं. इनसे हमारे ह्रदय को गंभीर नुक्सान होता है.
11. दवा कम्पनियों के अत्यधिक लाभ के लिए कोलेस्ट्राल की इस सच्चाई को त्याग दिया है।
12. हमारे शरीर के दैनिक चयापचय के लिए कोलेस्ट्रॉल के 950 मिलीग्राम की जरूरत है
13. हमारा लीवर ही कोलेस्ट्राल का मुख्य उत्पादक है।
14. कोलेस्ट्रॉल का केवल 20% भाग हम खाना खाने के द्वारा प्राप्त कर रहे हैं.
15. अगर वसा या कोलेस्ट्राल की मात्रा हमारे भोजन में कम है, तो इसका मतलब यह है कि हम अपने शरीर में कोलेस्ट्राल के 950 मिलीग्राम के स्तर को बनाए रखने के लिए अपने लीवर की ओवरलोडिंग कर उसे कमजोर रहे हैं,
16. कोलेस्ट्राल नियंत्रण की Statin दवायें वास्तव में हृदय रोग बढ़ाती हैं.
17. कोलेस्ट्राल नियंत्रण के नाम पर ली जा रही सभी दवाइयों से भी हम अपने लीवर की  ओवरलोडिंग कर उसे कमजोर ही करते हैं.
18. परिणामस्वरुप कोलेस्ट्राल नियंत्रण के नाम पर ह्रदय रोग के अधिकाँश मरीज लीवर फेल होने से ही मरते हैं. 
19. फिर भी खून की मुख्य धमनियों में कोलेस्ट्राल जमने का मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या, दूषित खानपान, टेंशन, एक्सरसाइज का अभाव आदि है. अतः खुश रहें और संयमित जीवन व्यतीत करें.                               
20. अतः कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण के नाम पर किये जा रहे सभी उपचारों को हम विश्व इतिहास में आज तक का सबसे बड़ा मेडिकल घोटाला कह सकते हैं.
21. अब आप अपने कोलेस्ट्रॉल के नियंत्रण को करने की कोशिश बंद कर सकते हैं.

• कायाकल्प करें, स्वस्थ रहें, स्वस्थ करें -

आज की इस भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में आपके पास अपने खुद के स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने का भी समय नहीं रहता है.
लेकिन जब इस लापरवाही की आपको बहुत बड़ी सजा बीमारी के रूप में मिलती है, तब तक बहुत देर हो जाती है.
लगभग रोज ही मेरे स्वास्थ्य सम्बन्धी लेख आते हैं और बहुत से लोग रोज ही मुझ से अपनी बीमारी का उपचार लेते रहते हैं और मेरे से मोबाइल पर भी डिटेल में अपनी बीमारी के बारे में बताते हैं, ताकि मैं उचित निदान कर दवाई दे सकूँ.
फिर भी अक्सर मुझे उन्हें बताना पड़ता है कि किसी भी बीमारी के पूर्ण रूप से ख़त्म होने के लिए सिर्फ दवाई से ही काम नहीं चलता है और उन्हें हमेशा स्वस्थ रहने के लिए उन बताई गयी होम्योपैथी की दवाइयों के साथ ही नियमित रूप से अपने पूरे परिवार व बच्चों के साथ मेरे बताये अनुसार कायाकल्प कर अपने शरीर की ओवरहालिंग और रिचार्जिंग भी करते रहना चाहिए.
इसलिए आप सभी से भी मैं पुनः निवेदन करता हूँ कि आप भी सिर्फ दस मिनिट का समय अपने स्वास्थ्य को दें और पूरे परिवार व बच्चों के साथ अपने शरीर की नियमित रूप से ओवरहालिंग और रिचार्जिंग हमेशा करते रहें और खान-पान और एक्सरसाइज भी मेरे बताये अनुसार करते रहे, ताकि आप और आपके परिवार को कभी भी कैंसर, डायबटीज, ह्रदय रोग, लिवर रोग, किडनी फेल्यर, टी.बी., फेफड़े के रोग, डिप्रेशन, चर्म रोग आदि किसी भी तरह की गंभीर बीमारी नहीं होगी.

* काउंसलिंग -

किसी भी तरह की बीमारी, परेशानी, लाचारी, कठिनाई की काउंसलिंग तथा उचित समाधान हेतु कृपया आप उम्र, शिक्षा, बचपन से आज तक की बीमारी या परेशानी की हिस्ट्री, पसंद, नापसंद आदि जानकारी के साथ फेसबुक के muktiya के मेसेज बाक्स में लिखें या निम्न सूत्रों पर संपर्क करें
डॉ. स्वतंत्र जैन
अध्यक्ष : मुक्तियाँ विश्व शांति, सुख, सम्रद्धि ट्रस्ट
अध्यक्ष : अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ, इंदौर 
मोब. : 07777870145
इमेल : drswatantrajain@gmail.com
वेब साईट : http://www.muktiya.com/
फेसबुक : https://www.facebook.com/drswatantrajain

Tuesday, December 26, 2017

अमीर आयुर्वेद व गरीब ऐलोपैथ में अंतर!!

अमीर आयुर्वेद व गरीब ऐलोपैथ  में अंतर!!

(विषय को समझाने के लिए लेख थोड़ा लम्बा हो गया है, लेकिन जनहित में यह निश्चित रूप से कारगर है, अवश्य पढ़ें व अधिक से अधिक लोगों में प्रसारित करें!)

यह हैडिंग पढ़कर कई लोग सोच रहें होंगे यह क्या बात लिख दी गई है!! लेकिन वर्तमान समय की यही सबसे बड़ी सच्चाई है कि औषध चिकित्सा के मामले में ऐलोपैथ बिल्कुल असहाय, निरीह व गरीब सा नज़र आ रहा है, वहीँ आयुर्वेद अपने प्राकृतिक सिद्धांतो के कारण प्रभावकारी, समृद्ध व अमीर सा नज़र आता है।

इस उदाहरण से आयुर्वेद की अमीरता को और अच्छे से समझते हैं:
एक 40 वर्षीय पुरुष रोगी ऐलोपैथ डॉक्टर के पास: सर मुझे कमर में कई दिनों से असहनीय दर्द हो रहा है, कई बार यह दर्द पैरो की तरफ जाता है जिससे चलने में परेशानी होती है, इसके अलावा गर्दन में भी दर्द रहता है जो कन्धों की ओर बढ़ता हुआ आ रहा है, हाथ-पैरों में जकड़न रहती है, थकान-कमजोरी भी रहती है। मेरा कार्य ऑफिस में कंप्यूटर पर बैठने का है, वजन लगभग 85 किलो है।

ऐलोपैथ डॉक्टर: रोगी का बी. पी. चेक करने के बाद, आपका बी.पी. 130/90 आया है, वैसे  तो यह लगभग नार्मल है, आप एक काम करिये अभी दर्द के लिए एक दवा लिख दी है आप एक-दो दिन इसे खा लीजिये, साथ में कुछ बहुत जरुरी टेस्ट लिखे हैं इनको करवा के मुझसे मिलिए।
टेस्ट का नाम: CBC, RBS, Uric Acid, Lipid profile, Vitamin- D3, Urine- R/M, X-Ray Cervical Spine and C.T. Scan-Lumbar Spine

रोगी: ठीक है सर, टेस्ट काफी सारे लिखे हैं।

ऐलोपैथ डॉक्टर: हाँ, आपकी दिक्कत को सही से समझने के लिए सभी जरुरी हैं।

रोगी: सुबह खाली पेट, बड़ी सी लैब के बाहर लाइन लगाकर खड़ा होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा, वहाँ पहुंचने पर उसे यह पता चला जो टेस्ट उसे लिखे गए हैं उनकी जो कुल कीमत है उसमें सिर्फ 500 रूपए ज्यादा देने पर उसके लगभग 40 तरह की जांचों को भी पैकेज में कर दिया जायेगा।
रोगी को लगा चलो अच्छा ऑफर है, इसे भी करवा लेते हैं शायद उसमे कुछ और पता लग जाये।

टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद: Vitamin- D3 थोड़ा कम आया, कोलेस्ट्रॉल बॉर्डर लाइन से थोड़ा बढ़ा हुआ आया, बाकी की रिपोर्ट्स नार्मल थीं, X - Ray Cervical Spine and C.T. Scan-Lumbar Spine में Degenerative Changes मिले (जो कि प्रत्येक व्यक्ति में उम्र के हिसाब से स्वाभाविक हैं)

रोगी सभी टेस्ट रिपोर्ट्स को इक्कठा करके अपने ऐलोपैथ डॉक्टर साहब के यहाँ अपनी ऑफिस से छुट्टी लेकर बड़ी टेंशन में पहुंचा। टेंशन के चलते घबराहट बहुत थी, डॉक्टर साहब ने बी.पी. चेक की तो 160/100 निकली।

डॉक्टर साहब ने कहा: जैसा मैंने सोचा था लगभग वैसा ही निकला आपका Vitamin-D3 कम है और कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है, बी.पी. भी बढ़ी हुई है, साथ में X - Ray, C.T. Scan में Arthritis के लक्षण हैं, आप हमारे यहाँ अपनी ECG और करवा लीजिये फिर मैं देखता हूँ क्या करना है।

मरीज़ भगवान को याद करते हुए अपना ECG करवाता है, ECG करवाने के बाद, ECG करने वाले से पूछता है कि भाई कुछ दिक्कत तो नहीं है इसमें?? ECG करने वाला कहता है की सर यह तो डॉक्टर साहब ही बताएँगे, आप यह ECG की रिपोर्ट लीजिये और डॉक्टर साहब के रूम के बाहर बैठकर अपने नंबर का इंतज़ार करिये।

मरीज़ अपने नंबर का इंतज़ार करते व बढ़ते हुए सस्पेंस के साथ आखिरकार दोबारा डॉक्टर साहब के कमरे में पहुँचता है।  

ऐलोपैथ डॉक्टर: ECG देखते हुए, आपकी ECG से कुछ बेहतर समझ नहीं आ रहा, आपके परिवार में किसी को बी.पी. की शिकायत तो नहीं?

मरीज़: हाँ सर मेरे मम्मी-पापा दोनों को ही बी.पी. की शिकायत हैं।

ऐलोपैथ डॉक्टर: ठीक है, जितना जल्दी हो सके ECHO की जांच करवा लेना बाकी आपको बी.पी., कोलेस्ट्रॉल, Vitamin D3, ताकत व दर्द की कुछ दवाइयां लिख रहा हूँ इनको लीजिये, दर्द वाली जगह के लिए एक Ointment भी लिखा है इसकी मालिश करिये, ठंडी चीज़ों का परहेज करिये, थोड़ा exercise करना शुरू करिये, गर्दन के दर्द के लिए एक cervical pillow ले लीजिये,  बाहर हमारी Dietitian बैठी हुई है उससे अपना Diet Chart बनवा लीजिये, ECHO करवा के मुझसे दोबारा मिलिए, तब तक यह दवाएं खाइये। मरीज़ डॉक्टर से, सर कोई घबराने की बात तो नहीं है?

डॉक्टर साहब: नहीं ऐसा तो कुछ विशेष नहीं है, ECHO जब हो जाये तो उसे भी दिखाना, बी.पी. की दवा कभी बंद नहीं होगी, बाकी की दवाओं का देखेंगे की आगे क्या करना है।

रोगी डॉक्टर साहब के कमरे से निकलकर dietitian के पास पहुँचता है, वह छोटे-मोटे परहेज़ बताती है, रोगी धीरे से Dietitian से पूंछता है, कभी-कभी Alcohol व Non-Veg ले लेता हूँ, इनको ले सकता हूँ, Dietitian मुस्कुराते हुए, Alcohol कम लेना सर, और Non-veg में Red meat नहीं लेना बाकी थोड़ा-बहुत ले सकते हैं (रोगी मन ही मन सोचते हुए की चलो कम से कम यह बंद करने को नहीं कहा) 

रोगी ने ट्रीटमेंट शुरू कर दिया, समय निकालकर ECHO भी करवा लिया, वह नार्मल आया, डॉक्टर साहब से मिलकर थोड़ा निश्चिंत भी हो गया, दवाएं खाते हुए 1 महीना हो गया, चीज़ों में थोड़ा आराम मिला, बी. पी. नार्मल, कोलेस्ट्रॉल नार्मल, Vitamin D3 थोड़ा बढ़ गया, वजन भी इस बीच में 3 किलो और बढ़ गया, डॉक्टर साहब ने सभी दवाएं continue खाने को कहीं, दर्द की दवा को जरुरत होने पर खाने को कहा, रोगी फिर से दवाएं 1 महीने खाता है, लेकिन जब भी दर्द की दवा या ताकत की दवा नहीं लेता तो दर्द और कमजोरी फिर वैसी ही हो जाती है, फिर से डॉक्टर साहब को अपनी परेशानी बताता है, इसके साथ-साथ रोगी को अब एक और नई परेशानी हो जाती है कि अब उसे कब्ज भी रहने लगती है और कभी-कभी एसिडिटी भी बहुत बढ़ जाती है, घुटनो में भी अब दर्द होने लगा है।

ऐलोपैथ डॉक्टर: मैं आपकी दर्द की दवा में बदलाव कर रहा हूँ यह थोड़ा कम नुकसान करेगी इसे आप रेगुलर खा सकते हैं, साथ में पेट साफ़ के लिए एक दवा और लिख दी है इसे रात में सोते समय आप खाना, और सुबह खाली पेट की एक छोटी सी दवा और है इससे आपको एसिडिटी बिल्कुल नहीं होगी।
बीच में रोगी को फिर से दर्द असहनीय होने पर डॉक्टर साहब से मिलना पड़ा, इस बार डॉक्टर साहब ने रोगी को  फिजियोथेरेपी करवाने की सलाह दी, रोगी ने कुछ दिन लगातार इसे भी करवाया लेकिन कोई विशेष लाभ नहीं मिला, ऐसा ही अगले 3-4 महीने चलता है रोगी जब दवा खाता है तो आराम, नहीं खाता तो फिर से वही परेशानी, अपने ऐलोपैथ डॉक्टर के पास जाकर रोगी यह परेशानी बताता है, डॉक्टर साहब कहते हैं कि चलने दीजिये, यह दवाएं तो आपको खानी होंगी, थोड़ा वजन कम करिये तो अच्छा फायदा हो सकता है।

आखिरकार रोगी को लगता है कि इस बड़े से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के बड़े से सुपर स्पेशिलिस्ट डॉक्टर साहब के अलावा के विकल्पों को तलाशा जाये, अपने जानने वालों, अपनी ओर से नेट आदि पर सर्च करने के बाद उसे लगता है कि आयुर्वेद में ट्रीटमेंट कराया जाये।

रोगी आयुर्वेद डॉक्टर के पास जाता है: शुरू से अंत तक अपनी जानकारी आयुर्वेद डॉक्टर को देता है, डॉक्टर साहब से पूछता है कि सर मेरी दिक्कत सही क्यों नहीं हो रही टेस्ट में जो आ रहा है वह कुछ दिनों की दवाओं को खाने के बाद ठीक तो होता है लेकिन जैसे ही दवाएं बंद करता हूँ तो स्थिति फिर से वैसी हो जाती है।

आयुर्वेद डॉक्टर: आप जिस ऑफिस में रहते हैं वहां A.C. है, चाय कितना पीते हैं?

मरीज़ बड़े उत्साह से: हाँ सर मेरे ऑफिस और घर दोनों जगह A.C. है, चाय ऑफिस में रहने की वजह से 3-4 या कभी-कभी इससे भी ज्यादा हो जाती हैं, डॉक्टर साहब मेरी दिक्कत क्या है? क्या आप इसे बता सकते हैं? क्या आप इसे सही कर सकते हैं?

आयुर्वेद डॉक्टर: थोड़ा सा मुस्कुराते हुए, जी मैं आपको सबसे पहले आपकी दिक्कत को समझाता हूँ, आप समझ सकेंगे कि दिक्कत क्या है और इस दिक्कत का उपचार हमारे पास न होकर आपके पास ही है।

आयुर्वेद डॉक्टर की यह बात सुनकर मरीज़ थोड़ा चकराता है और अपनी समस्या का उपचार खुद से ही समझने के लिए और उत्सुक हो जाता है।

आयुर्वेद डॉक्टर: आपकी समस्या से जुडी दिक्कत के विषय में आपको समझाता हूँ, आप सबसे पहले हमारे शरीर के कार्य करने के तरीके को समझिये, हमारे शरीर में Blood एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता है, हम कुछ खाते हैं तो हम उसे गले तक तो पहुंचा देते हैं लेकिन वह अपने आप फिर पेट में जाता है, आंतो में जाता है, हमारे शरीर से मल बनकर शरीर के बाहर भी आता है, कहने का मतलब यह है कि हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से एक वायु मौजूद रहती है जो हमारे शरीर के अंदर की प्रत्येक गति को नियंत्रित करती है, इसी तरह हम सांस लेते हैं वह भी एक तरह की वायु है, आयुर्वेद में हम इसे “वात” कहते हैं।

ठीक ऐसे ही हमारे सभी के शरीर में टॉक्सिन्स (दूषित चीज़ें) बनते हैं जैसे पसीना-यूरिन-मल लेकिन कई बार हम अपने खाने-पीने या रहने की आदतों में बदलाव कर लेते हैं जिससे यह मल शरीर से सही से बाहर नहीं आ पाते, जैसे आप ज्यादा समय A.C. में रहते हैं जिससे आपको पसीना नहीं आता, Non-veg खाते हैं, Alcohol पीते हैं, अधिक चाय पीते हैं, देर से पचने वाले खान-पान या तली-भुनी चीज़ों को अधिक खाते हैं, लगातार काम में बिजी रहने की वजह से Physical Activity कम करते हैं, शाम को खाना अधिक खाते है और उसके तुरंत बाद सो जाते हैं, इन सभी कारणों से  शरीर में दूषित चीज़ें बढ़ जाती हैं, जो शरीर में रहने वाली वायु की वजह से एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाती हैं, जिससे शरीर में दर्द रहना-जकड़न रहना सूजन रहना आदि दिक्कत हो जाती है, आयुर्वेद में हम इसे "आम" कहते हैं।

ऐसे ही हमारी पृथ्वी पर Gravity (गरूत्वाकर्षण) मौजूद है, जिसकी वजह से कोई भी चीज़ ऊपर से नीचे की ओर आती है, शरीर में भी यह सिद्धांत लागू होता है, आयुर्वेद में भी वात की गति को ऊपर से नीचे की ओर माना गया है, इसे आयुर्वेद की भाषा में “वात की अनुलोम गति” कहते हैं, लेकिन जब शरीर में रूखी चीज़े और गरिष्ठ चीज़ें लगातार पहुँचती हैं तो शरीर में भी रुखापन बढ़ जाता है, जिससे वात की गति नीचे न जाकर ऊपर को हो जाती है इसे आयुर्वेद में “वात की प्रतिलोम गति” माना गया है जो बीमारियों को बढाती है, आप खान-पान तो गलत कर ही रहें हैं साथ में केमिकल वाली दवाओं के लेते रहने से यह रूखापन और बढ़ गया है इसलिए ही आपको कब्ज और एसिडिटी बढ़ी है।

अब आपको करना यह है की आपको अपने खाने-पीने में बदलाव करना है, अपनी दिनचर्या में बदलाव करना है आयुर्वेद में हम इसे "निदान परिवर्जन" कहते हैं, अनावश्यक तनाव से बचना है, साथ में आयुर्वेद की कुछ वात को अनुलोम करने वाली दवायें, टॉक्सिन्स (आम) को निकालने व शमन करने वाली दवाओं का सेवन करने से आप स्वस्थ हो सकते हैं, इसलिए आरम्भ में मैंने आपसे कहा था कि इस समस्या का उपचार आपके हाथ में है।

आयुर्वेद चिकित्सक के द्वारा समझाई गई इस प्राकृतिक थ्योरी रोगी को समझ में भी आयी और उसने आयुर्वेद डॉक्टर के बताये अनुसार निदान परिवर्जन व आयुर्वेद चिकित्सा आरम्भ की सिर्फ 2 माह में लाभ हुआ और कुछ माह दवाओं और परहेज के बाद आयुर्वेद दवायें भी बंद कर सके।

(यह स्टोरी किसी व्यक्ति विशेष, किसी चिकित्सा पद्धति आदि को नीचा दिखाने के उद्देश्य से नहीं बताई है, इसका उद्देश्य वर्तमान समय में ऐलोपैथ जगत के चिकित्सा करने के तरीके, चलन  और आयुर्वेद के प्राकृतिक सिद्धांत के द्वारा मिल रहे हज़ारों रोगियों के लाभ पर आधारित अनुभवों पर लिखी है, जिसका मकसद सही जागरूकता प्रसारित करना व यह बताना है कि जब तक शरीर में होने वाली समस्याओं का प्राकृतिक तरीके से समाधान नहीं किया जायेगा तब तक रोग में लाभ नहीं मिलता। प्रकृति के नियमों के विपरीत चिकित्सा करने से कुछ स्थितियों में अल्पकालिक लाभ तो मिल सकता है लेकिन स्थाई समाधान कभी नहीं, इसलिए प्रकृति की ओर मुड़ें व अधिक से अधिक लोगों को इस विषय पर जागरूक करें, क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति ही बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकता है। प्राकृतिक संसाधनों व सिद्धांतो से विहीन चिकित्सा को गरीब कहना हितकर है। आयुर्वेद के चिकित्सकों के पास यह अवसर है की वे आयुर्वेद के जीवन शास्त्र को समाज में सही तरह से प्रसारित करें!)  (आयुर्वेदाचार्य)
सही जागरूकता के लिए अधिक से अधिक लोगों तक इस पोस्ट को प्रसारित करें!!