Wednesday, June 7, 2017

रामायण को सही अर्थो में समझते है.

रामचरित मानस की अवैज्ञानिक बाते तो बहुत पढ़ी होगी, आइये रामायण को सही अर्थो में समझते है वाल्मीकि रामायण से, Mudit Mishra जी का अत्यंत सुन्दर लेख---------

रामायण एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है और यह है इसका सत्य :- आज के युग में सैंकड़ों लेखकों की लिखी रामायण की अनगिनित लिपियाँ उपलब्ध हैं और उनमें प्रत्येक लेखक की कल्पना और श्रद्धा के अनुसार अनगिनित कथाएं कही गयी हैं! साधारण जन इन काल्पनिक कथायों को ऐतिहासिक मान बैठे हैं और उन्हें उसी रूप में सत्य स्वीकार करते हैं! जबकि सत्य यह है कि केवल एक वाल्मीकि रामायण को ही ऐतिहासिक ग्रन्थ माना जा सकता है! कारण यह कि ऋषि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने श्रीराम के जीवन को अपने सामने देखा और उसके बारे में लिखा! उनका श्रीराम से प्रथम सम्बन्ध बना जब श्रीराम वनवास के दौरान पंचवटी के क्षेत्र में रहे! इस काल में ऋषि वाल्मीकि उसी क्षेत्र में रहते थे और उन्हें श्रीराम और देवी सीता को बहुत निकट से जानने का अवसर प्राप्त हुआ! ऋषि वाल्मीकि एक कवि थे और उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रयोग अपने युग के आदर्श-पुरुष श्री राम की शौर्य गाथा लिखने में किया! वाल्मीकि रामायण में कोई चमत्कार नहीं! और न ही कोई श्राप! यहाँ केवल मनुष्यों के अमित शौर्य और अदम्य साहस की चर्चा है! वाल्मीकि रामायण के अनुसार जो ऐतिहासिक कथा लिखी गयी वह आधुनिक कथायों से किन किन प्रकार से भिन्न है, आइये जाने:-

१) श्रीराम और उनके भाइयों का जन्म किसी चमत्कार से नहीं, बल्कि एक जानी मानी वैज्ञानिक पद्धति से हुआ, जिसे आज की science के हिसाब से समझा जा सकता है! आज एक बार फिर test-tube babies, sperm-donation, और gene-splicing

इत्यादि प्रणालियाँ विकसित हो चुकी हैं! वैदिक ऋषि आज के वैज्ञानिकों से कहीं अधिक ज्ञानवान थे! अतः इस प्रणाली में कोई चमत्कार नहीं बल्कि विज्ञान का ही प्रयोग किया गया, यही सत्य है!

२) ऋषि-पत्नीअहल्या का जब उनके पति गौतम ने त्याग किया तो वह शिला नहीं बल्कि शिलावत (शिला समान) हो गईं! यह कहना वैसा ही होगा जैसे हम किसी दुखिया नारी के विषय में कह देते है 'यह तो पत्थर हो गयी है'! शिलावत यानी कि उनकी भावनाएं मर गईं, वह इतनी आहत हो गईं अपने पति के निष्ठुर व्यवहार से कि उनका मन पत्थर हो गया! उन्होंने किसी से भी मिलना जुलना इत्यादि बंद कर दिया और अपने आश्रम में रहती हुईं एकांत तपस्या करने लगीं! जब ऋषि विश्वामित्र ने श्रीराम को उनके विषय में बताया तो श्रीराम को अत्यंत दुःख हुआ! वे उनके आश्रम में गए और उन्होंने चरण-स्पर्श करके उन्हें आदर दिया! (ध्यान दीजिये ऋषि ने कहा है कि श्रीराम ने उनके चरणों को छुआ न कि उन्हें अपने चरण से छुआ!) उनके द्वारा आदर दिए जाने पर सारे वन में समाचार फ़ैल गया और गौतम लौट कर आए, और श्रीराम ने उन्हें समझाया कि पत्नी को ऐसे त्यागना उचित नहीं! २४-२५ वर्ष के आयु में उन्हें इतना ज्ञान इतना सम्मान प्राप्त था कि ऋषि-मुनि भी उनके आगे नतमस्तक थे! ऋषि ने उनकी आज्ञा मान कर अहल्या को पुनः सम्मान दिया!

३) रावण एक बहुत ही खतरनाक dictator था! वह एक छोटे से द्वीप लंका का राजा तो था ही लेकिन उसने स्वप्न देखा था पूरे भारत की भूमि पर राज्य करने का और अपनी राक्षसी सभ्यता यहाँ फैलाने का! वह इस काम में काफी हद तक सफल भी हो चूका था! उसने पूरे दक्षिण में अपनी colonies बनाई हुई थीं! दक्षिण के राजा किश्किन्धाधीश बालि के साथ उसकी संधि भी थी! अब वह उत्तर पर नज़र लगाए बैठा था! इस काम के लिए उसने तड़का, सुबाहु और मारीच के नेतृत्व में वहां अपनी सैनिक टोलियाँ भेजनी आरम्भ कर दी थीं! उसकी राक्षसी सभ्यता के बारे में ऋषि वाल्मीकि लिखते हैं कि वे लोग मांस-भक्षी और मदिरा-सेवी थे! मनुष्यों के भक्षण में भी उन्हें कोई रोक न थी! वे भारत के वासियों को सताते थे, उनका भक्षण करते थे, उनकी नारियों का हरण करते थे, बलात्कार करते थे और भ्रूण हत्या करते थे! इनके विस्तार को रोकना आवश्यक था, किंतु उनके बल और उनके शस्त्रों के आगे कोई नहीं टिक पाता था! दक्षिण के कई ऋषियों ने अपने अपने सुरक्षा दलों की सहायता से इन्हें किसी प्रकार रोक रखा था, किंतु कब तक?

४) ऋषि विश्वामित्र एक बहुत बड़े वैज्ञानिक थे जो कि वनों में अपने आश्रम  (प्रयोगशाला) में रावण की प्रतिकार के लिए दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का विकास कर रहे थे! लेकिन वह यह भी जानते थे कि ये अस्त्र शस्त्र किसी साधारण मनुष्य के हाथ में नहीं जाने चाहियें, कयोंकि किसी पर भी यह विशवास नहीं किया जा सकता था कि कहीं वह रावण के साथ ही जा मिले! इस कारण उन्हें प्रतीक्षा थी ऐसे शिष्यों की जो देशप्रेम में ओत-प्रोत हों और जो उनका उचित प्रयोग कर सकें! ये शिष्य उन्हें श्रीराम और लक्ष्मण के रूप में मिले!

५) ऋषि यह भी जानते थे कि सीधी लड़ाई में रावण को राजा दशरथ भी नहीं हरा सकते, इसी कारण उन्होंने उनका प्रस्ताव अस्वीकार किया! पहले उन्होंने उत्तर के वनों में अभी पैर जमाने की कोशिश कर रहे ताड़का, सुबाहु और मारीच को मार भगाया! उन्होंने बहुत सोच समझ कर एक योजना बनाई, और उसके अनुसार श्रीराम और लक्ष्मण को अपने बनाये शस्त्रों की training दी! अब ज़रुरत थी किसी बहाने से दक्षिण क्षेत्र में पैर रखने की! श्रीराम का विवाह किससे हो यह भी ऋषि ने ही तय किया, वह ही उन्हें मिथिला ले कर गए और देवी सीता से उनका विवाह करवाया! उन्हें एक ऐसी संगिनी का साथ दिलाया जो उनके mission में उनका पूरा सहयोग दे सके!

६) इस काम के लिए उन्होंने दशरथ जी के परिवार में वनवास का नाटक रचने के लिए देवतायों (सदाचारी गण और उनके सहायक) की सहायता ली! ताकि श्रीराम दक्षिण के वनों में प्रवेश भी कर जाएँ और रावण को उसकी भनक भी न हो! यह काम इतनी दक्षता से किया गया कि स्वयम दशरथ नहीं जान पाए कि क्या हो रहा है!

७) श्रीराम ने धीरे धीरे १४ वर्ष के समय में पूरे दक्षिण में स्थान स्थान पर जाकर जन-साधारण को training दी, उन्हें अपने साथ खड़ा किया, उनके मन से राक्षसों का भय दूर किया और उन्हीं की सहायता से हर गाँव, हर नगर से राक्षसों की टोलियों को निकाल बाहर किया! उनकी स्त्रियों के साथ ताल-मेल बढाने में सीताजी का पूरा सहयोग रहा, और वे जन-मानस के ह्रदय में देशप्रेम और देश के लिए लड़ मरने की भावना जागृत करने में सफल हुए!

८) वानर-जाति के लोग कोई बंदर नहीं थे! वे दक्षिण में बसने वाले मनुष्य ही थे, जिनकी tribe वानर नाम से जानी जाती थी! इनके राजा बालि पर रावण का पूरा प्रभाव था, वह भारतीय संस्कृति छोड़ कर राक्षसी संस्कृति अपना चूका था, और उसी के अनुसार उसने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी का हरण भी किया! श्रीराम ने बालि को उसके कुकर्मों का दंड दे कर उसके सज्जन भाई सुग्रीव को पुनः राजा बनाया!

९) हनुमान सीताजी कि खोज में लंका गये, कितु उड़ कर नहीं, तैर कर! ऋषि वाल्मीकि ने पूरा वर्णन दिया है, कैसे उनके हाथ जब लहरों को चीर कर जाते हैं तो बड़े बड़े मच्छ और मछलियाँ उनसे डर कर भाग जाते हैं!

१०) हनुमानजी ने लंका में सीताजी को खोजा, लेकिन मच्छर या सूक्ष्म रूप में नहीं, राक्षसी छद्म रूप धर कर! वाल्मीकि जी कहते हैं कि उन्होंने ऐसा रूप धरा की वे लंका में घुमते हुए लंका वासियों जैसे ही प्रतीत हो रहे थे!

११) पहलवानों (bodybuilders) को देख कर आज हम समझ सकते हैं कि कैसे हनुमान जी ने रस्सी से बंधे जाते समय अपने शरीर को फूला कर मोटा कर लिया और फिर छूटने के लिए सांस छोड़ कर वे सूक्ष्म तन हो गए और रस्से से छूट गए! इस प्रकार उन्होंने लंका में आग लगाईं!

१२) राम-सेतु का निर्माण भी कोई चमत्कार नहीं था! सागर-नाम का राजा सागर तट-क्षेत्र का स्वामी था! श्रीराम ने सिन्धु को पार करने के लिए उसकी सहायता माँगी तो उसने मना कर दिया! फिर धमकाने के बाद उसने उन्हें वे मान चित्र सौंपे जो कि सिन्धु तल का चित्रण करते थे! उनको देख कर विश्वकर्मा

(engineering expert) के पुत्रों नल-नील ने सेतु की रचना करवाई! यह सब सम्भव हो पाया उस coral reef के कारण जो भारत से लंका तक फ़ैली थी! उसको आधार बना कर उसके ऊपर एक सशक्त सेतु का निर्माण हुआ! इस का प्रमाण आज satellite pictures में उपलब्ध है!

१३) युद्ध के दौरान कई मायायुद्धों और कई दिव्यास्त्रों का वर्णन आता है, आज हम उसको समझ सकते है क्योंकि आज फिर से विमानों की stealth technology और अन्य कई ऐसे उपकरणों का विकास हो चूका है जो उस समय में रावण के पास थे! रावण को बहुत अभिमान था अपने अस्त्र-शस्त्रों के भण्डार पर, लेकिन श्रीराम को भी ऋषि विश्वामित्र ने लैस करके भेजा था, उनके पास हर अस्त्र, हर शस्त्र का उत्तर था और उनके पास था राष्ट्र्भूमि के लिए अतुलित प्रेम! और इसी कारण वे जीत पाए!

१४) रावण की पास कैसे कैसे विमान उपलब्ध थे इसका एक उदाहरण तो पुष्पक विमान स्वयं ही है, जिसमें सवार हो कर श्रीराम वापिस अयोध्या लौटे! कहा है कि यह विमान सौर्य ऊर्जा से चालित था, उसमें बहुत से मणि-मुक्त जड़े थे जो सूर्य किरणों को केन्द्रित करने का काम करते थे! इस विमान की एक और विशेषता थी कि जितने लोग बैठ जाएँ, उससे एक अधिक seat उसमें खुलती जाती थी! यानिकी  flexible capacity! इतनी उन्नत विज्ञान की जानकारी रखने वाली सभ्यता को हरा देना कोई मामूली काम नहीं था, जो यह काम कर पाए, वह श्री राम युग-पुरुष कहलाए! उन्होंने न केवल भारत की भूमि को विदेशी शासन से मुक्त करवाया बल्कि भारतीय सभ्यता का डंका लंका तक बजा दिया!

१५) श्रीराम के राज्याभिषेक के उपरान्त, जब सीताजी गर्भवती हुईं तो उन्होंने वन में रह कर बच्चों को पालने की आगया माँगी! यह उनकी अपनी इच्छा थी कयोंकि वह वन में रह चुकीं थीं और उन्हें वहां का सरल जीवन बहुत अच्छा लगा था! उन्होंने श्रीराम से वाल्मीकि आश्रम में रह कर समय बीतने की आज्ञा ली और कुछ वर्षों तक वे वहीं रहीं!

और फिर उन्हीं के पास उनके पुत्र लव और कुश शिक्षा प्राप्त करते रहे! कहीं भी कोई धोबी का प्रसंग नहीं है ऋषि वाल्मीकि के ग्रन्थ में! यदि हम अपनी तर्क शक्ति भी प्रयोग करें तो इस ऐतिहासिक प्रसंग में जहां महान ऋषियों तक ने श्रीराम के आगे सिर झुकाया, और उन्हें आदर्श माना, वहां एक धोबी के कहने से वह अपनी देवी समा पत्नी का त्याग क्यूं करेंगे?

यह सारी जानकारी कुछ तो मैनें वाल्मीकि जी की संस्कृत में लिखी पुस्तक से पाई है और कुछ 'स्वामी सत्यानन्द' कृत 'वाल्मीकि रामायण सार' से! यह जानकारी जन साधारण तक श्रीराम की अद्भुत कथा का ऐतिहासिक सत्य पहुँचाने के लिए प्रस्तुत करी गयी है, इसका और कोई दूसरा आशय नहीं!

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