Thursday, May 4, 2017

वेद संसार के पुस्तकालय की सबसे पुरानी पुस्तकें हैं।


भारतीय व विदेशी विद्वान स्वीकार करते हैं कि वेद संसार के पुस्तकालय की सबसे पुरानी पुस्तकें हैं। वेद चार है, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। यह चारों वेद संस्कृत में हैं। महाभारत ग्रन्थ का यदि अध्ययन करें तो ज्ञात होता है कि महाभारत काल में भी वेद विद्यमान थे। महाभारत में योगेश्वर श्री कृष्ण और अनेक पात्रों द्वारा वेदों का आदर के साथ उल्लेख मिलता है। रामायण का अध्ययन करें तो वहां भी वेदों का वर्णन मिलता है। रामायण में ऋषि-मुनियों द्वारा यज्ञ करने का विवरण भी मिलता है जिनकी राक्षसों से रक्षा करने के लिए महर्षि विश्वामित्र राम वलक्ष्मरण को दशरथ से मांग कर अपने साथ अपने आश्रमों में ले गये थे। रावण के बारे में कहा जाता है कि वह चारों वेदों का विद्वान था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम के श्वसुर महाराज जनक भी वेदों के विद्वान थे। प्राचीन उपनिषद ग्रन्थ में याज्ञवल्क्य का महाराज जनक से वार्तालाप प्राप्त होता है जिसमें वह वेदों की चर्चा करते हैं। रामायण व महाभारत काल में संसार में वेदों के अतिरिक्त दूसरा कोई ज्ञान का पुस्तक या धर्म ग्रन्थ होने का प्रमाण नहीं मिलता। इससे सिद्ध होता है कि वेद ज्ञान की पुस्तकें एवं संसार में सर्वप्राचीन हैं। अब यदि वेद सर्वप्राचीन हैं तो वेद किसकी रचना है अर्थात् वेदों का रचयिता कौन है? पहली सम्भावना तो यह कही जा सकती है कि यह ग्रन्थ किसी ऋषि ने या बहुत से ऋषियों ने मिलकर बनाया होगा। परन्तु वेदों की उत्पत्ति किसी ऋषि से नहीं हुई, यह वेदों की अन्तःसाक्षी से ज्ञात होता है।
रामायण तथा महाभारत के उदाहरणों से यह तो ज्ञात होता है कि इन दोनों कालों में न केवल हमारे देश का अपितु विश्व के धार्मिक, सामाजिक, व्यवहार तथा कर्तव्य-अकर्तव्य का एक ही ग्रन्थ था और वह था वेद क्योंकि वेदेतर किसी ग्रन्थ का उल्लेख, विचारधारा व सिद्धान्त इन सर्व प्राचीन ग्रन्थ वेदों में नहीं है। वेद के अतिरिक्त अन्य वैदिक साहित्य जिनमें मनुस्मृति, उपनिषद तथा दर्शन आदि ग्रन्थ आते हैं, इन सबमें भी वेदों का ही उल्लेख मिलता है अन्य किसी वेद तुल्य या वेदों से भिन्न ग्रन्थ का नहीं। अतः वेद एक मात्र प्राचीनतम् ग्रन्थ है, यह सिद्ध हो जाता है। अब यह देखना है कि वेदों की उत्पत्ति किस प्रकार से हुई? वेद का अर्थ ज्ञान होता है। वेद से ही विद्वान शब्द बिना है और विद्वान ज्ञानी को या जानने वालों को कहते हैं। वेद से ही विद्या शब्द बना है जिसका अर्थ भी ज्ञान या knowledge है। अब यदि हम यह जान लंे कि ज्ञान की उत्पत्ति कैसे होती है तो यह ज्ञात हो जायेगा कि वेद की उत्पत्ति कैसे व किससे हुई? ज्ञान का सम्बन्ध हमारी आत्मा व बुद्धि से है। आत्मा एक चेतन तत्व है। चेतन से भिन्न तत्व को हम जड़ तत्व, निर्जीव व अचेतन कहते हैं। जड़ तत्वों में कुछ नियम कार्य करते हैं परन्तु उन्हें उसका ज्ञान नहीं है। हम अर्थात् मनुष्यों को स्वयं का और जड़ तत्वों का भी ज्ञान है। उदाहरण के लिए जल को लेते हैं। हमें यह ज्ञान है कि जल द्रव है, ठोस या गैस नहीं है। जल परमाणुओं से मिलकर बना है। जल में हाईड्रोजन तथा आक्सीजन के परमाणु है। सूक्ष्म विज्ञान से ज्ञात होता है कि जल अणुओं का समूह है। अणु परमाणु का समूह होते हैं। हाईड्रोजन के दो परमाणु आक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर जल का एक अणु तैयार करते है। जल बनाने का यह कार्य हम स्वयं हाईड्रोजन व आक्सीजन गैस को मिलाकर भी कर सकते हैं। यह ज्ञान हम मनुष्यों को तो होता है परन्तु जल या अन्य किसी अचेतन वा जड़ तत्व को नहीं होता। अब हमारे पास एक ही सम्भावना है कि यह वेद अर्थात् ज्ञान किसी चेतन तत्व के द्वारा निर्मित व उत्पन्न है।

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