Sunday, September 25, 2016

श्रीमद्भागवत महापुराण के द्वादशवें स्कंध के दूसरा अध्याय।

श्रीमद्भागवत महापुराण के द्वादशवें स्कंध के दूसरे अध्याय में श्री शुकदेव जी ने कलियुग का निरूपण किया है।जो आज के समय लगभग जैसा बताया गया है वैसा ही घटित हो रहा है। और कलियुग में केवल भगवान के नाम जप को ही सार्थक बताया है।

1. कलियुग के प्रबल प्रभाव से धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, शारीरिक बल तथा स्मरणशक्ति दिन प्रतिदिन क्षीण होते जायेंगे (SB.12.2.1) | 

2. एकमात्र संपत्ति को ही मनुष्य के उत्तम जन्म, उचित व्यवहार तथा उत्तम गुणों का लक्षण माना जायेगा | कानून तथा न्याय मनुष्य के बल के अनुसार ही लागू होंगे (SB.12.2.2) |

3. पुरुष तथा स्त्रियाँ केवल उपरी आकर्षण के कारण एक साथ रहेंगे और व्यापार की सफलता कपट पर निर्भर रहेगी | पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का निर्णय कामशास्त्र में उनकी निपुणता के अनुसार किया जायेगा और ब्राह्मणत्व जनेऊ पहनने पर निर्भर करेगा (SB.12.2.3) |  

4. मनुष्य एक आश्रम को छोड़ कर दूसरे आश्रम को स्वीकार करेंगे | यदि किसी की जीविका उत्तम नही है तो उस व्यक्ति के औचित्य में सन्देह किया जायेगा | जो चिकनी चुपड़ी बातें बनाने में चतुर होगा वह विद्वान् पंडित माना जायेगा (SB.12.2.4) | 

5. निर्धन व्यक्ति को असाधु माना जायेगा और दिखावे को गुण मान लिया जायेगा | विवाह मौखिक स्वीकृति के द्वारा व्यवस्थित होगा (SB.12.2.5) |

6. उदर-भरण जीवन का लक्ष्य बन जायेगा | जो व्यक्ति परिवार का पालन-पोषण कर सकता है, वह दक्ष समझा जायेगा | धर्म का अनुसरण मात्र यश के लिए किया जायेगा (SB.12.2.6) |

7. प्रथ्वी भ्रष्ट जनता से भरती जायेगी | समस्त वर्णों में से जो अपने को सबसे बलवान दिखला सकेगा, वह राजनैतिक शक्ति प्राप्त करेगा (SB.12.2.7) | 

8. कलियुग समाप्त होने तक सभी प्राणियों के शरीर आकर में छोटे हों जायेंगें और धार्मिक सिद्धान्त विनिष्ट हो जायेंगे | राजा प्रायः चोर हो जायेंगे; लोगों का पेशा चोरी करना, झूंठ बोलना तथा व्यर्थ हिंसा करना हो जायेगा और सारे सामाजिक वर्ण शूद्रों के स्तर तक नीचे गिर जायेंगे | घर पवित्रता से रहित तथा सारे मनुष्य गधों जैसे हो जायेंगे (SB.12.2.12-15) |

9. कलियुग के दुर्गुणों के कारण मनुष्य क्षुद्र दृष्टि वाले, अभागे, पेटू, कामी तथा दरिद्र होंगे | स्त्रियाँ कुलटा होने से एक पुरुष को छोड़ कर बेरोक टोक दूसरे के पास चली जायेंगी (SB.12.3.31) |

10. शहरों में चोरों का दबदबा होगा | राजनैतिक नेता प्रजा का भक्षण करेंगे और तथाकथित पुरोहित तथा बुद्धिजीवी अपने पेट व जननांगों के भक्त होंगे (SB.12.3.32) |

11. ब्रह्मचारी अपने व्रतों को सम्पन्न नही कर सकेंगे और सामान्यता अस्वच्छ रहेंगे | सन्यासी लोग धन के लालची बन जायेंगे (SB.12.3.33) | 

12. व्यापारी लोग क्षुद्र व्यापार में लगे रहेंगे और धोखाधडी से धन कमायेंगे | आपात काल न होने पर भी लोग किसी भी अधम पेशे को अपनाने की सोचेंगे (SB.12.3.35) |

13. नौकर धन से रहित स्वामी को छोड़ देंगे भले ही वह सन्त सद्रश्य उत्कृष्ट आचरण का क्यों न हो | मालिक भी अक्षम नौकर को त्याग देंगे भले ही वह बहुत काल से उस परिवार में क्यों न रह रहा हो (SB.12.3.36) |

14. मनुष्य कंजूस तथा स्त्रियों द्वारा नियंत्रित होंगे | वे अपने पिता, भाई, अन्य सम्बन्धियों तथा मित्रों को त्याग कर साले तथा सालियों की संगति करेंगे (SB.12.3.37) | 

14. शुद्र लोग भगवान् के नाम पर दान लेंगे और तपस्या का दिखावा कर, साधू का वेश धारण कर अपनी जीविका चलायेंगे | धर्म न जानने वाले उच्च आसन पर बैठेंगे और धार्मिक सिद्धांतों पर प्रवचन करने का ढोंग रचेंगे (SB.12.3.38) |

15. लोग थोड़े से सिक्कों के लिए शत्रुता ठान लेंगे | वे सारे मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को त्याग कर स्वयं मरने तथा अपने सम्बन्धियों को मार डालने पर उतारू हो जायेंगे (SB.12.3.41) |

16. लोग अपने बूढ़े माता-पिता, बच्चों व अपनी पत्नी की रक्षा नही कर पायेंगे तथा अपने पेट व जननांगों की तुष्टि में लगे रहेंगे (SB.12.3.42) |

17. हे राजन! कलियुग में लोगों की बुद्धि नास्तिकता के द्वारा विपथ हो जायेगी | तीनो लोकों के नियन्ता तक भगवान् के चरण-कमलों पर अपना शीश नवाते हैं, किन्तु इस युग के क्षुद्र एवं दुखी लोग ऐसा नही करेंगे (SB.12.3.43) |

18. अन्त में शुकदेव गोस्वामी कहते हैं:  हे राजन! यधिपी कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है- केवल “हरे कृष्ण महामन्त्र” का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है  (SB.12.3.51) | 

19. हे राजन! सत्ययुग में बिष्णु का ध्यान करने से, त्रेता युग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से जो फल प्राप्त होता है, वही कलियुग में केवल हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है (SB.12.3.52) | (ऐसा ही श्लोक विष्णु पुराण(6.2.17), पध्म पुराण (उत्तर खंड 72.25) तथा ब्रह्न्नारदीय पुराण (38.97) में भी पाया जाता है ) |   महामंत्र ~ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।  हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

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