Friday, September 30, 2016

एल्युमीनियम के बर्तनों में बने भोजन के गंभीर दुष्परिणाम

आजकल हमारे रसोईघरों में ज़्यादातर बर्तन एल्युमीनियम से बने हुए होते हैं। आज विश्व के लगभग ६०% बर्तन अल्यूमीनियम से बनाए जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक तो ये दूसरी धातुओं के मुकाबले सस्ते और टिकाऊ होते हैं, ऊष्मा के अच्छे सुचालक होते हैं।

भले ही एल्युमीनियम के बर्तन सस्ते पड़ते हों लेकिन हमारे स्वास्थ्य पर इनका बहुत बुरा असर पड़ता है। इन बर्तनों में पके हुए भोजन के कारन एक औसतन मनुष्य प्रतिदिन 4 से 5 मिलीग्राम एल्युमीनियम अपने शरीर में ग्रहण करता है। मानव शरीर इतने एल्युमीनियम को शरीर से बाहर करने में समर्थ नहीं होता है। एक तरह से हम रोज़ इन एल्युमीनियम के बर्तनों के बहाने धीमा ज़हर खा रहे हैं। गौर से देखने पर आप पाएंगे कि एल्युमीनियम के बर्तनों में बने भोजन का रंग कुछ बदल जाता है ऐसा इसलिए होता है कि यह भोजन एल्युमीनियम से दूषित हो जाता है।
स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव इसलिए पड़ता है क्योंकि एल्युमीनियम भोजन से प्रतिक्रिया करता है, विशेष रूप से एसिडिक पदार्थों से जैसे टमाटर आदि। प्रतिक्रिया कर यह एल्युमीनियम हमारे शरीर में पहुँच जाता है। सालों तक यदि हम एल्युमीनियम में पका खाना खाते रहते हैं तो यह एल्युमीनियम हमारी मांसपेशियों, किडनी, लीवर और हड्डियों में जमा हो जाता है जिसके कारण कई गंभीर बीमारीयां घर कर जाती हैं।
एल्युमीनियम पोइज़निंग के लक्षण
एल्युमीनियम पोइज़निंग का मुख्य लक्षण है पेट का दर्द। हो सकता है आपके पेट में अक्सर रहने वाला दर्द एल्युमीनियम के कारण हो। इसके अलावा कमज़ोर याददाश्त और चिंता इसके दूसरे प्रमुख लक्षण हैं।
एल्युमीनियम के कारण होने वाली बीमारियां
कमज़ोर याददाश्त और डिप्रेशन
मुंह के छाले
दमा
अपेंडिक्स
किडनी का फेल होना
अल्ज़ाइमर
आँखों की समस्याएं
डायरिया या अतिसार
इसलिए हमेशा लोहे अथवा मिट्टी के पात्रों में ही भोजन पकाया जाना चाहिए। यह आपके भोजन के स्वाद और आपकी सेहत दोनों के लिए अच्छा है।

Sunday, September 25, 2016

श्रीमद्भागवत महापुराण के द्वादशवें स्कंध के दूसरा अध्याय।

श्रीमद्भागवत महापुराण के द्वादशवें स्कंध के दूसरे अध्याय में श्री शुकदेव जी ने कलियुग का निरूपण किया है।जो आज के समय लगभग जैसा बताया गया है वैसा ही घटित हो रहा है। और कलियुग में केवल भगवान के नाम जप को ही सार्थक बताया है।

1. कलियुग के प्रबल प्रभाव से धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, शारीरिक बल तथा स्मरणशक्ति दिन प्रतिदिन क्षीण होते जायेंगे (SB.12.2.1) | 

2. एकमात्र संपत्ति को ही मनुष्य के उत्तम जन्म, उचित व्यवहार तथा उत्तम गुणों का लक्षण माना जायेगा | कानून तथा न्याय मनुष्य के बल के अनुसार ही लागू होंगे (SB.12.2.2) |

3. पुरुष तथा स्त्रियाँ केवल उपरी आकर्षण के कारण एक साथ रहेंगे और व्यापार की सफलता कपट पर निर्भर रहेगी | पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का निर्णय कामशास्त्र में उनकी निपुणता के अनुसार किया जायेगा और ब्राह्मणत्व जनेऊ पहनने पर निर्भर करेगा (SB.12.2.3) |  

4. मनुष्य एक आश्रम को छोड़ कर दूसरे आश्रम को स्वीकार करेंगे | यदि किसी की जीविका उत्तम नही है तो उस व्यक्ति के औचित्य में सन्देह किया जायेगा | जो चिकनी चुपड़ी बातें बनाने में चतुर होगा वह विद्वान् पंडित माना जायेगा (SB.12.2.4) | 

5. निर्धन व्यक्ति को असाधु माना जायेगा और दिखावे को गुण मान लिया जायेगा | विवाह मौखिक स्वीकृति के द्वारा व्यवस्थित होगा (SB.12.2.5) |

6. उदर-भरण जीवन का लक्ष्य बन जायेगा | जो व्यक्ति परिवार का पालन-पोषण कर सकता है, वह दक्ष समझा जायेगा | धर्म का अनुसरण मात्र यश के लिए किया जायेगा (SB.12.2.6) |

7. प्रथ्वी भ्रष्ट जनता से भरती जायेगी | समस्त वर्णों में से जो अपने को सबसे बलवान दिखला सकेगा, वह राजनैतिक शक्ति प्राप्त करेगा (SB.12.2.7) | 

8. कलियुग समाप्त होने तक सभी प्राणियों के शरीर आकर में छोटे हों जायेंगें और धार्मिक सिद्धान्त विनिष्ट हो जायेंगे | राजा प्रायः चोर हो जायेंगे; लोगों का पेशा चोरी करना, झूंठ बोलना तथा व्यर्थ हिंसा करना हो जायेगा और सारे सामाजिक वर्ण शूद्रों के स्तर तक नीचे गिर जायेंगे | घर पवित्रता से रहित तथा सारे मनुष्य गधों जैसे हो जायेंगे (SB.12.2.12-15) |

9. कलियुग के दुर्गुणों के कारण मनुष्य क्षुद्र दृष्टि वाले, अभागे, पेटू, कामी तथा दरिद्र होंगे | स्त्रियाँ कुलटा होने से एक पुरुष को छोड़ कर बेरोक टोक दूसरे के पास चली जायेंगी (SB.12.3.31) |

10. शहरों में चोरों का दबदबा होगा | राजनैतिक नेता प्रजा का भक्षण करेंगे और तथाकथित पुरोहित तथा बुद्धिजीवी अपने पेट व जननांगों के भक्त होंगे (SB.12.3.32) |

11. ब्रह्मचारी अपने व्रतों को सम्पन्न नही कर सकेंगे और सामान्यता अस्वच्छ रहेंगे | सन्यासी लोग धन के लालची बन जायेंगे (SB.12.3.33) | 

12. व्यापारी लोग क्षुद्र व्यापार में लगे रहेंगे और धोखाधडी से धन कमायेंगे | आपात काल न होने पर भी लोग किसी भी अधम पेशे को अपनाने की सोचेंगे (SB.12.3.35) |

13. नौकर धन से रहित स्वामी को छोड़ देंगे भले ही वह सन्त सद्रश्य उत्कृष्ट आचरण का क्यों न हो | मालिक भी अक्षम नौकर को त्याग देंगे भले ही वह बहुत काल से उस परिवार में क्यों न रह रहा हो (SB.12.3.36) |

14. मनुष्य कंजूस तथा स्त्रियों द्वारा नियंत्रित होंगे | वे अपने पिता, भाई, अन्य सम्बन्धियों तथा मित्रों को त्याग कर साले तथा सालियों की संगति करेंगे (SB.12.3.37) | 

14. शुद्र लोग भगवान् के नाम पर दान लेंगे और तपस्या का दिखावा कर, साधू का वेश धारण कर अपनी जीविका चलायेंगे | धर्म न जानने वाले उच्च आसन पर बैठेंगे और धार्मिक सिद्धांतों पर प्रवचन करने का ढोंग रचेंगे (SB.12.3.38) |

15. लोग थोड़े से सिक्कों के लिए शत्रुता ठान लेंगे | वे सारे मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को त्याग कर स्वयं मरने तथा अपने सम्बन्धियों को मार डालने पर उतारू हो जायेंगे (SB.12.3.41) |

16. लोग अपने बूढ़े माता-पिता, बच्चों व अपनी पत्नी की रक्षा नही कर पायेंगे तथा अपने पेट व जननांगों की तुष्टि में लगे रहेंगे (SB.12.3.42) |

17. हे राजन! कलियुग में लोगों की बुद्धि नास्तिकता के द्वारा विपथ हो जायेगी | तीनो लोकों के नियन्ता तक भगवान् के चरण-कमलों पर अपना शीश नवाते हैं, किन्तु इस युग के क्षुद्र एवं दुखी लोग ऐसा नही करेंगे (SB.12.3.43) |

18. अन्त में शुकदेव गोस्वामी कहते हैं:  हे राजन! यधिपी कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है- केवल “हरे कृष्ण महामन्त्र” का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है  (SB.12.3.51) | 

19. हे राजन! सत्ययुग में बिष्णु का ध्यान करने से, त्रेता युग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से जो फल प्राप्त होता है, वही कलियुग में केवल हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है (SB.12.3.52) | (ऐसा ही श्लोक विष्णु पुराण(6.2.17), पध्म पुराण (उत्तर खंड 72.25) तथा ब्रह्न्नारदीय पुराण (38.97) में भी पाया जाता है ) |   महामंत्र ~ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।  हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

Friday, September 23, 2016

वेदों का संक्षिप्त इतिहास |


वेद 'विद' शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है ज्ञान या जानना, ज्ञाता या जानने वाला; मानना नहीं और न ही मानने वाला। सिर्फ जानने वाला, जानकर जाना-परखा ज्ञान। अनुभूत सत्य। जाँचा-परखा मार्ग। इसी में संकलित है 'ब्रह्म वाक्य'। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।

वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना क्योंकि इसके मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने सृष्टि के आदि में चार ऋषियों के मन में प्रगट किया- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।

वेद वैदिककाल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी करोडों वर्षों से सृष्टि के आदि से चली आ रही है। कुछ विद्वानों ने संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है। बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं।

संहिता :वेद का मन्त्र भाग ही संहिता है वेद है।। वेद के मन्त्रों में सुंदरता भरी पड़ी है। वैदिक ऋषि जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं, तो चित्त प्रसन्न हो उठता है। जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है, मुग्ध हो उठता है।

ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है। वेदों के मंत्रों की व्याख्या है। यज्ञों के विधान और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है। मुख्य ब्राह्मण तीन हैं : (1) ऐतरेय, ( 2) तैत्तिरीय और (3) शतपथ। यही असली पुराण हैं। आधुनिक अठारह पुराणों में कुछ वेद विरुद्ध बातें व काल्पनिक किस्से कहानियां भी हैं।

आरण्यक : वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'। अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'। मुख्य आरण्यक पाँच हैं : (1) ऐतरेय, (2) शांखायन, (3) बृहदारण्यक, (4) तैत्तिरीय और (5) तवलकार।

उपनिषद : उपनिषद को वेद का सरल भाग कहा गया है और यही वेदों का सार होने के कारण वेदांत कहलाए। इनमें ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है। उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं। मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वर। असंख्य वेद-शाखाएँ, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं।

लेखन काल : प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। कुछ विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई।पू. से मानी है अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का विभाजन राम के जन्म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया। दूसरी ओर कुछ लोगों का यह मानना है कि कृष्ण के समय द्वापरयुग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को चार प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया। इस मान से लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह भी तथ्य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के तथ्य ढूँढ लिए गए हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि राजा ईक्ष्वाकु के काल वेद पुस्तक रुप में आये।

वेद के विभाग चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें 10 मंडल हैं और 1,0522 ऋचाएँ।.इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।

यजुर्वेद : यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु। यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश। इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा। यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं। इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल। शुक्ल शाखा अधिक प्रमाणिक है।

सामवेद : साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इसमें 1875 मन्त्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं।

अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। ज्ञान से श्रेष्ठ कर्म करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। अथर्ववेद में 5977 मन्त्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं। 

उक्त सभी में परमात्मा, प्रकृति और आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान किया गया है।छह वेदांग : (वेदों के छह अंग)- (1) शिक्षा, (2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) ज्योतिष और (6) कल्प।

छह उपांग : (1) प्रतिपदसूत्र, (2) अनुपद, (3) छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), (4) धर्मशास्त्र, (5) न्याय तथा (6) वैशेषिक। ये 6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन कहते हैं, जो इस तरह है:- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत।

वेदों के उपवेद : ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का अर्थवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।

आधुनिक विभाजन : आधुनिक विचारधारा के अनुसार चारों वेदों का विभाजन कुछ इस प्रकार किया गया- (1) याज्ञिक, (2) प्रायोगिक और (3) साहित्यिक।

कुछ विद्वानों के अनुसार वेदों का सार है उपनिषदें और उपनिषदों का सार 'गीता' है। इस क्रम से वेद, उपनिषद और गीता ही धर्मग्रंथ हैं, दूसरा अन्य कोई नहीं। स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत समझाया गया है। वाल्मिकी रामायण और महाभारत को इतिहास तथा पुराणों को पुरातन इतिहास का ग्रंथ माना है। विद्वानों ने वेद, उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया है।

ऋषि और मुनियों को दृष्टा कहा गया है और वेदों को ईश्वर वाक्य। वेद ऋषियों के मन या विचार की उपज नहीं है। ऋषियों ने वह लिखा या कहा जैसा कि उन्होंने पूर्णजाग्रत वा समाधि अवस्था में देखा, सुना और परखा।

मनुस्मृति में  कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है। वेद किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। जन्म के आधार पर जाति का विरोध ऋग्वेद के पुरुष-सुक्त (X.90.12), व श्रीमद्भगवत गीता के श्लोक (IV.13), (XVIII.41) में मिलता है।

श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।.तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृतिर्त्वरा॥

भावार्थ : अर्थात जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।

महर्षि दयानंद कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका,सत्यार्थप्रकाश और उनके पूना प्रवचन वेदों के हतिहास व उपदेशों को समझने समझाने में बहुत सहायक हैं।

दुनीया में स्त्री और पुर्स के गुप्तांगो की खुल्म खुला पूजा कही नहीं होती लेकिन भारत में होती है ..शिव - लिंग

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पूरे भारत वर्ष में 12 (द्वादश) शिव ज्योर्तिलिंगो की स्थापना की, जहां पर आदिकाल से शिव जी ने निवास किया या तपस्या की, उन स्थानों को उन्होंने चिन्हित कर विकसित किया था, वह स्थान निम्न हैं

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालमोकांरममलेश्वरम् ।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारूकावने ।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयंम्बकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति



वेदों में शिव या शंकर के बारे मैं कोई प्रमाण नहीं है केवल रूद्र का वर्णन मिलता है
शिव की जागेश्वर में तपस्या-उद्धरण कुमाऊं का इतिहास-श्री बद्रीद्त्त पाण्डे, पृष्ठ-१६४


पश्चात, दक्ष प्रजापति ने कनखल के समीप यग्य किया। वहां शिव के अतिरिक्त सबको बुलाया, शिव की पत्नी काली बिना बुलाये पिता के यहां गई और वहां अपना और अपने पति का तिरस्कार देखकर रोष से भस्म हो गई। शिव ने कैलाश से यह बात जान दक्ष प्रजापति का यग्य विध्वस कर सबका नाश कर दिया और चिता की भस्म से शरीर को आच्छादित कर झांकर सैम ( जागेश्वर से करीब ५ कि०मी० गरुड़ाबांज नामक स्थान पर) में तपस्या की। झांकर सैम को तब भी देवदार वन से आच्छादित बताया गया है। झांकर सैम जागेश्वर पर्वत में है। कुमाऊं के इस वन में वशिष्ठ मुनि अपनी पत्नियों के साथ रहते थे। एक दिन स्त्रियों ने जंगल में कुशा और समिधा एकत्र करते हुये शिव को राख मले नग्नावस्था में तपस्या करते देखा, गले में सांप की माला थी, आंखें बंद, मौन धारण किये हुये, चित्त उनका काली के शोक से संतप्त था। स्त्रियां उनके सौन्दर्य को देखकर उनके चारों ओर एकत्र हो गईं, सप्तॠषियों की सातों स्त्रियां जब रात में ना लौटी तो वे प्रातःकाल उनको ढुंढने को गये, देखा तो शिव समाधि लिये बैठे है और स्त्रियां उनके चारों ओर बेहोश पड़ी हैं। ॠषियों ने यह विचार कर लिया कि शिव ने उनकी स्त्रियों की बेइज्जती की है और शिव को श्राप दिया कि "जिस इन्द्रिय यानी वस्तु से तुमने यह अनौचित्य किया है वह (लिंग) भूमि में गिर जायेगा" तब शिव ने कहा कि " तुमने मुझे अकारण ही श्राप दिया है, लेकिन तुमने मुझे सशंकित अवस्था में पाया है, इसलिये तुम्हारे श्राप का मैं विरोध नहीं करुंगा, मेरा लिंग पृथ्वी में गिरेगा। तुम सातों सप्तर्षि तारों के रुप में आकाश में चमकोगे।" अतः शिव ने श्राप के अनुसार अपने लिंग को पृथ्वी में गिराया, सारी पृथ्वी लिंग से ढक गई, गंधर्व व देवताओं ने महादेव की तपस्या की और उन्होंने लिंग का नाम यागीश या यागीश्वर कहा और वे ऋषि सप्तर्षि कहलाये।
शिव की जागेश्वर में तपस्या-उद्धरण कुमाऊं का इतिहास-श्री बद्रीद्त्त पाण्डे, पृष्ठ-१६४-१६५


श्राप के कारण शिव का लिंग जमीन पर गिर गया और सारी पृथ्वी लिंग के भार से दबने लगी, तब ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, सूर्य, चंद्र और अन्य देवगण जो जागेश्व्र में शिव की क्तुति कर रहे थे, अपना-अपना अंश और शक्तियां वहां छोड़्कर चले गयेआ तब देवताओं ने लिंग का आदि अन्त जानने का प्रयास किया, ब्रह्मा, विष्णु और कपिल मुनि भी इसका उत्तर न दे सके, विष्णु पाताल तक भी गये लेकिन उसका अंत न पा सके, तब विष्णु शिव के पास गये औए उनसे अनुनय विनय के बाद यह निश्चय हुआ कि विष्णु लिंग को सुदर्शन चक्र से काटें और उसे तमाम खंडों एस बांट दें। अंततः जागेश्वर में लिंग को काटा गया और उसे नौ खंडों में बांटा गया। १-हिमाद्रि खंड


२- मानस खंड
३- केदार खंड
४- पाताल खंड - जहां नाग लोग लिंग की पूजा करते हैं।
५- कैलाश खंड
६- काशी खंड- जहां विश्वनाथ जी हैं, बनारस
७- रेवा खंड- जहां रेवा नदी है. जहां पर नारदेश्वर के रुप में लिंग पूजा होती है, शिवलिंग का नाम रामेश्वरम है।
८- ब्रह्मोत्तर खंड- जहां गोकर्णेश्वर महादेव हैं, कनारा जिला मुंबई।
९- नगर खंड- जिसमें उज्जैन नगरी है।
शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति

1- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा ,तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि - ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ । इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब - ब्रह्मा जी ने कहा - आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले - हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता । यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513

शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया । 
- साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15


शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया ।
- साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15


3- शिवजी एकदम नंग धड़ंग रूप में ही भिक्षा मांगने के लिए ऋषियों के आश्रम में चले गये , वहां उनके इस देवेश्वर रूप को देखकर ऋषि पत्नियां उन पर मोहित हो गईं और उनकी जंघाओं से लिपट गईं ।यह दृश्य देख ऋषियों ने शिवजी के लिंग पर काष्ठ और पत्थरों से प्रहार किया , लिंग के पतित हो जाने पर शिवजी कैलाश पर्वत पर चले गये ।वामनपुराण खण्ड 1 श्लोक 58,68,70,72,पृष्ठ 412 से 413 तक


4- सूत जी ने बताया कि दारू नाम के वन में मुनि लोग तपस्या कर रहे थे , शिवजी नग्न हो वहां पहुंच गये और कामदेव को पैदा करने वाले मुस्कान-गान कर नारियों में कामवासना वृद्धि कर दी ।यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी भूविलास करने लगीं , अपनी पत्नियों को ऐसा करते देख मुनियों ने शिव को कठोर वचन कहे ।
 
- डायमंड प्रेस , लिंग पुराण पृष्ठ 43


शिवजी की उत्पत्ति
1- शिवजी स्वयं उत्पन्न हुए । - गीता प्रेस शिवपुराण विन्धयेश्वर संहिता पृष्ठ 57
2- शिवजी , विष्णु जी की नासिका के मध्य से उत्पन्न हुए । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण द्वितीय रूद्र संहिता अध्याय 15 पृष्ठ 126

3- शिव का जन्म विष्णु के शिर से माना जाता है । - डायमंड प्रेस ब्रह्म पुराण पृष्ठ 141
4- शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए । - डायमंड प्रेस कूर्म पुराण पृष्ठ 26


औघड़ मत का पूजा विधान
औघड़ मत में भैरवी चक्र नाम का एक पर्व होता है ,जिसमें एक पुरूष को नंगा करके उसके लिंग की स्त्रियां पूजा करती हैं और दूसरे स्थान पर एक स्त्री को नंगा खड़ा कर पुरूषों द्वारा उसकी भग अर्थात योनि की पूजा की जाती है । - सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11 , पृष्ठ 192
- डिमाई साईज़ @ डायमंड प्रेस ,अग्नि पुराण , पृष्ठ 41


शिवजी ओघड़ थे
 1- ब्रह्मा जी शिवजी के पास गये और बोले - ‘‘हे ओघड़‘‘ ।  - साधना प्रेस हरिवंश पुराण पृष्ठ 140
2-सूत जी ने कहा - शंकर जी ‘‘ओघड़‘‘ हैं । - डायमंड प्रेस ब्रह्माण्ड पुराण पृष्ठ 39/साधना प्रेस स्कन्ध पुराण पृष्ठ 19


शिवजी का भेष1- मुण्डों की माला धारण करते हैं । - पद्म पुराण , खण्ड 1 , श्लोक 179 , पृष्ठ 324

शिवजी का निवास
1- शिवजी श्मशान घाट में रहते हैं । - डायमंड प्रेस वाराह पुराण पृष्ठ 160



शिवजी का आहार 
1- शिवजी कहते हैं कि - ‘‘मैं हज़ारों घड़े शराब , सैकड़ों प्रकार के मांस से भी - ‘‘लिंग-भगामृत‘‘ के बिना सन्तुष्ट नहीं होता‘‘ 
 - वेंकेटेश्वर प्रेस कुलार्णव तन्त्र उल्लास पृष्ठ 472-
2- शिव जी अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते हैं । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण तृतीय पार्वती खण्ड अध्याय 27 पृष्ठ 235


शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध
1- सभी लोग लिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध करते हैं । -गीता प्रेस ,शिव पुराण , पृष्ठ 69, श्लोक 142-
2- शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुएं ग्रहण करना शास्त्र सम्मत नहीं है । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110
3- शिव जी को आहुति देने वाले अपवित्र हो जाएंगे । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110


शिवजी के सम्बंध में पुराणों की बातें
1- शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है । -कला प्रेस , सर्व सिद्धान्त संग्रह, पृष्ठ 132-
2- जो लोग शिव को संसार की रक्षा करने वाला मानते हैं , वे कुछ भी नहीं जानते हैं । -देवी भागवत पुराण, खण्ड 1, श्लोक 6, पृष्ठ 13

3- जैसे कलि युग का प्रचार होगा वैसे ही शिव मत का प्रचार बढ़ेगा । -सूर्य पुराण, श्लोक 54, पृष्ठ 162


शिवजी सन्ध्या करते थे
सूत जी बोले - शिव जी सन्ध्या करते हैं । -पद्म पुराण खण्ड 1, श्लोक 201, पृष्ठ 328
शिवाजी की पत्नी का नाम ‘पार्वती‘ है । -ठाकुर प्रेस,शिव पुराण , तृतीय पार्वती खण्ड , अध्याय 5 , पृष्ठ 275


पार्वती के अनेक नाम
 
काली , कालिका , कामाख्या , भद्रकाली , उमा , भगवती , अम्बा , चण्डिका , चामुण्डा , विजया , मुण्डा , जया , जयन्ती , आदि ‘पार्वती‘ के ही नाम हैं ।
 -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण, द्वितीय, रूद्र संहिता, पृष्ठ 128


काली की उत्पत्ति1- रूद्र की जटा से काली उत्पन्न हो गई । -गीता प्रेस,शिव पुराण,रूद्र संहिता, पृष्ठ 151
2- नारायण की हड्डियों से काली उत्पन्न हो गई । -डायमण्ड प्रेस मार्कण्डेय पुराण पृष्ठ 108


काली का आहार
1- काली सैकडों-लक्ष अर्थात लाखों हाथियों को मुख में रखकर चबाने लगी । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण पंचम युद्ध खण्ड अध्याय 37 पृष्ठ 371
2- अम्बिका मदिरा अर्थात शराब पीती थी । -संस्कृति संस्थान , वामन पुराण , खण्ड 12 , ‘लोक 37 , पृष्ठ 250
3- काली की जीभ से कन्या पैदा हो गई । -देवी भागवत , खण्ड 2, ‘लोक 36, पृष्ठ 248


शिवलिंग और पार्वतीभगपूजा ?‘ का एक अंश लेखक : सत्यान्वेषी नारायण मुनि , स्थान व पोस्ट - सिकटा जिला - पश्चिमी चम्पारण , बिहार प्रकाशक : अमर स्वामी प्रकाशन विभाग , 1058 विवेकानन्द नगर , गाजियाबाद - 201001 मूल्य : 5 रूपये मात्र


1.यक्ष प्रश्न - आपको केवल ये ज्ञान है कि भोले बाबा का लिंग ऋषियों के श्राप के कारण गिरा था लेकिन सच्चाई ये है कि उसे ऋषियों ने डंडे पत्थर मारकर गिराया था . तभी से वह भारतवासियों से दुखी होकरभोले जी भारत छोड़ कर चीन चले गए थे और मानसरोवर पर रहने लगे थे . हिन्दू ये भी मानते हैं कि भोले भंडारी काबा में रहते हैं . हो सकता है कुछ काल के लिए वहां भी रहे हों ? यहाँ पहले लिंग काटा जाता है , लिंग वाले बाबा जी को कष्ट पहुँचाया जाता है और फिर उसकी पूजा कि जाती है .


2.यक्ष प्रश्न - हमारा भारत महान है क्योंकि यहाँ उस चीज़ की पूजा होती है जिस पर पुरुष की महानता टिकी होती है ?


3.यक्ष प्रश्न - शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए । और ब्रह्मा की उत्पत्ति शिव की नाभि से हुई है. कमाल है न ?


4.यक्ष प्रश्न - इतने सारे देवताओं का हौव्वा खड़ा हमने नहीं बल्कि आपने किया है और फिर खुद ही ब्रह्मा जी की पूजा का निषेध भी कर दिया। इन्द्र की पूजा श्री कृष्ण जी ने रूकवाई। जिसके कारण इन्द्र ने उनकी गर्भवती स्त्रियों की हत्या कर दी और उनके अनुयायियों को भी डुबाने की पूरी कोशिश की। क्यों?


5.यक्ष प्रश्न- देवी भागवत में भी देवताओं की पूजा से रोका गया है और उनकी पूजा करने वालों को जो कुछ कहा गया है वह भी आपसे छिपा नहीं है।


6.यक्ष प्रश्न- देवता खुद अपने सिवा दूसरों की पूजा होते देखकर रूष्ट होते माने जाते हैं। क्यों?


7.यक्ष प्रश्न- यदि सभी कुछ ब्रह्म की इच्छा से हो रहा है तो ब्रह्मा का सिर क्यों काटा गया ?


8.यक्ष प्रश्न- ऋषियों ने दारू वन में शाप देकर शिव जी का लिंग क्यों गिरा दिया ?


9.यक्ष प्रश्न- परमेश्वर ने कहीं लिंग पूजा करने का आदेश दिया हो या मात्र अनुमति ही दी हो तो कृपया हमें दिखायें ?


10.यक्ष प्रश्न- गौतम बुद्ध को स्वयं विष्णु जी ने ही पापावतार घोषित कर दिया है। नर्क के ख़ाली रह जाने की शिकायत सुनकर उन्होंने कहा कि मैं लोगों को पापी
बनाकर नर्क में भेजूंगा जबकि अवतार का उद्देश्य तो धर्म की और वह भी वर्णाश्रम धर्म की स्थापना बताया गया है ।
शूद्र को सम्पत्ति संग्रह और ईशवाणी के अध्ययन और उपनयन से रोक देना सदाचार नहीं कदाचार है। 


नारी के लिए विवाह को हिन्दू धर्म में एक संस्कार घोषित किया गया है। नारी के लिए सदाचार यह है कि पति की मृत्यु के बाद वह या तो सती हो जाए या बाल मुंडवाकर ऐसे ही रूखा सूखा खाकर मौत से बदतर जीवन जिए और मर जाए। शूद्र और नारी समाज का अधिकांश भाग हैं। वे सदाचारी बनने के लिए ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं।


यदि मेरी बात ग़लत लगती है तो हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हिन्दू समाज को जीने के लिये तैयार करके दिखाइये।


आप सदाचार के लिये किस का अनुसरण करना चाहेंगे ?


अपने आदर्श पुरूष का नाम बताइये ?

 क्या उनके आदर्श पर चलना संभव है ?