Monday, February 15, 2016

ज्वर या बुखार.


ज्वर या बुखार.........आयुर्वेदिक उपचार
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शरीर का एक सामान्य तापक्रम होता है, जिससे ताप बढ़े तो ज्वर का होना कहा जाता है। आयुर्वेद में ज्वर के विषय में विस्तार से विवरण दिया गया है तथा आठ प्रकार के ज्वरों की विस्तृत चर्चा भी है।ज्वर यानी बुखार या तो गलत आहार-विहार के कारण, कुपित हुए दोषों से उत्पन्न या किसी आगंतुक के कारण होता है। इसे आसानऔर मामूली रोग नहीं समझना चाहिए, अगर बुखार बिगड़ जाए, इसका उलेटा हो जाए तो जान आफत में पड़ जाती है।

ज्वर के प्रभाव से शरीर बिना परिश्रम किए ही कमजोर हो जाता है। बेहोशी-सी छाई रहती है और भोजन में अरुचि हो जाती है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार अधिकांश बुखार बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन्स यानी संक्रमण होने पर होते हैं, जैसे टायफाइड, टांसिलाइटिस, इन्फुएन्जा या मीजल्सआदि बुखार हैं। वैसे बिना संक्रमण के भी बुखार होता है, जैसे जलीयांश की कमी या थायरोटाक्सीकोसिस, मायोकार्डियल इन्फार्कशन और लिम्फोमा आदि।

यदि बुखार किसी इन्फेक्शन के कारण होता है तो ऐलोपौथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोगी को एण्टीबायोटिक दवाई दी जाती है और कोर्स के रूप में तब तक दवा दी जाती है, जब तक इनफेक्शन समाप्त नहीं हो जाता।

आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति रोग को दबाने की नहीं, रोग को कारण सहित जड़ से उखाड़ कर फेंकने की है।

आयुर्वेद ने ज्वर के 8 भेद बताए हैं यानी ज्वर होने के 8 कारण माने हैं।
1. वात 2. पित्त 3. कफ 4. वात पित्त 5. वात कफ 6. पित्त कफ 7. वात पित्त कफ। इनके दूषित और कुपित होने से तथा 8. आगन्तुक कारणों से बुखार होता है।

निज कारण शारीरिक होते हैं और आगंतुक कारण बाहरी होते हैं।

निज एवं आगन्तुक ज्वर के भेद निम्नलिखित हैं-

निज :
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1. मिथ्या आहार-विहार करने से हुआ ज्वर।
2. शरीर में दोष पहले कुपित होते हैं लक्षण बाद में प्रकट होते हैं।
3. दोष भेद से ज्वर 7 प्रकार का होता है।
4. चिकित्सा दोष के अनुसार होती हैं।

आगन्तुक :
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1. अभिघात, अभिषंग, अभिचार और अभिशाप के कारण ज्वर का होना।
2.शरीर में पहले लक्षण प्रकट होते हैं, बाद में दोषों का प्रकोप होता है।
3. कारण भेद से अनेक प्रकार का होता है।
4. चिकित्सा का निर्णय कारण के अनुसार होता है।

ज्वर 104 या अधिक डिग्री तक पहुंच गया हो तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी बार-बार रखने, पैरों के तलुओं में लौकी का गूदा पानी के छींटे मारते हुए घिसने और बाद में दोनों तलुओंमें 1-1 चम्मच शुद्ध घी मसलकर सुखा देने से ज्वर उतर जाता है या हल्का तो होता ही है।
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सामान्य ज्वर के लिए औषधियाँ
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ज्वरनाशक चिकित्सा :
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साधारण ज्वर के लिए
मृत्यंजय रस 2 गोली,
महासुदर्शन घनवटी 2 गोली, महाज्वरांकुश रस 2 गोली (सबगोलियां 1-1 रत्ती वाली) सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लेना चाहिए। बच्चों को (12 वर्ष से ऊपर) 1-1 गोली और इससे कम उम्र वाले छोटे बच्चों को आधी-आधी गोली देना चाहिए। तीनों गोलियों को एक साथ लेना होगा। इन गोलियों को लेने के एक घंटे बाद अमृतारिष्ट 2 चम्मच और महासुदर्शन काढ़ा 2 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पी लेना चाहिए।

छोटी उम के बच्चों को मात्रा कम करके पिलाएँ।

पथ्य :
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मूँग की दाल और दाल का पानी, परवल, लौकी, अनार, मौसम्बी का रस, दूध, पपीता आदि हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

अपथ्य :
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भारी अन्न, तेज मिर्च-मसालेदार,तले हुए पदार्थ, खटाई, अधिक परिश्रम, ठण्डे पानी से स्नान, मैथुन, ठण्डा कच्चा पानी पीना, हवा में घूमना और क्रोध करना यह सब वर्जित है।

जीर्ण ज्वर चिकित्सा :
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बहुत दिनों तक बुखार बना रहे तो इसे जीर्ण ज्वर कहते हैं। ऐसे जीर्ण की चिकित्सा के लिए
अयमंगल रस 2 ग्राम,
स्वर्ण मालिनी वसन्त 2 ग्राम
और प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम
सबको मिलाकर बराबर वजन की 30 पुड़िया बना लें। 1-1 पुड़िया सुबह-शाम थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाट लें। पुरानेबुखार को ठीक करने के लिए यह प्रयोग उत्तम है।

शिशु ज्वर चिकित्सा :
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संजीवनी वटी 1 गोली और महासुदर्शन घन वटी आधी गोली दोनों को पीसकर 1-1 पुड़िया सुबह-शाम शहद से मिलाकर चटा दें।

घरेलू नुस्खे
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असगन्ध चूर्ण 5 ग्राम, गिलोय चूर्ण 5 ग्राम दोनों को मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में एक बार शाम को सेवन करने सेसाधारण ज्वर चला जाता है।

दारुहल्दी 50 ग्राम मोटी-मोटी जौकुट कूटकर आधा लीटर पानीमें उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो इसे उतारकर छान लीजिए। 25-25 मिली मात्रा में दिन भर में चार बार पिलाएं और ओढ़कर सो जाने को कहें। थोड़ी देर के बाद पसीना आएगा और बुखार उतर जाएगा।

अडूसे के पत्ते और आँवला दोनों 25-25 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूटकर जौकुट कर लें। इसे मिट्टी के पात्र में डालकर रख दें। 8 घंटे बाद इसे मसल-छानकर पिसी मिश्री मिलाकररोगी को पिलाना चाहिए। इससे ज्वर उतर जाता है।

एक बहुत ही अच्छा और अनेक बार का अनुभूत सफल सिद्ध नुस्खा है, जो सर्दी, जुकाम, टांसिलाइटिस, गले की खराश आदि के कारण होने वाली हरारत, हड़फुटन, शरीर का दर्द और बुखार आदि व्यधियां निरापद ढंग से ठीक कर देता है। यह नुस्खा बच्चे, बड़े, बूढ़े सभी के लिए उपयोगी है-

तुलसी की 11 पत्ती, लौंग 2 नग, अदरक का रस आधा चम्मच या सोंठ का चूर्ण आधा चम्मच और पाव (चौथाई) चम्मच सेंधा नमक, इनसबको 2 कप पानी में डालकर उबालें। जब एक कप पानी बचे तब छानकर ठण्डा कर लें। इसमें दो चम्मच शहद या पिसी मिश्री मिला लें। दो खुराक में सुबह शाम 2-3 दिन पीने से सभी व्याधियां चली जाती हैं।

पीपल का चूर्ण 3 ग्राम थोड़े से अदरक में मिला लें। इसमें 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटें। इससे बुखार और खांसी दोनों में आराम हो जाता है।

बच्चों को बुखार के साथ सर्दी-खांसी भी हो तो बेल के पत्तों का रस निकालकर शहद के साथ दिन में 2-3 बार चटाना चाहिए।

अजवायन 25 ग्राम एक गिलास पानी में डालकर उबालें। अच्छी तरह से उबालकर छान लें। रोगी को 4-4 चम्मच दिन में तीन बार पिलाने से ज्वर की बेचैनी दूर होती है और ज्वर दूर होता है।

जीर्ण ज्वर में बड़ी इलायची के बीज 10 ग्राम, बेल की जड़ की छाल 10 ग्राम, पुनर्नवा की जड़ 10 ग्राम तीनों को कूटकर काढ़ा बना लें। इसे 4-4 चम्मच दिन में तीन बार पिएं। इस प्रयोग से पुराना बुखार भी चला जाता है।

गाय के दूध में जीरे को डालकर पका लें और जीरे को सुखाकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण में समभाग मिश्री पीसकर मिला लें। इसे 1-1 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ लेने से पुराना बुखार चला जाता है।

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