Wednesday, December 31, 2014

क्या सच मे 2015 आ गया ??

मित्रो सभी लोग देखा-देखी 2015 new year की बधाइयाँ दे रहे है !
अर्थात 2014 साल बीत गए 2015 शुरू हो गया ?
लेकिन 2014 साल किसके बीत गए ?
2014 साल पहले क्या था ? क्या इस धरती को बने सिर्फ 2014 साल बीते हैं ?
दरअसल 2014 साल पहले ईसाई धर्म की शुरुवात हुई थी और क्योंकि अंग्रेज़ो ने भारत को 250 साल गुलाम बनाया था इसीलिए आज ये उनही का कैलंडर हमारे देश चल रहा है !
जबकि हम हिन्दू (सनातनी ) तो जब से से धरती बनी है तब से है !
_______________________________
खैर आप आते है मुख्य बात पर !
क्या सच मे 2015 आ गया ??
2015 तो क्या भी तो 2014 भी नहीं आया !!
मित्रो आपने थोड़ा भी विज्ञान पढ़ा हो तो ये बात झट से आपके समझ मे आ जाएगी !! की 2015 आया ही नहीं बल्कि 2014 भी नहीं आया !!
आइए अब मुख्य बिन्दु पर आते हैं ! पहले ये जानना होगा कि एक वर्ष पूरा कब होता है ??? और क्यों होता है ???
एक वर्ष 365 दिन का क्यों होता है ??
और एक दिन 24 घंटे का ही क्यों होता है ??
तो पहले बात करते हैं 1 दिन 24 घंटे का क्यों होता है ?
तो मित्रो आपने पढ़ा होगा की हमारी जो धरती है ये अन्य ग्रहों की भांति सूर्य के चारों और घूम रही है !! और चारों और घूमते-घूमते अपने आप मे भी घूम रही है ! इस वाक्य को फिर समझे कि एक तो पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ गोल-गोल घूम रही है और चारों तरफ चक्र लगाते-लगाते अपने आप मे भी घूम रही है !! अर्थात आपने -आप मे घूमने के साथ साथ सूर्य के चारों और घूम रही है !
पृथ्वी अपने अक्ष(अपने आप ) मे घूमने में 24 घंटे का समय लेती है,ध्यान से समझे अपने आप मे घूमते हुये पृथ्वी का जो हिस्सा सूर्य की तरफ होता है वहाँ दिन होता है और दूसरी तरफ रात !!
जिसे हम एक दिनांक(एक दिन ) मान लेते हैं। तो इस तरह पृथ्वी के अपने आप मे एक चक्र पूरा होने पर एक दिन पूरा हो जाता है जो की 24 घंटे का होता है !!
अब बात करते एक साल 365 दिन का कैसे होता है ??
तो जैसा की हमने ऊपर बताया की अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ पृथ्वी सूर्य के चारों और भी घूम रही है ! सूर्य के चारों ओर पूरा एक चक्कर लगाने में पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे का समय लेती है।
अब 365 तो समझ आता है लेकिन अब जो 6 घंटे है इसका कुछ adjust करने का हिसाब किताब बनता नहीं तो इन एक साल को 365 दिन का ही मान लिया ! तब ये फैसला अब जो हर साल 6 घंटे बच जाते है तो चार साल बाद इन 6+6+6+6 =24 घंटे 24 घंटों का पूरा एक दिन बन जाता है, !
इसलिए हर चार साल बाद leap year आता है जब फरवरी महीने मे एक दिन बढ़ा कर जोड़ देते हैं ओर हर चार वर्ष बाद 29 फरवरी नामक दिनांक के दर्शन करते हैं।बस सभी समस्याओं की जड़ यह 29 फरवरी ही है। इसके कारण प्रत्येक चौथा वर्ष 366 दिन का हो जाता है।
यह कैसे संभव है? सोलर कलेंडर के हिसाब से तो एक वर्ष वह समय है, जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपना एक चक्कर पूरा करती है। चक्कर पूरा करने में 366 दिन नहीं अपितु 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है। इस लिहाज से तो एक साल जिसे हम 365 दिन का मानते आये हैं, वह भी गलत है। परन्तु फिर भी, क्योंकि इन अतिरिक्त 6 घंटों को चार साल बाद एक दिनांक (दिन )के रूप में किसी वर्ष में शमिल नहीं किया जा सकता इसलिए प्रत्येक चौथे वर्ष ही इनके अस्तित्व को स्वीकारना पड़ता है।
फिर भी किसी प्रकार इन 6 घंटों को एडजस्ट करने के लिए प्रत्येक चार वर्ष बाद 29 फरवरी का जन्म होता है। अब यहाँ आप देखिये की हर साल हामारे पास 6 घंटे फालतू बच रहे थे !
तो 4 साल बाद 6+6+6+6 घंटे जोड़ 24 घंटे का एक दिन बनाकर leap year बना दिया ! साल का एक दिन बढ़ा दिया !
अब हर साल जो 6 घंटे बच रहे थे वो तो 4 साल बाद adjust कर दिये ! लेकिन हर चार साल बाद 1 पूरा दिन जो फालतू बन रहा है उसे कहाँ adjust करेंगे ??
अब अगर 4 साल बाद हमारे पास एक दिन फालतू बच रहा है
इसी प्रकार 100 साल बाद 25 दिन ज्यादा बच गए !
और इसी प्रकार 200 साल बाद 50 दिन ज्यादा बच !
400 साल बाद 100 दिन फालतू बच गए !
800 साल बाद 200 दिन फालतू !
1200 साल बाद 300 दिन फालतू
और 365 x 4 = 1460 वर्षों के बाद ( 365 दिन ) एक पूरा वर्ष भी तो बना देता है।
अब हर साल 6 घंटे जो फालतू बच जाते थे उसे हम हम प्रत्येक चार साल बाद 29 फरवरी के रूप में एक दिन बढ़ा कर एडजस्ट कर रहे थे। इस हिसाब से तो प्रत्येक 1460 वर्षों के बाद पूरा एक बर्ष फालतू बन जाता है l leap year मे एक दिन बढ़ाने की तरह 1460 साल बाद पूरा एक वर्ष बढ़ना चाहिए (adjust होना चाहिए ! अत: अभी 2015 नहीं, 2014 ही होना चाहिए।
क्योंकि ईस्वी संवत(ईसाइयो का जन्म ) मात्र 2015 वर्ष पुराना है, अत: अभी 2013 की सम्भावना नहीं है। क्योंकि इसके लिए 2920 वर्ष का समय लगेगा।
क्या झोलझाल है यह सब?
दरअसल सोलर कलेंडर के अनुसार दिनांक, माह व वर्ष केवल पृथ्वी व सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं। जबकि इस पूरे ब्रह्माण्ड में अन्य आकाशीय पिंडों को नाकारा नहीं जा सकता। इनका भी तो कोई रोल होना ही चाहिए हमारे कलेंडर में। इसीलिए विक्रम संवत में हमारे हिंदी माह पृथ्वी व सूर्य के साथ-साथ राहु, केतु, शनि, शुक्र, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, चंद्रमा आदि के अस्तित्व को स्वीकार कर दिनांक निर्धारित करते हैं।पृथ्वी पर होने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार ही महीनों को निर्धारित किया जाता है न कि लकीर के फ़कीर की तरह जनवरी-फरवरी में फंसा जाता है।
आप अँग्रेजी की कोई भी डिक्शनरी उठाईए !!
Sept का अर्थ- सात
Oct, का अर्थ -आठ
Nov, का अर्थ -नौ
Dec का अर्थ - दस
होता है
किन्तु जब महीनो की बात आती है तो
Sept, को नौवाँ,
Oct, को दसवां
Nov को ग्यारहवा ,
Dec को बारवहाँ महीना माना जाता है !!
जबकि इन्हें क्रमश: सातवाँ, आठवा, नवां व दसवां महिना होना चाहिए था।
दरअसल ईस्वी संवत(ईसाईयों के जन्म ) के प्रारंभ में एक वर्ष में दस ही महीने हुआ करते थे। अत: September, Octuber, November व December क्रमश: सातवें, आठवे, नवें व दसवें महीने हुआ करते थे।
किन्तु अधूरे ज्ञान के आधार पर बना ईस्वीं संवत(ईसाई लोग ) जब इन दस महीनों से एक वर्ष पूरा न कर पाया तो आनन-फानन (जल्दी जल्दी में ) 31 दिन के जनवरी व 28 दिन के फरवरी का निर्माण किया गया व इन्हें वर्ष के प्रारम्भ में जोड़ दिया गया।
फिर वही अतिरिक्त 6 घंटों को 29 फ़रवरी के रूप में इस कैलंडर में शामिल किया गया। ओर फिर वही झोलझाल शुरू।
इसीलिए पिछले वर्ष भी मैंने लोगों से यही अनुरोध किया था कि 1 जनवरी को कम से कम मुझे तो न्यू ईयर विश न करें। तुम्हे अज्ञानी बन पश्चिम का अन्धानुकरण करना है तो करते रहो 31 दिसंबर की रात दारू, डिस्को व बाइक पार्टी। और क्या आपने कभी अपने पड़ोसी के बच्चे का जन्मदिन मनाया है ??? तो फिर ये ईसाई अँग्रेजी नव वर्ष क्यों ???
क्या इस दुनिया को बने हुए सिर्फ 2014 वर्ष हुए है ???
नहीं !ईसाई धर्म की शुरुवात 2014 वर्ष पहले हुई है !! जब हम हिन्दू ,भारतीय और हमारी संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितनी ये धरती !!तो खैर !ईसाई धर्म की शुरुवात 2014 वर्ष पहले हुई है !!तब यह झमेला कैलंडर शुरू हुआ है !! और क्यों अंग्रेजों ने भारत पर 250 साल राज किया था और क्योंकि अंग्रेज़ो के जाने के बाद आजतक भारत मे सभी अँग्रेजी कानून वैसे के वैसे ही चल रहे है !! तो ये अँग्रेजी कैलंडर भी चल रहा है !! ये एक गुलामी का प्रतीक है इस देश मे !!
हम अपने सभी धार्मिक पवित्र कार्य विवाह की तारीक निकलवाना ,बच्चे का चोला , और यहाँ तक हमारे सारे त्योहार भारतीय हिन्दू कैलंडर के अनुसार मानाते है ! तभी तो ये त्योहार हर साल अँग्रेजी कैलंडर के अनुसार अलग अलग तारीक को आते है !! जब भारतीय कैलंडर के अनुसार उसी तारीक वही होती है वो बात अलग है ज़्यादातर लोगो को भारतीय कैलंडर देखना नहीं आता क्यों कि उनको पढ़ाया नहीं गया तो उनको समझ नहीं आता जबकि हमारा भारतीय ,हिन्दू कैलंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक scientific है !! फिर भी हम मानसिक रूप से अंग्रेज़ियत के गुलाम है ! और उनके पहरावे उनके त्योहार, हर चीज उनकी नकल करते हैं !!
हम उन लोगो की मजबूरी को फैशन और आधुनिकता समझ रहे है !! इस एक वाक्य को अगर
आपने पूर्ण रूप से समझना है कि कैसे हम उनकी मजबूरीयों को फैशन समझते है !!
उसके लिए यहाँ click करे और राजीव भाई का ये व्याख्यान जरूर जरूर सुने !!
नोट : गृहों की स्थिति के आधार पर हिंदी मास बने हैं, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि ज्योतिष विद्या को सर्वश्र मान ठाले बैठ जाएं। हमारी संस्कृति कर्म प्रधान है। सदी के सबसे बड़े हस्तरेखा शास्त्री पंडित भोमराज द्विवेदी ने भी कहा है कि कर्मों से हस्त रेखाएं तक बदल जाती हैं।

Thursday, December 25, 2014

भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण की खूनी कहानी ।

 ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ ।

मुहम्मद बिन कासिम (७१२-७१५)
मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत में
चलाये गये जिहाद और धर्मान्तरण का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासकार
अल क्रूफी द्वारा अरबी के 'चच नामा' इतिहास प्रलेख
में लिखा गया है। इस प्रलेख का अंग्रेजी में अनुवाद
एलियट और डाउसन ने किया था।

सिन्ध में जिहाद
सिन्ध के कुछ किलों को जीत लेने के बाद बिन कासिम
ने ईराक के गर्वनर अपने चाचा हज्जाज को लिखा था-
'सिवस्तान और सीसाम के किले पहले ही जीत लिये
गये हैं। हजारों गैर-मुसलमानों का धर्मान्तरण कर दिया गया है
या फिर उनका वध कर दिया गया है। मूर्ति वाले
मन्दिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं,
बना दी गई हैं।
(चच नामा अल कुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १
पृष्ठ १६४)
जब बिन कासिम ने सिन्ध विजय की, उसने बहुत
से कैदियों को, विशेषकर हिन्दू महिला कैदियों को मुसलमानों के विलास के लिए अपने
देश भेज दिया।
राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ- परिमल
देवी और सूरज देवी जिन्हें खलीफा के हरम
को सम्पन्न करने के लिए हज्जाज को भेजा गया था जो युद्ध के लूट के माल के पाँचवे भाग के रूप में
इस्लामी शाही खजाने के भाग के रूप में भेजा गया था।
चच नामा का विवरण इस प्रकार है- हज्जाज की बिन
कासिम को स्थाई आदेश थे कि हिन्दुओं के प्रति कोई
कृपा नहीं की जाए, उनकी गर्दनें काट दी जाएँ और
महिलाओं को और बच्चों को कैदी बना लिया जाए'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ १७३)
हज्जाज की ये शर्तें कुरान के आदेशों के अनुरूप ही थीं। इस विषय में
कुरान का आदेश है-' जब कभी तुम्हें मिलें,
मूर्ति पूजकों का वध कर दो। उन्हें
बन्दी बना लो, घेर लो, रोक लो, घात
के हर स्थान पर उनकी प्रतीक्षा करो' (सूरा ९ आयत
५) और 'उनमें से जिस किसी को तुम्हारा हाथ पकड़ ले
उन सब को अल्लाह ने तुम्हें लूट के माल के रूप
दिया है।'
(सूरा ३३ आयत ५८)
रेवार की विजय के बाद कासिम वहाँ तीन दिन रुका।
तब उसने छः हजार हिन्दुओं का कत्ल किया। उनके
अनुयायी, आश्रित, महिलायें और बच्चे सभी गिरफ्तार
कर लिये गये। जब कैदियों की गिनती की गई तो वे
तीस हजार निकले। जिनमें चालीस हिन्दू सरदारों की पुत्रियाँ थी उन्हें हज्जाज के पास भेज
दिया गया।
(वही पुस्तक पृष्ठ १७२-१७३)
कराची का शील भंग, लूट पाट एवम् विनाश
'कासिम की सेनायें जैसे ही देवालयपुर (कराची) के
किले में पहुँचीं, उन्होंने कत्लेआम, शील भंग, लूटपाट
का मदनोत्सव मनाया। यह सब तीन दिन तक चला।
सारा किला एक जेल खाना बन गया जहाँ शरण में आये
सभी 'काफिरों' - सैनिकों और नागरिकों - का कत्ल
और अंग भंग कर दिया गया। सभी काफिर महिलाओं
को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुस्लिम
योद्धाओं के मध्य बाँट दिया गया। मुख्य मन्दिर
को मस्जिद बना दिया गया और उसी सुर्री पर
जहाँ भगवा ध्वज फहराता था, वहाँ इस्लाम
का हरा झंडा फहराने लगा। 'काफिरों' की तीस हजार
औरतों को बग़दाद भेज दिया गया।'
(अल-बिदौरी की फुतुह-उल-बुल्दनः अनु. एलियट और
डाउसन खण्ड १)
ब्राहम्नाबाद में कत्लेआम और लूट
'मुहम्मद बिन कासिम ने सभी काफिर (हिन्दू) सैनिकों का वध कर दिया और उनके अनुयायियों और
आश्रितों को बन्दी बना लिया। सभी बन्दियों को दास
बना दिया और प्रत्येक के मूल्य तय कर दिये गये। एक
लाख से भी अधिक 'काफिरों' को दास बनाया गया।'
(चचनामा अलकुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १
पृष्ठ १७९)

सुबुक्तगीन (९७७-९९७)
काफिर हिन्दुओं को इस्लाम की रौशनी देने, और
अपवित्रता से पवित्र करने के लिए जयपाल
की राजधानी लम्घन नामक शहर, जो अपनी महान शक्ति और भरपूर दौलत के लिए विख्यात था, की ओर अग्रसर हुआ।
उसने उसे जीत लिया, और निकट के स्थानों, जिनमें
काफ़िर बसते थे, में आग लगी दी,
मूर्तिधारी मन्दिरों को ध्वंस कर दिया और उनमें
इस्लाम स्थापित कर दिया। वह आगे की ओर बढ़ा और
उसने दूसरे शहरों को जीता और नीच हिन्दुओं का वध
किया; मूर्ति पूजकों का विध्वंस किया और बचे हुओं को इस्लाम में दीक्षित किया।
हिन्दुओं को घायल करने और कत्ल करने के बाद लूटी हुई सम्पत्ति के मूल्य को गिनते
गिनते उसके हाथ ठण्डे पड़ गये। अपनी विजय
को पूरा कर वह लौटा और इस्लाम के लिए प्राप्त
विजयों के विवरण की उसने घोषणा की। हर किसी ने
विजय के परिणामों के प्रति सहमति दिखाई और
आनन्द मनाया और अल्लाह को धन्यवाद दिया।'
(तारीख-ई-यामिनीः महमूद का मंत्री अल-उत्बी अनु.
एलियट और डाउसन खण्ड २ पृष्ठ २२, और तारीख-
ई-सुबुक्त गीन स्वाजा बैहागी अनु. एलियट और
डाउसन खण्ड २)

गज़नी का महमूद (९७७-१०३०)
भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन
उसके प्रधानमंत्री अल-उत्बी द्वारा बड़ी सूक्ष्म
सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट
और डाउसन द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने
ग्रन्थ, 'दी स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स
ओन हिस्टोरियन्स, के खण्ड २ में उपलब्ध
कराया गया है।'
पुरुषपुर (पेशावर) में जिहाद
अल-उत्बी ने लिखा- ' अभी मध्याह भी नहीं हुआ
था कि मुसलमानों ने 'अल्लाह के शत्रु', हिन्दुओं के
विरुद्ध जिहाद किया और उनमें से पन्द्रह हजार को काट
कर कालीन की भाँति भूमि पर
बिछा दिया ताकि शिकारी जंगली जानवर और
पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप में खा सकें। अल्लाह ने
कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह
गिनती की सभी सीमाओं से परे है यानि कि अनगिनत
है जिसमें पाँच लाख दास, सुन्दर पुरुष और महिलायें हैं।
यह 'महान' और 'शोभनीय' कार्य वृहस्पतिवार मुहर्रम
की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ'
(अल-उत्बी-की तारीख-ई-यामिनी, एलियट और
डाउसन खण्ड पृष्ठ २७)
नन्दना की लूट
अल-उत्बी ने लिखा- 'जब सुल्तान ने हिन्द
को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान
पर मस्जिदें खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन
लोगों को, जिनके पास मूर्तियाँ थीं, दण्ड देने
का निश्चय किया। असंखय, असीमित व अतुल लूट के
माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने
अधिक थे कि इनका मूल्य बहुत घट गया और वे बहुत
सस्ते हो गये; और अपने मूल निवास स्थान में इन
अति सम्माननीय व्यक्तियों को, अपमानित
किया गया कि वे मामूली दूकानदारों के दास बना दिये
गये। किन्तु यह अल्लाह की कृपा ही है उसका उपकार
ही है कि वह अपने पन्थ को सम्मान देता है और गैर-
मुसलमानों को अपमान देता है।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ३९)
थानेश्वर में (कत्लेआम) नरसंहार
अल-उत्बी लिपि बद्ध करता है- 'इस कारण से
थानेश्वर का सरदार अपने अविश्वास में-अल्लाह
की अस्वीकृति में-उद्धत था। अतः सुल्तान उसके
विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकि वह इस्लाम
की वास्तविकता का माप दण्ड स्थापित कर सके और
मूर्ति पूजा का मूलोच्छेदन कर सके। गैर-
मुसलमानों (हिन्दु बौद्ध आदि) का रक्त इस प्रचुरता,अधिकता व बहुलता से बहा कि नदी के पानी का रंग
परिवर्तित हो गया कि और लोग उसे पी न सके।
यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले
हिन्दुओं के भागने के चिह्न भी गायब न हो गये होते
तो न जाने कितने और शत्रुओं का वध हो गया होता। जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया केवल वही जीवित रह पाये।
अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने
सर्वश्रेष्ठ पन्थ, इस्लाम, की सदैव के लिए
स्थापना की
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ४०-४१)
फरिश्ता के मतानुसार, 'मुहम्मद की सेना, गजनी में,
दो लाख बन्दी लाई थी जिसके कारण गजनी एक
भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक
सैनिक अपने साथ अनेकों हिन्दू दास व दासियाँ लाया था।
(फरिश्ता : एलियट और डाउसन - खण्ड I पृष्ठ २८)
सिरासवा में नर संहार
अल-उत्बी आगे लिखता है- 'सुल्तान ने अपने
सैनिकों को तुरन्त आक्रमण करने का आदेश दिया।
परिणामस्वरूप अनेकों गैर-मुसलमान बन्दी बना लिये
गये और मुसलमानों ने लूट के माल की तब तक कोई
चिन्ता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों,
(हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासकों का अनन्त वध
करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल
खोजने के लिए अल्लाह के मित्रों ने पूरे तीन दिनों तक
वध किये हुए अविश्वासियों (हिन्दुओं) के
शवों की तलाशी ली...
बन्दी बनाये गये व्यक्तियों की संख्या का अनुमान इसी तथ्य से
लगाया जा सकता है कि प्रत्येक दास दो से लेकर दस
दिरहम तक में बिका था। बाद में इन्हें गजनी ले
जाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहरों से व्यापारी इन्हें
खरीदने आये थे।...गोरे और काले, धनी और निर्धन,
दासता के एक समान बन्धन में, सभी को मिश्रित कर
दिया गया।' हिन्दू औरतों के विक्रय के लिए अलग से बाजार लगाये गये। सुन्दर औरतें अच्छे मूल्य में बिकीं।शेष का वध कर दिया गया।
(अल-उत्बी : एलियट और डाउसन - खण्ड ii पृष्ठ
४९-५०)
अल-बरूनी ने लिखा था- ' महमूद ने
भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह विध्वंस कर दिया।
इतना आश्चर्यजनक शोषण व विध्वंस
किया था कि हिन्दू धूल के कणों की भाँति चारों ओर
बिखर गये थे। हिन्दुओं के शव और के कटे हुए अंग-प्रत्यंग नगरों के हर भाग में बिखर जाते थे।'
(अलबरूनी-तारीख-ई-हिन्द अनु. अल्बरुनीज़ इण्डिया,
बाई ऐडवर्ड सचाउ, लन्दन, १९१०)
सोमनाथ की लूट
'सुल्तान ने मन्दिर में विजयपूर्वक प्रवेश किया,
शिवलिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितना हो सका उतनी सम्पत्ति को आधिपत्य में कर
लिया। वह सम्पत्ति अनुमानतः दो करोड़ दिरहम थी।
बाद में मन्दिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में
मिला दिया, शिवलिंग के टुकड़ों को गजनी ले गया,
जिन्हें जामी मस्जिद की सीढ़ियों के लिए प्रयोग किया'
(तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, दी स्ट्रगिल फौर ऐम्पायर-
भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१)

मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६)
हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, 'ताज-उल-
मासीर', में मुहम्मद गौरी के द्वारा भारत के विजय का विस्तृत वर्णन
किया है।
हसन निज़ामी ने लिखा ' कि इस्लाम के दायित्वों के निर्वाह के लिए
जैसा वीर पुरुष चाहिए वह, सुल्तानों के सुल्तान मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे
अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाहों में से
छांटा था, 'क्योंकि उसने अपने आपको इस्लाम के शत्रुओं
के सम्पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त
किया था। उसने हिन्दुओं के हदयों के रक्त से भारत
भूमि को इतना भर दिया था, कि कयामत के दिन तक
यात्रियों को नाव में बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर
नदी को पार करना पड़ेगा। उसने जिस किले पर
आक्रमण किया उसे जीत लिया, मिट्टी में
मिला दिया और उस (किले) की नींव व
खम्मों को हाथियों के पैरों के नीचे रोंद कर भस्मसात
कर दिया; और मूर्ति पूजकों के सारे विश्व
को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क
की अग्नि में झोंक दिया; मन्दिरों, मूर्तियों व
आकृतियों के स्थान पर मस्जिदें बना दी।'
(ताज-उल-मासीर : हसन निजामी, अनु. एलियट और
डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २०९)
अजमेर पर इस्लाम की बलात् स्थापना
हसन निजामी ने लिखा था- 'इस्लाम
की सेना पूरी तरह विजयी हुई और एक लाख हिन्दू
तेजी के साथ नरक की अग्नि में चले गये...इस विजय
के बाद इस्लाम की सेना आगे अजमेर की ओर चल
दी जहाँ हमें लूट में इतना माल व सम्पत्ति मिले
कि समुद्र के रहस्यमयी कोषागार और पहाड़ एकाकार
हो गये।
'जब तक सुल्तान अजमेर में रहा उसने
मन्दिरों का विध्वंस किया और उनके स्थानों पर
मस्जिदें बनवाईं।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २१५)
देहली में मन्दिरों का ध्वंस
हसन निजामी ने आगे लिखा-' विजेता ने दिल्ली में
प्रवेश किया जो धन सम्पत्ति का केन्द्र है और
आशीर्वादों की नींव है। शहर और उसके आसपास के
क्षेत्रों को मन्दिरों और मूर्तियों से
तथा मूर्ति पूजकों से मुक्त
बना दिया यानि कि सभी का पूर्ण विध्वंस कर दिया।
एक अल्लाह के पूजकों (मुसलमानों) ने मन्दिरों के
स्थानों पर मस्जिदें खड़ी करवा दीं।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)
वाराणसी का विध्वंस
'उस स्थान से आगे शाही सेना बनारस की ओर
चली जो भारत की आत्मा है और यहाँ उन्होंने एक
हजार मन्दिरों का ध्वंस किया तथा उनकी नीवों के
स्थानों पर मस्जिदें बनवा दीं; इस्लामी पंथ के केन्द्र
की नींव रखी।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२३)
हिन्दुओं के सामूहिक वध के विषय में हसन
निजामी आगे लिखता है, ' तलवार की धार से हिन्दुओं
को नर्क की आग में झोंक दिया गया। उनके सिरों से
आसमान तक ऊंचे तीन बुर्ज बनाये गये, और उनके
शवों को जंगली पशुओं और पक्षियों के भोजन के लिए
छोड़ दिया गया।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २९८)
इस सम्बन्ध में मिन्हाज़-उज़-सिराज़ ने
लिखा था- 'दुर्गरक्षकों में से जो बुद्धिमान एवं कुशाग्र
बुद्धि के थे, उन्हें धर्मान्तरण कर मुसलमान
बना लिया किन्तु जो अपने पूर्व धर्म पर आरूढ़ रहे,
उन्हें वध कर दिया गया। '
(तबाकत-ई-नसीरी-मिन्हाज़, अनु. एलियट और
डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २२८)
गुजरात में गाज़ी लोग (११९७)
गुज़रात की विजय के विषय में हसन निजामी ने लिखा-
' अधिकांश हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया और
लगभग पचास हजार को तलवार द्वारा वध कर नर्क
भेज दिया गया, और कटे हुए शव इतने थे कि मैदान
और पहाड़ियाँ एकाकार हो गईं। बीस हजार से अधिक
हिन्दू, जिनमें अधिकांश महिलायें ही थीं, विजेताओं के
हाथ दास बन गये।
(वही पुस्तक पृष्ठ २३०)
देहली का पवित्रीकरण व इस्लामीकरण
'तब सुल्तान देहली वापिस लौटा उसे हिन्दुओं ने
अपनी हार के बाद पुनः जीत लिया था। उसके आगमन
के बाद मूर्ति युक्त मन्दिर का कोई अवशेष व नाम न
बचा। अविश्वास के अन्धकार के स्थान पर पंथ
(इस्लाम) का प्रकाश जगमगाने लगा।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २३८-३९)



इस्लामी शैतानों की सूची बहुत लम्बी होने के कारण प्रथम भाग में केवल इतना ही। अत्याचार एवं धर्मान्तरण की कथा को इससे अधिक संक्षिप्त नहीं किया जा सका।

Friday, December 19, 2014

गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त ( Law Of Gravitation ) :-

गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त ( Law Of Gravitation ) :-
वेद और वैदिक आर्ष ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम को समझाने के लिये पर्याप्त सूत्र हैं । परन्तु जिनको न जानकर हमारे आजकल के युवा वर्ग केवल पाश्चात्य वैज्ञानिकों के पीछे ही श्रद्धाभाव रखते हैं । जबकि यह करोड़ों वर्ष पहले वेदों में सूक्ष्म ज्ञान के रूप में ईश्वर ने हमारे लिये पहले ही वर्णन कर दिया है । तो ऐसे मूर्ख लोग जिसको Newton's Law Of Gravitation कहते फिरते हैं । वह वास्तव में Nature's Law Of Gravitation होना चाहिये । तो लीजिये हम अनेकों प्रमाण देते हैं कि हमारे ऋषियों ने जो बात पहले ही वेदों से अपनी तपश्चर्या से जान ली थी उसके सामने ये Newton महाराज कितना ठहरते हैं ।
आधारशक्ति :- बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त को आधारशक्ति नाम से कहा गया है ।
इसके दो भाग किये गये हैं :-
(१) ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग :- ऊपर की ओर खिंचकर जाना । जैसे अग्नि का ऊपर की ओर जाना ।
(२) अधःशक्ति या निम्नग :- नीचे की ओर खिंचकर जाना । जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना ।
आर्ष ग्रन्थों से प्रमाण देते हैं :-
(१) यह बृहत् उपनिषद् के सूत्र हैं :-
अग्नीषोमात्मकं जगत् । ( बृ० उप० २.४ )
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः । तथैव निम्नगः सोमः । ( बृ० उप० २.८ )
अर्थात :- सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है । अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति । इन दोनो शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है ।
(२) १५० ई० पूर्व महर्षि पतञ्जली ने व्याकरण महाभाष्य में भी गुरूत्वाकर्षण के सिद्धान्त का उल्लेख करते हुए लिखा :-
लोष्ठः क्षिप्तो बाहुवेगं गत्वा नैव तिर्यक् गच्छति नोर्ध्वमारोहति ।
पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच्छति आन्तर्यतः । ( महाभाष्य :- स्थानेन्तरतमः, १/१/४९ सूत्र पर )
अर्थात् :- पृथिवी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बहुवेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है । वह पृथिवी का विकार है, इसलिये पृथिवी पर ही आ जाता है ।
(३) भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा :-
आकृष्टिशक्तिश्च महि तया यत्
खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
आकृष्यते तत् पततीव भाति
समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।। ( सिद्धान्त० भुवन० १६ )
अर्थात :- पृथिवी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथिवी पर गिरती हुई सी लगती है । पृथिवी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।
(४) वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका में कहा :-
पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः ।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।। ( पंच०पृ०३१ )
अर्थात :- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथिवी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।
(५) आचार्य श्रीपति ने अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में कहा है :-
उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेः स्थितिरन्तरिक्षे ।। ( सिद्धान्त० १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।। ( सिद्धान्त० १५/२२ )
अर्थात :- पृथिवी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता । दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथिवी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है ।
(६) ऋषि पिप्पलाद ( लगभग ६००० वर्ष पूर्व ) ने प्रश्न उपनिषद् में कहा :-
पायूपस्थे - अपानम् । ( प्रश्न उप० ३.४ )
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापानमवष्टभ्य० । ( प्रश्न उप० ३.८ )
तथा पृथिव्याम् अभिमानिनी या देवता ... सैषा पुरुषस्य अपानवृत्तिम् आकृष्य.... अपकर्षेन अनुग्रहं कुर्वती वर्तते । अन्यथा हि शरीरं गुरुत्वात् पतेत् सावकाशे वा उद्गच्छेत् । ( शांकर भाष्य, प्रश्न० ३.८ )
अर्थात :- अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे आता है । पृथिवी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है, अन्यथा वह आकाश में उड़ जाता ।
(७) यह ऋग्वेद के मन्त्र हैं :-
यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे ।
आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ३ )
अर्थात :- सब लोकों का सूर्य्य के साथ आकर्षण और सूर्य्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है । इन्द्र जो वायु , इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं । उनसे सब लोकों का दिन दिन और क्षण क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है । इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं, इधर उधर विचल भी नहीं सकते ।
यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः ।
आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे ।।३।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ५ )
अर्थात :- हे परमेश्वर ! जब उन सूर्य्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं , इसी कारण सूर्य्य और पृथिवी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं । इन सूर्य्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि परमेश्वर सब लोकों का आकर्षण और धारण कर रहा है ।
जय हो सनातन धर्म की

Monday, December 15, 2014

सौन्दर्य प्रतियोगिताओं का असर

सौन्दर्य प्रतियोगिताओं का असर ---
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मित्रो दस साल पहले भारत से कई विश्व सुंदरियां बनी इसके पीछे विदेशी कंपनियों
की सोची समझी साजिश थी .
- कई प्रसाधन बनाने वाली कम्पनियां भारत में अपना मार्केट खोज रही थी . पर
यहाँ अधिकतर महिलाएं ज़्यादा प्रसाधन का इस्तेमाल नहीं करती थी . इसलिए
उन्होंने भारत से सुंदरियों को जीता कर लड़कियों के मन में ग्लेमर की चाह
उत्पन्न की.
-
मिसेज़ इंडिया जैसी प्रतियोगिताओं से बड़ी उम्र की महिलाओं को भी टारगेट किया
गया .
- इन सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के बाद लडकियां सपने देखने लगी की वे भी मिस
इंडिया , फिर मिस वर्ल्ड, फिर हीरोइन, फिर बहुत धनी बन सकती है .
- इसके लिए वे अपने आपको स्लिम करने के चक्कर में फिटनेस सेंटर में जाने लगी
जहां क्रेश डाइटिंग , लाइपोसक्शन , गोलियां , प्लास्टिक सर्जरी जैसे महंगे और
अनैसर्गिक तरीकेबताये जाते .
- सौन्दर्य प्रसाधन इस्तेमाल करना आम हो गया
.- ब्यूटी पार्लर जाना आम हो गया .
- इस तरह हर महिला सौन्दर्य प्रसाधनों , ब्यूटी पार्लर , फिटनेस सेंटर आदि पर
हर महीने हज़ारो रुपये खर्च करने लगी .
- पर सबसे ज़्यादा बुरा असर उन महिलाओं पर पड़ा जोइन मोड़ेल्स की तरह दिखने के
लिए अपनी भूख को मार कुपोषण का शिकार हो गई .
- इसलिए आज देश में दो तरह के कुपोषण है
- एक गरीबों का जो मुश्किल से एक वक्त की रोटी जुटा पाते है और दुसरा संपन्न
वर्ग का जो जंक फ़ूड खाकर और डाइटिंग कर कुपोषण का शिकार हो रहाहै .
- यहाँ तक की नई नई माँ बनी हुई बहनों को भी वजन कम करने की चिंता सताने लगती
है . जब की यह वो समय है जब वजन की चिंता न कर पोषक खाना खाने पर , आराम पर
ध्यान देना कर माँ का हक है . ये समय ज़िन्दगी में एक या दो बार आता है और इस
समय स्वास्थ्य की देख भाल आगे की पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है . यह समय
मातृत्व का आनंद लेने का है ना की कोई नुमाइश की चीज़ बनाने का .
- ताज़ा उदाहरण है ऐश्वर्या राय . वह माँ बनाने की गरिमा और आनंद कोजी ही नहीं
पाई . मीडिया ने उनके बढ़ते वजन पर ऐसे ताने कसे की वो अपने बच्ची की देखभाल
और नए मातृत्व का आनंद लेना छोड़ वजन कम करने में जुट गई होंगी .
- अब जब इन कंपनियों का मार्केट भारत में स्थापित हो चुका है तो कोई विश्व
सुंदरी भारत से नहीं बनेगी . अब इनकी दुसरे देशों पर नज़र है .! या कभी इनको
लगे की मंदी आने लगी है तो दुबारा किसी को भारत मे से चुन ले !! क्यूंकि चीन
के बाद भारत 121 करोड़ की आबादी वाला दुनिया का सबसे बढ़ा market है !!
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तो मित्रो ये सब कार्य बहुत ही गहरी साजिश बना कर अंजाम दिया जाता है ! जिसमे
हमारा मीडिया विदेशी कंपनियो के साथ मिलकर बहुत रोल अदा करता है !
मित्रो एक तरफ मीडिया देश मे बढ़ रहे बलात्कार पर छाती पीटता है ! और दूसरी तरफ
खुद भी अश्लीलता को बढ़ावा देता है ! वो चाहे india today की मैगजीन के कवर हो
! या ये विदेशी times of india अखबार ! ये times of india आप उठा लीजिये !
रोज times of india मे आपको पहले पेज पर या दूसरे पेज पर किसी ना किसी लड़की की
आधे नंगी या लगभग पूरी नंगी तस्वीर मिलेगी ! जब की उसका खबर से कोई लेना देना
नहीं ! जानबूझ कर आधी नंगी लड़कियों की तस्वीर छापना ही इनकी पत्रकारिता रह गया
है !!
और ये ही times of india है जो भारत की संस्कृति का नाश करने पर तुला है !!
इसी ने आज से 10 -15 वर्ष पूर्व miss india, miss femina आदि शुरू किए ! जो अब
मिस वर्ड ,मिस यूनिवर्स पता नहीं ना जाने क्या क्या बन गया है !!
आज हमने इनके खिलाफ आवाज नहीं उठाई ,इनका बहिष्कार नहीं ! तो कल ये हमारी बची
कूची संस्कृति को भी निकग जाएगा !!
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Sunday, December 14, 2014

महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक तथ्य

1.महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन
सैनिक को काट डालते थे।
2.जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब
उन्होने अपनी माँ से
पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर अाए| तब
माँ का जवाब मिला ” उस
महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल
लेकर
आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के
प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे
हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ”
बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द
हो गया था | “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में
आप ये बात पढ़ सकते है |
3.महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80
किलो था और कवच का वजन 80
किलो कवच , भाला, ढाल, और हाथ में तलवार
का वजन मिलाये तो 207 किलो
4.आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच
आदि सामान उदयपुर राज घराने के
संग्रहालय में सुरक्षित हैं |
5.अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने
झुकते है तो आधा हिंदुस्तान
के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर
की ही रहेगी |
6.हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे
और अकबर की ओर से
85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |
7.राणाप्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर
भी बना जो आज हल्दी घाटी में सुरक्षित
है |
8.महाराणा ने जब महलो का त्याग किया तब उनके
साथ लुहार जाति के
हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात
राणा कि फौज के लिए तलवारे
बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और
राजस्थान में गड़लिया लोहार
कहा जाता है नमन है ऐसे लोगो को |
9.हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद
भी वहाँ जमीनों में तलवारें पायी गयी।
आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में
हल्दी घाटी में मिला |
10.महाराणा प्रताप अस्त्र शस्त्र की शिक्षा जैमल
मेड़तिया ने
दी थी जो 8000 राजपूतो को लेकर 60000 से लड़े थे।
उस युद्ध में 48000 मारे गए
थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
11.राणा प्रताप के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |
12.मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने
हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने
तीरो से रौंद डाला था वो राणाप्रताप
को अपना बेटा मानते थे और
राणा जी बिना भेद भाव के उन के साथ रहते थे आज
भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक
तरफ राजपूत है तो दूसरी तरफ भील |
13.राणा का घोडा चेतक महाराणा को 26 फीट
का दरिया पार करने के बाद
वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के
बाद भी वह दरिया पार कर
गया। जहा वो घायल हुआ वहीं आज
खोड़ी इमली नाम का पेड़ है
जहाँ मरा वहाँ मंदिर है |
14.राणा का घोडा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके
मुँह के आगे हाथी की सूंड
लगाई जाती थी यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े
थे |


15.मरने से पहले महाराणा ने खोया हुआ 85 % मेवाड
फिर से जीत
लिया था *सोने चांदी और महलो को छोड़ वो 20
साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे |
16.महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और
लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान
वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ
में |
17.मेवाड़ राजघराने के वारिस को एकलिंग
जी भगवान का दीवान
माना जाता है |
18 . छत्रपति शिवाजी भी मूल रूप से मेवाड़ से
ताल्लुक रखते थे वीर शिवाजी के
परदादा उदयपुर महाराणा के छोटे भाई थे |
19.अकबर को अफगान के शेख रहमुर खान ने
कहा था अगर तुम राणा प्रताप और
जयमल मेड़तिया को अपने साथ मिला लो तो तुम्हे
विश्व विजेता बनने से कोई
नहीं रोक सकता पर इन दोनों वीरो ने जीते
जी कभी हार नहीं मानी |
20.नेपाल का राज परिवार भी चित्तौड़ से
निकला है दोनों में भाई और खून
का रिश्ता है |
21.मेवाड़ राजघराना आज भी दुनिया का सबसे
प्राचीन राजघराना है।

प्राकृतिक उपायों से कम करें यूरिक एसिड



यूरिक एसिड कम करने के उपाय
शरीर में प्यूरिन के टूटने से यूरिक एसिड बनता है। प्यूरिन एक ऐसा पदार्थ है जो खाद्य पदार्थों में पाया जाता है और जिसका उत्पादन शरीर द्वारा स्वाभाविक रूप से होता है। यह ब्लड के माध्यम से बहता हुआ किडनी तक पहुंचता है। वैसे तो यूरिक एसिड यूरीन के माध्यम से शरीर के बाहर निकल जाता है। लेकिन, कभी-कभी यह शरीर में ही रह जाता है और इसकी मात्रा बढ़ने लगती है। यह परिस्थिति शरीर के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। यूरिक एसिड की उच्च मात्रा के कारण गठिया जैसी समस्याएं पीड़ित हो सकते है। इसलिए यूरिक एसिड की मात्रा को नियंत्रित करना आवश्यक होता है। यूरिक एसिड को कुछ प्राकृतिक उपायों द्धारा कम किया जा सकता है
सूजन को कम करें...
शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा कम करने के लिए आपको अपने आहार में बदलाव करना चाहिये। आपको अपने आहार में चेरी, ब्लूबेरी और स्ट्रॉबेरी को शामिल करें। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर में हुए शोध के अनुसार, सूजन कम करने में बैरीज आपकी मदद कर सकती है। यूरिक एसिड को कम करने में कुछ अन्य खाद्य पदार्थ भी मददगार होते हैं। जैसे अनानास में मौजूद पाचक एंजाइम ब्रोमेलाइन में एंटी इफ्लेमेंटरी तत्व होता है, जो सूजन को कम करते है
अजवाइन का सेवन...
अजवाइन यूरिक एसिड को कम करने के लिए एक और प्रभावी तरीका है क्योंकि यह प्राकृतिक मूत्रवर्धक है। यह रक्त में क्षार के स्तर को नियंत्रित कर सूजन को कम करने में मदद करती है।
ओमेगा-3 फैटी एसिड से बचें
ट्यूना, सामन, आदि मछलियों में ओमेगा-3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में होता है। इसलिए यूरिक एसिड के बढ़ने पर इन्हें खाने से बचना चाहिए। साथ ही मछली में अधिक मात्रा में प्यूरिन पाया जाता है। प्यूरिन शरीर में ज्यादा यूरिक एसिड पैदा करता है
बेकिंग सोडा का सेवनएक गिलास पानी में आधा चम्मच बेकिंग सोडा मिला लें। इसे अच्छे से मिक्स करके नियमित रूप से इसके आठ गिलास पीये। यह बेकिंग सोडा का मिश्रण यूरिक एसिड क्रिस्टल भंग करने और यूरिक एसिड घुलनशीलता को बढ़ाने में मदद करता है। लेकिन सोडियम की अधिकता के कारण आपको बेकिंग सोडा लेते समय सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि इससे आपका रक्तचाप बढ़ सकता है

प्यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थ से बचें
शरीर में यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने के लिए प्यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए। प्यूरिन एक प्राकृतिक पदार्थ है, जो शरीर को एनर्जी देता है। किडनी की समस्या होने पर प्यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थ शरीर के विभिन्न भागों में अत्यधिक यूरिक एसिड का संचय करते है। रेड मीट, समुद्री भोजन, ऑर्गन मीट और कुछ प्रकार के सेम सभी प्यूरिन से भरपूर होते हैं। परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट और सब्जियां जैसे शतावरी, मटर, मशरूम और गोभी से बचना चाहिए।
फ्रक्टोज से बचें
प्राकृतिक रूप से यूरिक एसिड को कम करने के लिए आपको फ्रक्टोज से भरपूर पेय का सेवन सीमित कर देना चाहिए। 2010 में किए गए एक शोध के अनुसार, जो लोग ज्यादा मात्रा में फ्रक्टोस वाले पेय का सेवन करते हैं उनमें गठिया होने का खतरा दोगुना अधिक होता है।
पीएच का संतुलन
शरीर में एसिड के उच्च स्तर को एसिडोसिस के रूप में जाना जाता है। यह शरीर के यूरिक एसिड के स्तर के साथ संबंधित होता है। अगर आपका पीएच स्तर 7 से नीचे चला जाता है, तो आपका शरीर अम्लीय हो जाता है। अपने शरीर क्षारीय को बनाये रखने के लिए, अपने आहार में सेब, सेब साइडर सिरका, चेरी का जूस, बेकिंग सोडा और नींबू को शामिल करें। साथ ही अपने नियमित में कम से कम 500 ग्राम विटामिन सी जरूर लें। विटामिन सी, यूरिक एसिड को यूरीन के रास्ते निकालकर इसे कम करने में सहायक होता है
खाना जैतून के तेल में पकाये
यह तो सभी जानते है कि जैतून के तेल में बना आहार, शरीर के लिए लाभदायक होता है। इसमें विटामिन ई की भरपूर मात्रा में मौजूदगी खाने को पोषक तत्वों से भरपूर बनाता है और यूरिक एसिड को कम करता है।
वजन को नियंत्रित रखें
मोटे लोग प्यूरिन युक्त आहार बहुत अधिक मात्रा में लेते हैं। और प्यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थ यूरिक एसिड के स्तर को बढ़ा देते है। लेकिन, साथ ही यह तेजी से वजन कम होने का एक कारक भी है। इसलिए आपको सभी मामलों में क्रैश डाइटिंग से बचना चाहिए। अगर आप मोटापे से ग्रस्त हैं, तो यूरिक एसिड के स्तर को बढ़ने से रोकने के लिए अपने वजन को नियंत्रित करें
शराब का कम मात्रा में सेवन
शराब आपके शरीर को डिहाइड्रेट कर देता है, इसलिए प्यूरिन से उच्च खाद्य पदार्थों के शराब की बड़ी मात्रा को लेने से बचना चाहिए। बीयर में यीस्ट भरपूर होता है, इसलिए इसके सेवन से दूर रहना चाहिये। हालांकि वाइन यूरिक एसिड के स्तर को प्रभावित नहीं करती है
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यूरिक एसिड बढ़ने पर करे प्रयोग .....!*
यूरिक एसिड, प्यूरिन के टूटने से बनता है जो खून के माध्यम से बहता हुआ किडनी तक पहुंचता है।‪#‎यूरिकएसिड‬, शरीर से बाहर, पेशाब के रूप में निकल जाता है। लेकिन, कभी - कभार यूरीक एसिड शरीर में ही रह जाता है और इसकी मात्रा बढ़ने लगती है। ऐसा होना शरीर के लिए घातक होता है।* क्या होता है यूरिक अम्ल ...?* कार्बन,हाईड्रोजन,आक्सीजन और नाईट्रोजन तत्वों से बना यह योगिक जिस का अणुसूत्र C5H4N4O3.यह एक विषमचक्रीय योगिक है जो कि शरीर को प्रोटीन से एमिनोअम्ल के रूप मे प्राप्त होता है. प्रोटीनों से प्राप्त ऐमिनो अम्लों को चार प्रमुख वर्गों में विभक्त किया गया हैउदासीन ऐमिनो अम्लअम्लीय ऐमिनो अम्लक्षारीय ऐमिनो अम्लविषमचक्रीय ऐमिनो अम्ल.* यह आयनों और लवण के रूप मे यूरेट और एसिड यूरेट जैसे अमोनियम एसिड यूरेट के रूप में शरीर मे उपलब्ध है. प्रोटीन एमिनोएसिड के संयोजन से बना होता है। पाचन की प्रक्रिया के दौरान जब प्रोटीन टूटता है तो शरीर में यूरिक एसिड बनता है जब शरीरमे प्यूरीन न्यूक्लिओटाइडोंटूट जाती है तब भी यूरिक एसिड बनता है. प्युरीन क्रियात्मक समूह होने के कारण यूरिक अम्ल एरोमेटिक योगिक होते हैं. शरीर मे यूरिक अम्ल का स्तर बढ़ जाने की स्तिथि को hyperuricemia कहते हैं. हम प्रोटीन कहाँ से प्राप्त करते है और प्रोटीन क्यों जरूरी हो शरीर के लिए ये जानना भी जरूरी हो जाता है ....?*

 मनुष्यों और अन्य जीव जंतुओं के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी आहार है. इससे शरीर की नयी कोशिकाएँ और नये ऊतक बनते हैं पुरानी कोशिकाओं और उत्तको की टूटफूट की मरम्मत के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी आहार है. प्रोटीन के अभाव से शरीर कमजोर हो जाता है और कईं रोगों से ग्रसित होने की संभावना बढ़ जाती है। प्रोटीन शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करता है. वृद्धिशील शिशुओं,बच्चो,किशोरों और गर्भवती स्त्रियों के लिए अतरिक्त प्रोटीन भोजन की मांग ज्यादा होती है परन्तु 25 वर्ष की आयु के बाद कम शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के लिए अधिक मात्रा मे प्रोटीन युक्त भोजन लेना उनके लिए यूरिक अम्लों की अधिकताजन्य दिक्कतों का खुला निमंत्रण साबित होते हैं.* रेड मीट(लाल रंग के मांस), सी फूड, रेड वाइन, दाल, राजमा, मशरूम, गोभी, टमाटर, पालक, मटर,पनीर,भिन्डी,अरबी,चावलआदि के अधिक मात्रा में सेवन से भी यूरिक एसिड बढ जाता है।उच्च यूरिक एसिड के कारण :-===================

शरीर में यूरिक ऐसिड बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं.....* भोजन के रूप मे लिए जाने वाले प्रोटीन प्युरीन और साथ मे उच्च मात्रा मे शर्करा का लिया जाना रक्त मे यूरिक एसिड की मात्रा को बढाता है.* कई लोगों मे वंशानुगत कारणों को भी यूरिक एसिड के ऊँचे स्तर के लिए जिम्मेवार माना गया है.* गुर्दे द्वारा सीरम यूरिक एसिड के कम उत्सर्जन के कारण भी इसका स्तर रक्त मे बढ़ जाता है.* उपवास या तेजी से वजन घटाने की प्रक्रिया मे भी अस्थायी रूप से यूरिक एसिड का स्तर आश्चर्यजनक स्तर तक वृद्धि कर जाताहैं.* रक्त आयरन की अधिकता भी यूरेट स्तर को बढ़ाती है जिस पर आयरन त्याग यानी रक्तदान से नियंत्रण किया जा सकता है.* पेशाब बढ़ाने वाली दवाएं या डायबटीज़ की दवाओं के प्रयोग से भी यूरिक ऐसिड बढ़ सकता है.उच्च यूरिक एसिड के नुकसान :-====================* 

इसका सबसे बड़ा नुकसान है शरीर के छोटे जोड़ों मे दर्द जिसे गाउट रोग के नाम से जाना जाता है. मान लो आप की उम्र 25 वर्ष से ज्यादा है और आप उच्च आहारी हैं रात को सो कर सुबह जागने पर आप महसूस करते है कि आप के पैर और हाथों की उँगलियों अंगूठों के जोड़ो मे हल्की हल्की चुभन जैसा दर्द है तो आप को यह नहीं मान लेना चाहिये कि यह कोई थकान का दर्द है आप का यूरिक एसिड स्तर बड़ा हुआ हो सकता है. तो अगर कभी आपके पैरों की उंगलियों, टखनों और घुटनों में दर्द हो तो इसे मामूली थकान की वजह से होने वाला दर्द समझ कर अनदेखा न करें यह आपके शरीर में यूरिक एसिड बढने का लक्षण हो सकता है. इस स्वास्थ्य समस्या को गाउट आर्थराइट्सि कहा जाता है.गाउट आर्थराइट्सि गठिया का एक रूप :-=========================*

 गाउट एक तरह का गठिया रोग ही होता है. जिस के कारण शरीर के छोटे ज्वाईन्ट्स प्रभावित होते हैं औरविशेषकर पैरों के अंगूठे का जोड़ और उँगलियों के जोड़ व उँगलियों मे जकड़न रहती है. हालाँकि इससे एड़ी, टख़ने, घुटने, उंगली, कलाई और कोहनी के जोड़ भी प्रभावित हो सकते हैं. इसमें बहुत दर्द होता है. जोड़ पर सुर्ख़ी और सूजन आ जाती है और बुख़ार भी आ जाता है. यह शरीर में यूरिक ऐसिड के बढ़ने से पैदा होती है.


~ 80 प्रकार के वात रोगों को जड से खत्म कर देगा यह प्रयोग ~
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सभी प्रकार के वातरोगों में लहसुन का उपयोग करना चाहिए।
इससे रोगी शीघ्र ही रोगमुक्त हो जाता है तथा उसके शरीर
की वृद्धि होती है।'


कश्यप ऋषि के अनुसार लहसुन सेवन का उत्तम समय पौष व माघ
महीना (दिनांक 22 दिसम्बर से 18 फरवरी तक) है।
प्रयोग विधिः 200 ग्राम लहसुन छीलकर पीस लें। 4 लीटर दूध में
ये लहसुन व 50 ग्राम गाय का घी मिलाकर दूध गाढ़ा होने तक
उबालें। फिर इसमें 400 ग्राम मिश्री, 400 ग्राम गाय का घी
तथा सोंठ, काली मिर्च, पीपर, दालचीनी, इलायची,
तमालपात्र, नागकेशर, पीपरामूल, वायविडंग, अजवायन, लौंग,
च्यवक, चित्रक, हल्दी, दारूहल्दी, पुष्करमूल, रास्ना, देवदार,
पुनर्नवा, गोखरू, अश्वगंधा, शतावरी, विधारा, नीम, सोआ व
कौंचा के बीज का चूर्ण प्रत्येक 3-3 ग्राम मिलाकर धीमी आँच
पर हिलाते रहें। मिश्रण में से घी छूटने लग जाय, गाढ़ा मावा बन
जाय तब ठंडा करके इसे काँच की बरनी में भरकर रखें।
10 से 20 ग्राम यह मिश्रण सुबह गाय के दूध के साथ लें
(पाचनशक्ति उत्तम हो तो शाम को पुनः ले सकते हैं।
भोजन में मूली, अधिक तेल व घी तथा खट्टे पदार्थों का सेवन न
करें। स्नान व पीने के लिए गुनगुने पानी का प्रयोग करें।
इससे 80 प्रकार के वात रोग जैसे – पक्षाघात (लकवा), अर्दित
(मुँह का लकवा), गृध्रसी (सायटिका), जोड़ों का दर्द, हाथ
पैरों में सुन्नता अथवा जकड़न, कम्पन, दर्द, गर्दन व कमर का दर्द,
स्पांडिलोसिस आदि तथा दमा, पुरानी खाँसी, अस्थिच्युत
(डिसलोकेशन), अस्थिभग्न (फ्रेक्चर) एवं अन्य अस्थिरोग दूर होते
हैं। इसका सेवन माघ माह के अंत तक कर सकते हैं। व्याधि अधिक
गम्भीर हो तो वैद्यकीय सलाह ले!

Banned Contraceptive Medicines


माताएँ ,बहने जरूर पढ़ें !!
मित्रो कई विदेशी कंपनियाँ हमारे देश की माताओ ,बहनो को गर्भ निरोधक उपाय बेचती हैं !(Contraceptive)
कुछ तो गोलियों (pills) के रूप मे बेचे जाते हैं ! और इसके इलवा इनके अलग अलग नाम हैं !
जैसे norplant,depo provera, I pill है एक E pill है ! ऐसे करके कुछ और अलग अलग नामो से हमारे देश की माताओ ,बहनो को ये Contraceptive बेचे जाते है !
और आपको ये जानकर बहुत दुख होगा जिन देशो की ये कंपनियाँ है ! ये सब वो अपने देश की माताओं बहनो को नहीं बेचती है ! लेकिन भारत मे लाकर बेच रही हैं !
जैसे ये depo provera नाम की तकनीक इनहोने विकसित की है गर्भ निरोधन के लिए !! ये अमेरिका की एक कंपनी ने विकसित किया है कंपनी का नाम है आबजोन ! इस कंपनी को अमेरिका सरकार ने ban किया हुआ है की ये depo provera नाम की तकनीक को अमेरिका मे नहीं बेच सकती ! तो कंपनी ने वहाँ नहीं बेचा ! और अब इसका उत्पादन कर भारत ले आए और भारत सरकार से इनहोने agreement कर लिया और अब ये धड़ले ले भारत मे बेच रहे हैं !
ये injection के रूप मे भारत की माताओ बहनो को दिया जा रहा है और भारत के बड़े बड़े अस्पतालो के डाक्टर इस injection को माताओं बहनो को लगवा रहें है ! परिणाम क्या हो रहा है ! ये माताओ ,बहनो का जो महवारी का चक्र है इसको पूरा बिगाड़ देता है और उनके अंत उनके uterus मे cancer कर देता है ! और माताओ बहनो की मौत हो जाती है !
कई बार उन माताओं ,बहनो को पता ही नहीं चलता की वो किसी डाक्टर के पास गए थे और डाक्टर ने उनको बताया नहीं और depo provera का injection लगा दिया ! जिससे उनको cancer हो गया और उनकी मौत हो गई !! पता नहीं लाखो माताओ ,बहनो को ये लगा दिया गया और उनकी ये हालत हो गई !
इसी तरह इनहोने एक NET EN नाम की गर्भ निरोधन के लिए तकनीकी लायी है ! steroids के रूप मे ये माताओ बहनो को दे दिया जाता है या कभी injection के रूप मे भी दिया जाता है ! इससे उनको गर्भपात हो जाता है ! और उनके जो पीयूष ग्रंथी के हार्मोन्स है उनमे असंतुलन आ जाता है !! और वो बहुत परेशान होती है जिनको ये NET EN दिया जाता है !
इसकी तरह से RU 496 नाम की एक तकनीक उन्होने ने आई है फिर रूसल नाम की एक है ! फिर एक यू क ले फ नाम की एक है फिर एक norplant है ! फिर एक प्रजनन टीका उन्होने बनाया है सभी हमारी माताओ ,बहनो के लिए तकलीफ का कारण बनती है फिर उनमे ये बहुत बड़ी तकलीफ ये आती है ये जितने भी तरह गर्भ निरोधक उपाय माताओ बहनो को दिये जाते हैं ! उससे uterus की मांस पेशिया एक दम ढीली पड़ जाती है ! और अक्सर मासिक चक्र के दौरान कई मताए बहने बिहोश हो जाती है ! लेकिन उनको ये मालूम नहीं होता कि उनको ये contraceptive दिया गया जिसके कारण से ये हुआ है ! और इस तरह हजारो करोड़ रुपए की लूट हर साल विदेशी कंपनियो द्वारा ये contraceptive बेच कर की जाती हैं !
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इसके इलवा अभी 3 -4 साल मे कंडोम का व्यपार विदेशी कंपनियो दावरा बहुत बढ़ गया है !! और इसका प्रचार होना चाहिए इसके लिए AIDS का बहाना है !AIDS का बहाना लेकर TV मे अखबारो मे मैगजीनो मे एक ही बात क विज्ञापन कर रहे है कि आप कुछ भी करो कंडोम का इस्तेमाल करो !
ये नहीं बताते कि आप अपने ऊपर सयम रखो ! ये नहीं बताते कि अपने पति और पत्नी के साथ वफादारी निभाओ !! वो बताते है कुछ भी करो अर्थात किसी की भी माँ , बहन बेटी के साथ करो ,बस कंडोम का इस्तेमाल करो !! और इसका परिणाम पात क्या हुआ है मात्र 15 साल मे इस देश मे 100 करोड़ कंडोम हर साल बिकने लगे हैं ! 15 साल पहले इनकी संख्या हजारो मे भी नहीं थी !
और इन कंपनियो का target ये है कि ये 100 करोड़ कंडोम एक साल नहीं एक दिन मे बिकने चाहिए !!
एड्स का हल्ला मचा कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों (साथ ही साथ देशी कम्पनियों ने भी) कण्डोम का बाजार खड़ा किया है और कई सौ करोड़ रूपये का सालाना मुनाफा पीट रही हैं। हालांकि एड्स खतरनाक बीमारी है और यौन संसर्ग के अलावा कई अन्य तरीकों से भी इसका प्रसार होता हे। जैसे इन्जेक्शन की सुई द्वारा, रक्त लेने से एवं पसीने के सम्पर्क द्वारा।
परन्तु बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की शह पर एड्स को रोकने के जिन तरीकों को ज्यादा प्रचारित किया जा रहा है उनमें हैं सुरक्षित सम्भोग और कण्डोम का प्रयोग। डाक्टर लार्ड ओ कलिंग्स के अनुसार एक बार के यौन सम्पर्क से 0.1-1 प्रतिशत ! सुई से 0.5-1 प्रतिशत, ! रक्त चढाए जाने से 0.9 प्रतिशत एड्स होने की सम्भावना रहती है। इस तरह संक्रमित व्यक्ति के साथ सम्भोग या सुई के इस्तेमाल और रक्त चढाने से एड्स होने की बराबर सम्भावनाएं रहती हैं। देश में यौन सम्बन्धों के लायक सिर्फ 30 % लोग ही हैं
जो अधिकतर अपने जीवन साथी के अलावा किसी अन्य से यौन सम्पर्क नहीं बनाते। दूसरी तरफ बच्चे से लेकर बूढे तक इन्जेक्शन की सुई का प्रयोग करते हैं अतः इस रास्ते एड्स फैलने की सम्भावनाएं बहुत अधिक हैं। इसके अलावा रक्तदान द्वारा इस बीमारी का होना लगभग तय है। और अभी भी हमारे देश में 50 प्रतिशत मामलों में रक्त बिना जांच के ही चढा दिये जाते हैं। भारत में विशेष स्थितियोें में उपर्युक्त दोनों तरीकों से एड्स प्रसार की ज्यादा सम्भावनाओं को नजर अंदाज कर यौन सम्पर्को को ही मुख्य जिम्मेदार मानना पश्चिम का प्रभाव और कण्डोम निर्माता कम्पनियों की पहुंच का ही परिणाम है। विलासी उपभोक्तावादी संस्कृति के इस दौर में कण्डोम संस्कृति और उस का प्रचार विवाहोतर यौन सम्बन्धों को बढ़ाकर इस बीमारी की जड को हरा ही बनायेंगे।
हमारे देश में लगभग 40 करोड़ रूपये का कण्डोम देशी कम्पनियाँ और इतना ही कण्डोम विदेशी कम्पनियाँ बेच रही हैं। विदेशी कण्डोमों के बारे में यह बात खास तौर से उल्लेखनीय है कि 1982 से ही सरकार ने इनके आयात पर से सीमा शुल्क समाप्त कर दिया था और उस फैसले के बाद ही देश का बाजार विदेशी कण्डोमों से भर गया। करीब 25-30 एजेन्सियाँ जापान, कोरिया, ताइवान, हांगकांग, थाइलैण्ड वगैरा से कण्डोम थोक के भाव मंगाती और बेचती हैं। करीब 20 देशी व 80 विदेशी ब्रांडो अर्थात 100 से ज्यादा ब्रांडो में 100 करोड़ से ज्यादा कण्डोम सालाना बिक रहे हैं।
”मुक्त यौन” की संस्कृति और उसे कण्डोम द्वारा सुरक्षा कवच पहना कर प्रचारित करने से युवाओं की उर्जा का प्रवाह किस दिशा में मोड दिया गया है यह अलग से एक बहुत ही गम्भीर सवाल है।
अंत सरकार और ये विदेशी कंपनिया AIDS रोकने से ज्यादा कंडोम की बिक्री बढ़ाना चाहती है !
इसके लिए देश के युवाओ को बहलाया-फुसलाया जा रहा है ! ताकि विवाह से पहले ही किसी भी लड़की के साथ संब्ध स्थापित करे ! और एक पत्नी से अधिक औरतों से संबंध बनाए !! जिससे समाज और परिवार खत्म हो जाये !
ताकि देश की सनातन संस्कृति को खत्म कर देश को जल्दी ही अमेरिका की कुत्ता संस्कृति मे मिलाया जाये ! कुत्ता संस्कृति से अभिप्राय सुबह किसी के साथ,दोपहर किसी के साथ, अगले दिन किसी के साथ !!
आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
अधिक जानकारी ले लिए यहाँ देखे !
https://www.youtube.com/watch?v=chl6QRAAKtU
वन्देमातरम ! अमर शहीद राजीव दीक्षित जी जय !

क्या मुस्लिम विनाश की ओर बढ़ रहे हैं ???


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शीर्षक पढ़कर चैंकिये मत! कई इस्लामी और गैर-इस्लामी विद्वानों और भविष्यवेत्ताओं ने बहुत पहले से ही यह भविष्यवाणी कर रखी है कि हिजरी की 14वीं शताब्दी के बाद मुसलमानों का पूर्ण विनाश हो जाएगा और इस्लाम का नामो-निशान मिट जाएगा। यह भविष्यवाणी कोई चंडूखाने की गप्प नहीं है, बल्कि इसकी सत्यता का पूर्वाभास हम हिजरी की 15वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में अभी से करने लगे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई अदृश्य शक्ति बलपूर्वक सारे संसार को एक ऐसे टकराव की ओर धकेल रही है, जिसमें एक ओर इस्लाम को मानने वाले होंगे और दूसरी ओर बाकी सब होंगे। इससे लगता है कि यह टकराव निकट भविष्य में अपरिहार्य और अवश्यंभावी है।
तीसरा विश्वयुद्ध तेल उत्पन्न करने वाले ओपेक (अरब) देशो और अमेरिका और यूरोपियन संघटनो के बीच शुरू होगा ! इस्लामिक और ईसाई असुरों के बीच युद्ध में भारत को तटस्थ रहने में ही भलाई है ...लेकिन युद्ध के बीच में कुछ वर्षों के बाद भारत को भी घसीटा जाएगा ! ..
अरबी ओपेक देश अमेरिकी डालर को और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को खत्म करने के लिए कच्चे तेल का रेट बहुत नीचे गिरा चुके है ..जिससे अमेरिका पर आर्थिक संकट मंडरा रहा है ..अमेरिका इस आर्थिक संकट से तड़प कर तिलमिला रहा है ..और विश्व युद्ध कभी भी शुरू कर सकता है ..सावधान !
इसके लक्षण अभी से नजर आने लगे हैं। संसार में कई जगह विभिन्न समुदायों में संघर्ष चल रहा है, जैसे यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में मुस्लिम और ईसाई, अरब देशों में मुस्लिम और यहूदी, म्यांमार, चीन, थाईलैंड आदि देशों में मुस्लिम और बौद्ध, भारत, में मुस्लिम और हिन्दू आदि। कई इस्लामी देशों में तो इस्लाम के विभिन्न सम्प्रदायों और समुदायों के बीच संघर्ष चल रहा है। इन सभी संघर्षों में एक बात समान है कि इनमें कम से कम एक पक्ष मुस्लिम अवश्य है। धीरे-धीरे ये संघर्ष जोर पकड़ रहे हैं और सारी दुनिया जाने-अनजाने इस्लाम के खिलाफ लामबंद होती जा रही है।
विगत कुछ वर्षों की जेहादी आतंकवादी घटनाओं ने विश्व के जनमानस को बरबस ही इस्लाम के खिलाफ मोड़ दिया है। आज अन्य सभी तरह के आतंकवाद समाप्त हो गये हैं, केवल जेहादी अर्थात् इस्लामी आतंकवाद विश्व को पीड़ित कर रहा है। जब भी संसार में कहीं आतंकवाद की बात होती है, तो लोगों के दिमाग में तत्काल ही केवल इस्लामी आतंकवाद की छवि उभरती है। हालांकि बहुत से इस्लामी लेखक इस बात से इनकार करते हैं कि जेहादी आतंकवाद इस्लाम के कारण है, परन्तु यह वास्तविकता से मुँह मोड़ना ही है, क्योंकि जेहादी आतंकवादी संगठन साफ-साफ घोषित करते हैं कि उनकी सारी गतिविधियाँ इस्लाम के मूल सिद्धान्तों के अनुसार हैं।
इस्लामी आतंकवादियों के दावे में दम है, क्योंकि कुरान में दुनिया को दो भागों में बाँटा गया है- ‘दारुल-हरब’ और ‘दारुल-इस्लाम’। ‘दारुल हरब’ दुनिया के वे भाग हैं जिन पर मुसलमानों के अलावा अन्य मतों को मानने वालों का शासन है और जहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। इसके विपरीत ‘दारुल इस्लाम’ संसार के वे भाग हैं, जहाँ मुस्लिम बहुसंख्या में हैं और जहाँ इस्लाम के अनुसार शासन चलाया जाता है। प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्तव्य है कि वह ‘दारुल-हरब’ को ‘दारुल-इस्लाम’ में बदले और इसके लिए जो भी किया जा सकता है वह करे। अपने इसी धार्मिक कर्तव्य के अनुसार जेहादी आतंकवादी गैर-मुस्लिमों को मार रहे हैं तथा घुसपैठ, जबरन धर्म-परिवर्तन, लव-जेहाद, अधिक संतानोत्पत्ति आदि सभी सम्भव उपायों से अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं।


इसके साथ-साथ मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों के बीच मानसिक और भावनात्मक खाई दिन-प्रतिदिन चौड़ी होती जा रही है और यह विभाजन स्पष्ट होता जा रहा है। संसार के किसी भी कोने में घटने वाली प्रत्येक आतंकवादी घटना इस प्रक्रिया को तेज ही करती है। उदाहरण के लिए, अभी भारत में असम में बंगलादेशी घुसपैठियों ने वहाँ के मूल निवासियों पर हिंसक आक्रमण किये, जिसके कारण लाखों लोगों को अपने घरों से निर्वासित होकर शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी। जब बाद में उन्होंने भी संगठित होकर घुसपैठियों को मारा और खदेड़ा, तो सारे संसार ने आश्चर्य से देखा कि पूरे भारत के मुसलमान लगभग सभी जगह बंगलादेशी घुसपैठियों के समर्थन में सड़कों पर आ गये, सिर्फ इसलिए कि वे मुसलमान हैं। इससे भारत के सभी नागरिकों के सामने यह बात फिर स्पष्ट हो गयी कि मुसलमानों की पहली और एकमात्र निष्ठा केवल इस्लाम और मुसलमानों के प्रति है। किसी देश के संविधान, कानून, संस्कृति आदि का उनके लिए कोई महत्व नहीं है। वरना कोई कारण नहीं था कि घुसपैठियों का समर्थन करने वाले मुसलमान भारत के शहीदों का अपमान करते।
इसी तरह अभी तालिबानियों ने ब्रिटेन के राजकुमार हैरी को मारने या अपहरण करने की धमकी दी है, जो अफगानिस्तान में एक सैनिक के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह धमकी देने से पहले किसी ‘तालिबानी विचारक’ ने यह नहीं सोचा कि यदि ऐसी कोई घटना घटती है, तो ब्रिटेन और सारा संसार उस पर क्या प्रतिक्रिया करेगा। क्या वह अपने सम्मानित राजपरिवार के एक प्रमुख सदस्य की आतंकवादियों द्वारा हत्या को एक साधारण दुर्घटना मानकर सहन कर लेगा? इसका स्पष्ट उत्तर ‘नहीं’ में है। 11 सितम्बर की घटना के कारण संसार का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका पहले से ही इस्लामी आतंकवाद से परेशान है और उनके खून का प्यासा बना हुआ है। अब ब्रिटिश राजकुमार की जान लेकर तालिबानी सम्पूर्ण इस्लामी जगत के विनाश की प्रक्रिया को उसके अन्तिम चरण में धकेल देंगे। यह ‘आ बैल मुझे मार’ का उदाहरण है।
भयंकर संघर्ष और विनाश की ओर बढ़ने की इस प्रक्रिया को इस्लामी विचारक अभी भी रोक या धीमी कर सकते हैं, बशर्ते वे सभी प्रकार के जेहादी आतंकवाद के विरोध में कमर कसकर और जान हथेली पर रखकर खड़े हो जायें। यह कार्य अति शीघ्र ही नहीं, तत्काल करना होगा, क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है। यदि इस्लाम के झंडाबरदार ऐसा करने में असफल रहते हैं, तो फिर उन्हें अपने सम्पूर्ण विनाश के लिए तैयार रहना होगा।

वतन (कौम) की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है।
तेरी बरबादियों के मशविरे हैं आसमानों में।
न सँभलोगे तो मिट जाओगे,
तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।

Saturday, December 13, 2014

गुणकारी सत्तू के लाभ


चना, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा, चावल, सिंघाड़ा, राजगीरा, गेहूं आदि को बालू में भूनने के बाद उसको चक्की में पीसकर बनाए गए चूर्ण (पावडर) को सत्तू कहा जाता है। ग्रीष्मकाल शुरू होते ही भारत में अधिकांश लोग सत्तू का प्रयोग करते हैं। खासकर दूर-दराज के छोटे क्षेत्रों व कस्बों में यह भोजन का काम करता है। 
चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मक्का वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार सभी का अपना-अपना गुणधर्म है| इन सभी प्रकार के सत्तू का अकेले-अकेले या सभी को किसी भी अनुपात में मिलाकर सेवन किया जा सकता है।
सत्तू के विभिन्न ना
भारत की लगभग सभी आर्य भाषाओं में सत्तू शब्द का प्रयोग मिलता है, जैसे पाली प्राकृत में सत्तू, प्राकृत और भोजपुरी में सतुआ, कश्मीरी में सोतु, कुमाउनी में सातु-सत्तू, पंजाबी में सत्तू, सिन्धी में सांतू, गुजराती में सातु तथा हिन्दी में सत्तू एवं सतुआ।
यह इसी नाम से बना बनाया बाजार में मिलता है। गुड़ का सत्तू व शकर का सत्तू दोनों अपने स्वाद के अनुसार लोगों में प्रसिद्ध हैं। सत्तू एक ऐसा आहार है जो बनाने, खाने में सरल है, सस्ता है, शरीर व स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और निरापद भी है।
विभिन्न प्रकार के सत्तू
जौ का सत्तू : जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हलका, दस्तावर (कब्जनाशक), कफ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा और लेखन होता है। इसे जल में घोलकर पीने से यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। यह कफ, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और नेत्र विकार नाशक होता है।
जौ-चने का सत्तू : चने को भूनकर पिसवा लेते हैं और चौथाई भाग जौ का सत्तू मिला लेते हैं। यह जौ चने का सत्तू है। इस सत्तू को पानी में घोलकर, घी-शकर मिलाकर पीना ग्रीष्मकाल में बहुत हितकारी, तृप्ति दायक, शीतलता देने वाला होता है।
चावल का सत्तू : चावल का सत्तू अग्निवर्द्धक, हलका, शीतल, मधुर ग्राही, रुचिकारी, बलवीर्यवर्द्धक, ग्रीष्म काल में सेवन योग्य उत्तम पथ्य आहार है।
जौ-गेहूँ चने का सत्तू : चने की दाल एक किलो, गेहूँ आधा किलो और जौ 200 ग्राम। तीनों को 7-8 घंटे पानी में गलाकर सुखा लेते हैं और जौ को साफ करके तीनों को अलग- अलग घर में या भड़भूंजे के यहां भुनवा कर, तीनों को मिला लेते हैं और पिसवा लेते हैं। यह गेहूँ, जौ, चने का सत्तू है।
सेवन विधि : इनमें से किसी भी सत्तू को पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं। इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में देशी शक्कर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोलें। नमकीन करना हो तो उचित मात्रा में पिसा जीरा व सेंधा नमक पानी में डालकर इसी पानी में सत्तू घोलें। इच्छा के अनुसार इसे पतला या गाढ़ा रख सकते हैं। सत्तू अपने आप में पूरा भोजन है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है, इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म काल में किया जाता है।
सत्तू के लाभ : चिकित्सा विज्ञान की कई खोजों में यह दावा किया गया है कि पेट की बीमारियों तथा मधुमेह के रोगियों के लिए चने का सत्तू रामबाण है।
कीटनाशक युक्त जहरीले बहुब्राण्ड शीतल पेय पीने से शरीर में कई बीमारियां होती हैं, लेकिन चने के सत्तू का सेवन ख़ासकर गर्मी के मौसम में पेट की बीमारियों तथा शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है। ख़ासकर यह मधुमेह रोगियों के लिए रामबाण है।
कई डॉक्टर कहते हैं कि चने के सत्तू का सेवन हर आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं, लेकिन जोड़ों के दर्द के रोगी को इसके सेवन से बचना चाहिए। जहां एक तरफ बहुब्राण्ड शीतल पेय कम्पनियां भीषण गर्मी में अपने ग्राहकों को रिझाने तथा अपने ब्राण्ड का प्रचार करने के लिए समाचार पत्रों, टीवी के माध्यम से प्रचार करके लोगों को आकर्षित करने का प्रयास कर रही हैं उसी के बीच अपनी गुणवत्ता तथा स्वास्थ्यवर्धक होने के कारण सत्तू बिना किसी प्रचार के मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद जैसे महानगरों सहित पूरे भारत में पुनः लोगों की ख़ास पसन्द बन गया है।
आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार चने का सत्तू गर्मी के मौसम में तापमान को नियंत्रित करने के साथ साथ स्वास्थ्यवर्धक भी है। जानकारों का कहना है कि सत्तू के सेवन से ख़ासकर गर्मी के मौसम में पेट की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। चने से बनने वाले सत्तू के गुणकारी परिणाम से आज यह आम वर्ग के साथ साथ सुविधा सम्पन्न लोगों की पहली पसन्द बनता जा रहा है।
बाज़ार में बिकने वाले शीतल पेय पदार्थ लोगों को आकर्षित तो कर सकते हैं, लेकिन गर्मी के मौसम में संतुष्ट करके स्वास्थ्य नहीं दे सकते बल्कि हानिकारक होते है, जबकि चने से बना सत्तू गर्मी से निजात दिलाने के साथ साथ शरीर के लिए काफ़ी लाभदायक है और इसी का परिणाम है कि आज सत्तू पीने वालों में सभी वर्गों के लोग आते हैं और सत्तू का सेवन करते हैं।
चने के सत्तू का बाज़ार कितना बड़ा है इसका कोई अधिकृत आंकड़ा नहीं है, लेकिन इसकी खपत से माना जा रहा है कि इसका रोज़ाना का करोड़ों रुपए का व्यापार होता है और देश में हजारों लोगों को इससे रोजगार प्राप्त होता है|