Sunday, June 29, 2014

असलियत - शिया -सुन्नी में अंतर


शिया -सुन्नी में अंतर..
शिया सुन्नी में मुख्य अंतर यह है! (जरूर
पढें)
1 .शिया इमामों को और
सुन्नी खलीफाओं को मानते हैं
2 .दौनों की अजाने और नमाजों के
तरीके अलग हैं.
3 -शिया तीन बार और सुन्नी पांच
बार नमाज पढ़ते है .
4 .शिया अस्थाई शादी "मुतआ " करते
है.
5.शिया सिर्फ अली को मानते
हैं .बाकी सभी खलीफाओं और
सहबियों को मुनाफिक
(पाखंडी)गासिब (लुटेरा ) जालिम
(क्रूर )और इमां से खाली मानते हैं .
6 .शियाओं का नारा है "नारा ए
हैदरी "और " या अली है .
7 .शिया मानते हैं कि सुन्नियो ने
ही इमाम हुसैन को क़त्ल किया था.और
सुन्नी अपराधी हैं.
8 .शिया यह भी मानते हैं कि, मुहमद
की पत्नी आयशा और
हफ्शा चरित्रहीन और
षडयंत्रकारी थी इन्हीं ने मुहम्मद
को जहर देकर मारा था
→शिया सुन्नी नमाज में अंतर
.
.
जिस तरह से शिया और सुन्नियों के
विचार एक दूसरे से विपरीत और
भिन्न हैं, उसी तरह उनकी अजान,
नमाज भी अलग हैं.
1. शिया दिन में सिर्फ तीन बार
नमाज पढ़ते हैं, और मगरिब के साथ
ईशा की नमाज मिला देते है.
सुन्नी पांच बार नमाज पढ़ते हैं.
2. सुन्नी हाथ बांध कर और
शिया हाथ खोलकर नमाजपढ़ते हैं.
3. शिया "खैरल अमल " शब्द अधिक
कहते हैं.
4. सुन्नी सजदे के समय जमीन पर सर
रखते हैं, शिया किसी लकड़ी के बोक्स
या ईंट पर सर रखते हैं.
5- शिया दुआ के बाद "आमीन " शब्द
नहीं बोलते.
6 -तबर्रा धिक्कार . तबर्रा एक
प्रकार
की गाली(Insult )जो शिया मुहर्रम
के महीने के एक तारीख से दस तारीख
तक अपनी मजलिसों में खलीफाओं
सहबियों और सुन्नियों को देते
है .शिया बहुल क्षेत्रों जैसे लखनऊ,
हैदराबाद में तबर्रा खुल कर
कहा जाता है .
"वास्तव में मुसलमान संतरे की तरह है,
कि जो देखने में एक लगता है, लेकिन
उसके अन्दर फाकें ही फांकें है!
इसी तरह मुसलामामों के दूसरे फिरके
भी है जो एक दुसरे को फूटी आँखों से
नहीं देखना चाहते है .जो मसलमान यह
सपने देख रहे है जैसे जैसे मुसलमान बढ़ाते
जायेगे, वह मजबूत होते जायेंगे .लेकिन
यह मुसलमानों का केवल
सपना ही है .जैसे जैसे मुसलमान बढ़ेंगे
उतने ही लड़ेंगे, और इनको परस्त करने
में कोई देर नहीं लगेगी .केवल प्रयास
करने की,जरूरत है.और उचित समय
की देर है ! इसी तरह वहाबी देवबंदी,
बरेलवी, सूफी, बोहरा, इस्माइली,
कुर्दसब एक दुसरे को मुसलमान
नहीं मानते.. और काफ़िर, मुनकिर,
मुनाफिक या बिदआती कहते..
मुल्लों की तालीम के कारण
लड़ना मुसलमानों का स्वभाव बन
गया. हरेक में कट्टरपन जहर भर
गया है! अभी तो उनके लड़ने के लिए गैर
मुस्लिममौजूद है! अगर जिस दिन
दुर्भाग्य से सभी मुसलमान बन गए
तो उसी दिन मानव
जाति का सफाया हो जायेगा|

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