Monday, May 12, 2014

सिन्धु -सरस्वती सभ्यता का पतन

सिन्धु सरस्वती सभ्यता सिन्धु नदी और सरस्वती नदी के बिच में बसी सभ्यता थी। ये अफगानिस्तान से भारत तक फैली दुनिया की सबसे बड़ी सभ्यता थी।
आज आधे भारत या पाकिस्तान से भी बड़ी जगह में ये सभ्यता भारत में फैली थी ।
यु तो पुरातत्व वैज्ञानिक कहते है ये सभ्यता 6000 ईसापूर्व में बसी और इसने 3000 ईसापूर्व में इसने अपना स्वर्ण युग देखा पर 1900 ईसापूर्व के आते ही इसका पतन शुरू हो गया।
पर यही शोध से पता चला है की ये सभ्यता 9000 ईसापूर्व में बसी और इसका स्वर्ण युग 5000 ईसापूर्व से 1900 ईसापूर्व तक था।
ये द्दुनिया की सबसे पुराणी सभ्यता है पर विदेशी इसे नकारते हुए मेसोपोटामिया (5000- 300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते है वो भी केवल इस तर्क पर की मेसोपोटामिया ने खुदके सभ्यता की तारिक लिखी थी जो 10000 ईसापूर्व तक जाती है। पर कुछ भी हो सरस्वती सभ्यता सबसे प्राचीन है।
इस सभ्यता के व्यापर मिस्र(केमेथ मिर्स का असली नाम है) मेसोपोटामिया,दक्षिण भारतीय सभ्यता ,अफगान अदि से था।
जब मेसोपोटामिया और केमेथ(मिस्र) में आलीशान घर बनाना शुरू हुआ था तब सरस्वती सभ्यता के नगरो में उस वक़्त के पहले महानगर थे।
यूरोपियन सभ्यता में रोम सभ्यता ही थी जोसने नाले उपयोग उससे पहले सरस्वती सभ्यता थी जो अपने नालो,मोरियो और स्वच्चाता के लिए महासुर थे ।
सरस्वती सभ्यता के हर नगर में हर घर में सोचालय थे जबकि मेसोपोटामिया और केमेथ बड़ी बड़ी इमारतो का निर्माण कर रहे थे फिर भी उनके घरो में यहाँ तक की रजा के महल में भी सोचालय की सुविधा नहीं थी।
यही सभ्यता थी जिसने पहली बार लिखना शुरू किया मेसोपोटामिया से 100 वर्ष पहले साथ ही पहली भासा भी विकशित यही हुई।
सर्जरी,दातके इलाज के तरीके ,वजन ,बटन अदि कई वसतो यही की दें है।
दुनिया का पहला बंदरगाह लोथल में है।
पतन
इस सभ्यता के पतन की पहली सबको तब से गुथी में दल रही है जबसे इसकी खोज हुई थी।
1900 में धीरे धीरे लोग यहाँ के नगर छोड़ जाने लगे पर उसके बाद भी कई नगर बनाये गए जो लेट हरप्पा के समय के है ।ये नए नगर लोगो को केवल कुछ 500 से अधिक वर्ष ही रोक पाए।
200 ईसापूर्व तक यहाँ लोग बचे हुए थे।यहाँ कुषाण वंस का एक स्तम्ब मिला जो ये बताता है की कुषाण के समय भी यहाँ लोग थे पर बाद में ये नगर पूरी तरह खली हो गए।
इसके बाद केवल विदेशी आक्रमणकारी ही यहाँ बसे।
हड़प्पा अदि शुरवाती नगरो की टूटी फूटी हालत देख लोगो ने अंदाजा लगाया की किसी विदेशी अक्रमंकरियो ने इन पर हमला किया। तब ज्यादातर पुरातत्व वैज्ञानिक इसाई थे।
उनकी मान्यता थी की इस्वर ने दुनिया 4000 ईसापूर्व में बनाई ,2000 ईसापूर्व में बाड़ आई जिसके बाद ये सभ्यता बसी यानि 1500 ईसापूर्व के करीब अक्रमंकरियो ने यहाँ हमला किया।
हिटलर वेदों में कहे गए सर्वोच्च आदमी आर्य से बहोत प्रवाहित था इसीलिए उसने घोसना की की वह और सारे जर्मन आर्य नस्ल के है।
फिर क्या था पुरातत्व वैज्ञानिको ने कह दिया की विदेशी अर्यो ने सरस्वती सभ्यता का अंत किया। साथ ही अंगेजो के लिए हिन्दुओ को बटने का अच्छा तरीका था ये इसीलिए इसे मान्यता दे दी गई।
पर 1990 के करीब करीब इस तर्क को लोग अभी नकारना शुरू कर रहे है।
ये कैसे हो सकता है की कुछ हज़ार विदेशी 5 लाख की जनसँख्या वाली सभ्यता पर कब्ज़ा करे। इसका तर्क ये दिया गया की सरस्वती सभ्यता के लोग शांति प्रिय थे और हटिया का इस्तेमाल नहीं करते थे वे पर यह तर्क 2005 के करीब टूट गया जब उत्तरप्रदेश में सरस्वती संह्यता के लोगो की कब्रे मिली जोसमे तलवार,कवच सही धनुष भी मिले यानि ये लोग शत्र रखा करते थे।
जल्द ही एक नया तर्क आया की 1900 के करीब मेसोपोटामिया मसे व्यापर टूटने के करे यह सभ्यता विलुप्त हो गयी पर जल्द ही इसे भी नकार दिया गया क्युकी व्यापर हेतु कई देश थे सरस्वती सभ्यता के पास।
अगला तर्क जिसे में भी मानता हु वो है जल वायु में बदलाव।
जल वायु के बदलाव के कारन 1900 के आखिर में वह वर्षा कम पड़ने लगी इसके साबुत है पुरातत्व वैज्ञानिको के पास। साथ ही सरस्वती नदी का सुखना। सरस्वती नदी के सूखने के कारन उनकी उद्पदन शमता कम हो गयी पर किसी कदर सिन्धु की सहयता से वे टिके रहे।
बाड़ भी एक कारन है। सरस्वती सभ्यता के कई नगरो में कई बार बाद अस्यी थी। मोहनजोदड़ो में ही कुल 7 बार बाड़ आई थी। मेसोपोटामिया की तरह बाद से बचने के अछे उपाय न हिने के कारन ये सभ्यता विलुप्ति के कगार तक आ पहुची थी।
अराजकता और भ्रस्ताचार ये तर्क मेरा स्वयं का है ।
मेने पाया की मोहनजोदड़ो अदि नगरो की बाद से बचने के लिए दीवारों को बहोत सलिखे से बनाया गया था ।पर जैसे जैसे बाड़ आती गयी वैसे वैसे दिवार की गुणवक्ता घटती गयी ।ये बात पुरातत्व वैज्ञानिको ने भी पी है।
साफ़ है वह का राजा या जनता जिन्हें दिवार की मराम्मद कम सोंपा जाता वे उसमे घोटाले करने लगे।
यदि लेट हड़प्पा के नगर देखे तो ये साफ़ ज़ाहिर होता है की वे नगर केवल लोगो को कुछ साल रोके रखने के लिए ही बने थे यानि जनता ने राजा के विरुद्ध बगावत छेद दी थी और साथ ही इसी दौरान फारस ने सिधु घटी पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था। उन्ही से बचने और नए राज्य के निर्माण के लिए घाटी छोड़ दूसरी जगह बसे।
नतीजा
नतीजा साफ़ है ब्रस्ताचार और बाड़ की वजह से सरस्वती सभ्यता के लोग भारत में फ़ैल गए फिर इन्ही लोगो ने जनता के राज के लिए जनपद बनाये जो बाद में महाजनपद बने।
यही आप सिन्धु सभ्यता की मुद्रा और महाजनपद की मुद्रा मिलाये तो आपको कई समानताये मिलेंगी यानि सरस्वती सभ्यता विलुप्त नहीं पर अभी भी जरी है।

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