Saturday, May 31, 2014

|| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

|| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मूल कारण व आर्य समाज का योगदान ||
1857 में प्रथम बार भारतीय क्रान्तिकारी वीरो ने अंग्रेज शासकों से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी | इस संग्राम का नाम किसी ने गदर,किसी ने विद्रोह तथा किसी ने धार्मिक युद्ध कहा है | मेरे विचार से इसे धर्म युद्ध अथवा विद्रोह कहना उन असंख्य अमर हुतात्माओ के प्रति अन्याय है जिन्होंने माँ भारती को स्वतंत्र करने के लिए अपना सर्वस्य अर्पण कर दिया | इस युद्ध का वास्तविक नामकरण “प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम” होना चाहिए, क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता के लिए यह प्रथम युद्ध था |
इस क्रांति का मूल कारण वास्तव में धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही थे | क्योंकि धर्म और राजनीति परस्पर सम्बन्ध है, धर्म को राजनीति से पृथक समझना भूल है | उस समय भरत में ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज अधिकारी मनचाहे भीषण अत्याचार भारतीय जनता पर करते थे | उनके भयंकर अत्याचारों से भारतीय जनता और सैनिक खुब्ध हो गये थे | अंग्रज शासकों के अनेक असहाय अत्याचारों के कारण सैनिको की क्रोधाग्नि ने इतना भयंकर रूप धारण कर लिया था, की इन अत्याचारों का बदला लेने के लिए उतावले हो रहे थे | सर्व साधरण जनों में प्रतिकार की भावना जाग उठी थी |
सान 1853 में अंग्रेज कंपनी ने भारतीय सेना के लिए एक नये ढंग के कारतूस प्रचलित किया | तथा भारत के अनेक स्थानों में इन कारतूसों को तैयार करने हेतु कारखाने खोले | इन नये कारतूसों को दातों से काटना पड़ता था | इसे अजमाने के लिए मात्र एक दो पलटनो में प्रचलित किये गये | वास्तविकता का ज्ञान न होने के कारण सैनिको ने कारतूसों को दातों से काटना स्वीकार कर लिया | अब शनैःशनैः इन कारतूसों का प्रयोग बढ़ता चला गया |
बैरकपुर छावनी का एक ब्राह्मण सिपाही लोटा भरकर अपनी बैरक की ओर जा रहा था | रास्ते में एक हरिजन सिपाही ने पानी पीने हेतु ब्राह्मण सिपाही से लोटा माँगा, तो प्रचलित प्रथानुसार उसने लोटा देने से इंकार कर दिया | जब हरिजन ने कहा मुझे एक सन्यासी ओधड़ बाबा द्वारा पता चला है, क्या तुम्हे मालूम नहीं की तुमहे अपने दातों से जो कारतूस काटने पड़ेंगे उसमे गाय तथा सूअर की चर्बी लगी होगी |
इतना सुनकर ब्राह्मण सैनिक क्रुद्ध हुआ, छावनी में पहुच कर दुसरे सैनिकों को यह दुखद वृतांत सुनाया वह भी गुस्से से लाल हो गये | वह परस्पर एक दुसरे से कहने लगे –अंग्रेज सरकार जान बूझकर हम भारतीयों का धर्म भ्रष्ट करना चाहती है |
उन सैनिको ने अपने अफसरो से पूछा तो उन्होंने मना करते हुये कहा कि यह सर्वथा झूठी अफ़वाह है | नये कारतूसों में इसप्रकार की कोई वस्तु नहीं | सैनिक अफसरों के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए और बैरकपुर के कारतूस कारखाने में काम करने वाले भारतीय कर्मचारी कारतूस निर्माताओ से पूछा | जब सच्चाई का पता लगा बैरकपुर के सैनिको ने यह सुचना समस्त भारत में फैला दी | बंगाल से पेशावर और महाराष्ट्र तक इस विषय में हज़ारों पत्र भेजे गये | नये कारतूसों का वृत्तान्त बिजली की भांति प्रत्येक भारतीय सैनिको के कानो तक पहुच गया | प्रत्येक हिन्दू व मुसलमान सैनिको ने अंग्रेजों से इस अन्याय का बदला लेने को बेचैन हो उठे |
सर, जान व कर्नल तकर ने 1853 में लिखाया नये कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगाई जाती थी | फरवरी 1857 में बैरकपुर केंट की 19 नम्बर पलटनो को आदेश दिया कारतूस मुख से काटने का, तो 19 नम्बर पलटनो ने मना कर दिया अंग्रेजो ने वर्मा से गोरी पलटन मंग्वाली और भारतीय सैनिको को परेड मैदान में बुलवा कर हथियार रखवा कर दण्ड देना चाहते थे | भारतीय सिपाहियों ने चुपचाप हथियार रखने की अपेक्षा तुरंत क्रांति करने का विचार किया | जबकि 31 मई को क्रांति के लिए भारतीयों ने निर्धारित किया था |
जब अंग्रेजों ने हथियार रखने को कहा तो भारत माँ का लाल ब्राह्मण घराने का सिपाही महान क्रन्तिकारी देशभक्त, धर्म परायण-मंगलपांडे बन्दुक लिए कूद पड़े और चिल्ला कर शेष सिपाहियों को अंग्रेजों के विरुद्ध धर्म यूद्ध करने के लिए आमंत्रित करने लगे | एक अंग्रेज अफसर ह्यूसन ने अन्य सिपाहियों से पांडे को गिरफ्तार करने की आज्ञा दी, किन्तु भारतीय कोई भी सिपाही आज्ञा का पालन नहीं किया | अब तक मंगलपांडे ने अपनी बन्दूक से उस अंग्रेज अफसर को ढेर कर दिया | फिर दूसरा अफसर लेफ्टिनेंट अपने घोड़े पर आगे लपका जिसका नाम बाघ था, मंगलपांडे ने इस पर भी गोली चलाई | वह अपने घोड़े के साथ जख्मी हो कर गिर पड़ा | मंगल पांडे अपनी बन्दुक में गोली डाल रहे थे, कि उस बाघ ने अपनी पिस्तौल से गोली चलाई पांडे बच गये | और तलवार से उस अंग्रेज बाघ को समाप्त कर दिया | अब कर्नल ह्वीलर ने पांडे को पकड़ने का आदेश दिया | सिपाहियों ने मना किया | कर्नल घबराकर जनरल के बंगले पर पंहुचा, वहां से जनरल हायर ने अपने साथ गोरी पलटनो को लेकर आगे बढ़े देखा मंगलपांडे ने स्वयं अपनी छाती पर गोली चलाई, जख्मी हो कर गिर पड़े पकड़ लिया गया और मंगलपांडे को 8 अप्रैल 1857 में फाँसी दी गई |
19 और 34 नंबर पलटनों को नौकरी से निकाल दिया गया तथा 34 नंबर के पलटन सूबेदार को भी फाँसी दी गई | यह घटना भारत भर में फैल गई | इसी अप्रैल 57 में अंग्रेजों के बंगलो में लखनऊ, मेरठ, अम्बाला आदि स्थानों में आग लगा दी गई | किन्तु यह सब निश्चित समय से पूर्व ही हो गया | जब की बाबा ओधड़ दास नामी सन्यासी ने कहा था अभी समय नहीं आया है तुम्हे धैर्य से काम लेना है और 100 वर्ष तक प्रयास करना होगा बाबा ओधड़ दास वही सन्यासी है जिन्होंने सैनिकों को कहा था करतूस में गाय और सूअर की चर्बी लगाई जा रही है | महर्षी दयानन्द की जीवन चरित्र को देखा जाए तो ज्ञात होगा की 1855 से 1857 तक के अपने कृयाकलापों का उल्लेख नही किया अज्ञात काल के नाम से कुछ विद्वानों ने माना है | हम सब जानते है की स्वाधीनता के लिए देश व्यापी जो सशस्त्र क्रांति हुई वह सन 1857 में हुई थी | लोगो को क्रांति का सन्देश देने वाले, क्रांति के यज्ञ में अपनी आहुति देने के लिए जन, जन, को अनुप्रेरित और उत्प्रेरित करने वाले दयानन्द सरीखा महामानव इस अवसर पर मौन धारण कर ले, यह सच पूछिए तो आश्चर्य का विषय है |
क्योंकी 57 की क्रांति में मुख्य रूप से चार सन्यासी का नाम लिया गया है जो अपने चिन्हों को राजा, महाराजा, नवाब, बादशाहों से लेकर सैनिको तक पहुचाया जिसकी भूमिका दंडी स्वामी विरजानंद ने निभाई थी गुरु पूर्णानंद का भी नाम उसी भूमिका में है | तथा इन्होने ही अपना चिह्न ओरों तक पहुचने की योजना बनाई | और मुख्य चिह्न कमल के फुल और रोटी थी | बाबा ओधड़ दास और कोई नहीं था वही स्वामी दयानन्द थे | जिन्होंने फुल और रोटी को फौजी पलटनो में जो इस संगठन में सम्मलित थे घुमाया करते थे | रोटी ज्यादातर गाँव में घुमाया जाता था | जिस व्यक्ति को देता था वह अपना कर्तव्य समझकर उस रोटी में से थोड़ी सी तोड़ कर खाता, फिर दुसरो को पहुँचाता था | रोटी ख़त्म हुई की दूसरी रोटी बना कर इसी प्रकार घुमाया जाता था | इसका अर्थ होता था की उस गाँवमें क्रांतियुद्ध में भाग लेने वाले लोग है | यह चमत्कार थोड़े ही दिनों में भारत भर फैल गया | रोटी इस गंभीर अर्थ की सूचक थी, की विदेशी अत्याचारी अंग्रेजों का जहां भी शासन उसे उखाड़ फेका जाये | या तो अंग्रेजों को भारत देश से निकलने के लिए स्वतंत्रता युद्ध में सम्मलित होना चाहिए |
इस प्रकार नाना साहब पेशवा को ऋषि दयानन्द अपनी योजना में सम्मलित किया | क्रांति का सूत्रधार वह होता है जो उसकी चिंगारी को शोलो का रूप प्रदान करने के लिए ईंधन जुटाता है | छावनी में महर्षि को जाने से इसलिए नहीं रोका गया क्योंकि उन्हें भी अंग्रेजों ने ओरों की तरह एक सामान्य साधू समझा | पहले दो चार बार महर्षि सिपाहियों को वेद का महत्व समझाते रहे दयानन्द तो मानो इसी तलाश में थे, जो अपनी ओजस्वी वाणी में राष्ट्रभक्ति की धारा प्रवाहित करनी शुरू करदी, सिपाहियों की भुजाएँ फड़क उठी |
इन्ही दिनों बिहार-जगदीश पुर के 80 वर्षीय राजा कुंवर सिंह के बारे में ज्ञात हुआ ,जो कुंवर सिंह अपनी रियासत और राज्य को बचाने को अंग्रेजों से खार खाए बैठे थे, अंग्रेजों का मिटटी पलीद करने को मौके की ताक में थे | कुंवर सिंह स्वयं महर्षि से बिहार की सीमा पर मिलने आये | ऋषि द्यानानंद राजा कुंवर सिंह को- बिठुर में धुंधूपंत (नाना साहब) पेशवा के साथ संपर्क स्थपित कराते हुए क्रांति हेतु तैयार रहने को कहा |
नाना साहब बिठुर के गोद लिए हुये शासक थे, पर अंग्रेज सरकार उन्हें शासक मानने को तैयार नहीं थी | जिस तरह महर्षि क्रांति का अलख जगाते स्थान –स्थान –पर घूम रहे थे, उसी प्रकार असंतोष की आगमें दग्ध होता नाना साहब भी घूम रहे थे | महर्षि, नानासाहब पेशवा तथा लक्षमी बाई, दामोदर राव, तात्याटोपे, सेनापति व राजा कुंवरसिंह आदि को आवश्यक आदेश, व उपदेश देकर दिल्ली पहुंचे |
कुछ दिन दिल्ली निवास कर दयानन्द, मेरठ, कानपूर, इलहाबाद, फारुखाबाद के गंगा के तट पर रहकर प्राचार कार्य करते रहे, उन्हें कोई अंग्रेज समझ ही नहीं पाए की यह सन्यासी बागी है | 11 मई 1857 महर्षि के आदेश के विपरीत क्रान्तिकारियो ने एक गज़ब काण्ड कर डाला | कानपूर में सैकड़ों अंग्रेज स्त्रियों व बच्चों को मौत के घाट उतार डाले |
क्रांति का आरम्भ बड़ा ही सफल रहा ऐसी आशा वलवती हो गई थी की भारत से विदेशियों की सत्ता समाप्त हो जाएगी | किन्तु मेरठ कांड के बाद यत्र तत्र क्रांतिकारियों की पराजय होने लगी |
उधर झासी की रानी लक्ष्मी बाई काफ़ी समय तक अंग्रेजों के साथ युद्ध करते-करते शहीद हुई | नाना साहब और तात्याटोपे बच निकले अंग्रजो ने उनकी गिरफ्तारियों की इनाम रख दिया | नाना साहब ऋषि दयानन्द से सन्यास की दीक्षा ली |
इस के विफल होने पर महर्षि ने भारत की तात्कालिक परिस्थिति के अनुसार अपना मार्ग बदल लिया | अब भाषा व लेख के द्वारा स्राव विध क्रांति प्रारंभ की | दयानन्द ही वह पहला भारतीय था जिसने अंग्रेजों के साम्राज्य में सर्वप्रथम स्वदेशी राज्य की मांग की थी | वह अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में लिखते है कोई कितना ही करे जो स्वदेशी राज्य होता है वह सर्वोपरी उत्तम होता है अथवा मत मतान्तर के आग्रह रहित, अपने और पराये का पक्षपात शून्य प्रजा पर पिता, माता के समान, कृपा, न्याय एवं दया के साथ भी विदेशियों का राज्य पूर्ण सुखदायक नहीं होता |
स्वामी जी आर्याभिनय में लिखते है अन्य देशवासी राजा हमारे देश में न हो हम लोग पराधीन कभी न रहो | इससे पता लगता है की महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की क्या भावना थी| राष्ट्र के संगठन के लिए जाती पाँति के झंझटों को मिटाकर एक धर्म एक भाषा समान वेशभूषा तथा खान पान का प्रचार किया | दयानन्द स्वयं गुजरती तथा संस्कृत के उद्भट विद्वान् होते हुए भी हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की घोषणा की | जबकि बंगाल के बंकिम चन्द्र तथा रविन्द्र नाथ व महाराष्ट्र के विष्णु शास्त्री चिपलूणकर आदि प्रसिद्ध लेखकों ने अपनी रचनाये प्रान्तीय भाषा में ही की थी |
दीर्घ कालीन दासता के कारण भारत वासी अपने प्राचीन गौरव को भूल गये थे | दयानन्द ने उनके प्राचीन गौरव को तथा वैभव का वास्तविक दर्शन करवाया और सप्रमाण सिद्ध किया कि, हम किसिके दास नहीं, अपितु विश्वगुरु हैं | इस प्रकार भारत भूमि को इस योग्य बनाया कि, जिसमे स्वराज्य, पादप विकसित, पुष्पित और फ्लाग्रही हो सके | जैसा 1857 के क्रांति का जन्म दाता गुरु विरजानंद –महर्षि दयानन्द-और उनके शिष्य ही हैं | विदेशों में भारत के लिए जितने क्रांतिकारियां हुए, वह द्यानन्द्के प्रमुख शिष्य पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा के कारण ही हुए | श्याम जी को विदेश में जानेकी प्रेरणा दयानन्द ने ही दी थी | श्यामजी कृष्ण वर्मा क्रांति कारियों के आदि गुरु थे | प्रशिद्ध क्रन्तिकारी विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, भाई परमानन्द, सेनापति बापट, विपिनचंद्रपाल, मदनलालधींगडा, मेडमकामा, सायाजी राय गायकवाड, आदि सभी क्रांतिकारी इनके शिष्य ही थे | इंग्लॅण्ड में रहकर भारतीय जितने भी क्रांतिकारी हुए, वह सब श्यामजीकृष्ण वर्मा के निजी ख़रीदे गये मकान जो इण्डिया हॉउस के नाम से था, वही रहकर सभीने क्रांतिके पाठ पढ़े थे |
अमरीका में जो क्रांति भारतीय स्वाधीनता के लिए हुई, वह देवता स्वरूप भाई परमानन्द के सदउद्योग का फल है | जिन्होंने आजीवन आर्य समाज का प्राचार्य किया और स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते रहे |
पंजाब में श्री जयचन्द्र विद्यालंकार क्रांतिकारियों के प्रेरणा श्रोत थे जो D.A.V कॉलेज लाहोर के इतिहास और राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर थे सरदार भगत सिंह और उनके क्रन्तिकारी साथी उनसे राजनीति की शिक्षा लिया करते थे | सरदार भगत सिंह का जन्म भी आर्यसमाजी परिवार में हुआ था उनके दादा सरदार अर्जुन सिंह पिता श्री किशन सिंह आर्यसमाजी ही थे | भगत सिंह का उपनयन संस्कार आर्य समाज के महोपदेशक लोकनाथ तर्क वाचस्पति ने की थी भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह जी जो पिछले दिनों फरीदाबाद में रहते थे गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ में मेरे रहते हुए भी कई बार स्वामी शक्तिवेश जी ने अपने गुरकुल नें उन्हें बुलाया | जो गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ क्रांतिकारियों का गड़ था आज भी गुफा बने हुए है जहा क्रन्तिकारी आकर शरण लेते थे इसी गुरकुल में मुझे भी रहने का सौभग्य प्राप्त है | इस प्रकार गुरकुल और आर्यसमाज कर्तिकरियो का शरण गाह रहा है भारत भर उन दिनों जहा-जहा आर्यसमाज था उन्ही आर्यसमाज में क्रातिकारी आकर शरण लेते थे |
एक अंगरेज अधिकारी सांडर्स को मार कर भगत सिंह कलकत्ता पहुचें आर्य समाज 19 विधान सरणी जा कर ठहरे थे, भगत सिंह उस आर्य समाज से चलते समय अपनी थाली सेवक तुलसी राम को सोंपते हुए कहा था कोई क्रन्तिकारी आये तो इसी थाली में उसे भोजन करा देना | कारण क्रांति की बिगुल बंगाल के धरती से ही बजी थी भगत सिंह कलकत्ता से दिल्ली आकर वीर अर्जुन पत्रिका कार्यालय में स्वामी श्रधानंद व पंडित इंद्र विद्या वाचस्पति के पास ठहरे क्योंकी उस समय ऐसे लोगो को ठहराने का साहस केवल देशभक्त आर्यसमाजी ही किया करते थे कारण आर्यसमाज को छोड़ कर क्रांतिकारियों को ठहर ने के लिए या ठहेराने के लिए और किसी संस्था का उल्लेख नहीं है | मिस्टर गाँधी जब अफ्रीका से लौट कर आये तो उन्हें ठहराने की हिम्मत लाला मुंशीराम (स्वामीश्रद्धा) ने ही गुरुकुल कांगड़ी में की थी |
राजस्थान के क्रन्तिकारी कुवर प्रताप सिंह बारहट D.A.V. स्कूल के छात्र थे उनके पिता श्री कृष्ण सिंह बारहट ऋषि दयानन्द के अनन्य भक्त थे राम प्रसाद बिस्मिल भी अपना घर वार त्याग दिया किन्तु आर्य समाज के सिपाही बने रहे| जिस रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने मित्र अशफ़ाक खुल्ला खान को आर्य समाज शाजहापुर से जोड़ा और दोनों लोग आर्य समाज शाजहाँ पुर के कार्यकर्ता थे | रामप्रसाद बिस्मिल ने रोशन सिंह और शचीन्द्र नाथ सान्याल को भी आर्य समाज से जोड़े जो बंगाल के थे | हेदराबाद निजाम के विरुद्ध सात्याग्रह चलाकर जनता के हितो की रक्षा केवल आर्यसमजी ही कर पाए थे |
अमृतसर में कोंग्रेस का अधिवेशन मात्र आर्य समाजी नेता स्वामी श्रद्धानन्द ने ही कराई थी | पंजाब केसरी लाला लाजपत राय प्रसिद्ध आर्य नेता व देश भक्त थे | देशभक्ति किसी से तिरोहित नहीं | इसी प्रकार अनेक उदाहरण हमे मिलते है | जिस से यह सिद्ध होता है की देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में आर्यसमाज ने बड़ चड़ कर हिस्सा लिया तथा नेत्रित्व भी किया | स्वदेशी प्राचार विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार-अछुत्तोद्धार-शुद्धि प्रचार -गोरक्षा आन्दोलन- शिक्षाप्रचार -स्त्री शिक्षा-विधवा विवाह-बाल विवाह विरोध सभी श्रेष्ठ कार्यो में आर्य समाज अग्रणी रहा है |
बंगाल में क्रन्तिकारीयों की जो कड़ी है एक मोटी पुस्तक बन जाएगी जिसमे कुछ नामो को लिख रहा हूँ | चित्तरंजन दास–रासबिहारी बोस–खुदीराम बोस–शचीन्द्रनाथ सान्याल–नलिनीकांत बाकची- मातोंगिनी हाजरा –बटुकेश्वर दत्त –बाघा जतीन –विनय–बादोल –दिनेश –सुरेन्द्रनाथ बनर्जी–कानाईलाल दत्त –राजेंद्र लाहीडी –सुरेशचन्द्र भट्टाचार्ज–सत्येन्द्रनाथ बोसू –सुभाषचंद्र बोस –जोतिन्द्रो नाथ दास –जोतिन्द्रो नाथ मुखर्जी –हज़ार से ज्यादा लोगों के नाम है | मैंने यह सारा प्रमाण देशभक्तों के इतिहास नामी ग्रंथोंसे ली है जो की स्वामी औमानन्द सरस्वती –श्री वेदव्रत शास्त्री व्यक्रनाचार्य –द्वारा सम्पादित हरियाणा साहित्य संसथान–गुरुकुल झज्जर से प्रकाशित है |
-महेन्द्रपाल आर्य -वैदिक प्रवाकता =दिल्ली

Monday, May 26, 2014

सरकार की मानसिकता

मित्रो जर्मनी देश की विमान सेवा का नाम लुप्तहन्सा है जिसका अर्थ होता है
जो हंस लुप्त हो गए हैं यहाँ लुप्त और हंस दोनों ही संस्कृत के शब्द हैं !
वही भारत की विमान सेवा मे AIR और INDIA दोनों शब्द अँग्रेजी के हैं कितने शर्म की
बात सभी भाषाओ की जननी संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा मे से हमारी सरकार 
को दो शब्द नहीं मिले !
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मित्रो बात दो विमान सेवाओ के नाम की नहीं है बात सरकार की मानसिकता की है , आजादी के बाद जो लोग सत्ता की तरह लपलपाती जीभ लेकर खड़े हुए थे उन लोगो के अंग्रेजी के प्रति लगाव को पुरे देश पर थोपा जा रहा है और कहा जा रहा है की अंग्रेजी ही आपका उधार कर सकती है !!

आज जर्मनी मे विश्वविद्यालयो की शिक्षा मे संस्कृत की पढ़ाई पर और संस्कृत के शास्त्रो की पढ़ाई पर सबसे अधिक पैसा खर्च हो रहा है !जर्मनी भारत के बाहर का पहला देश है जिसने अपनी एक यूनिवर्सिटी संस्कृत साहित्य के लिए समर्पित किया हुआ है !
हमारे देश मे आयुर्वेद के जो जनक माने जाते है उनका नाम है महाऋषि चरक ! जर्मनी ने इनके नाम पर ही एक विभाग बनाया है उसका नाम ही है चरकोलजी !!
अंत मित्रो बात यही है जो व्यवस्था आजादी के 67 साल बाद भी भारत को विदेशी भाषा की गुलामी से मुक्त नहीं करवा पाई उस व्यवस्था के लिए भारतवासियो को गरीबी ,अन्याय ,शोषण से मुक्त करवाना असंभव है !
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संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता और महत्व को विस्तार से जानना चाहते है तो
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Saturday, May 24, 2014

कट्टर हिन्दू

हिन्दू अगर कट्टर होता है तोवो अपने धरम की रक्षा केलिए ना की किसी दुसरे धरम के लोगो की हत्या या उनके धरम पर हमला करने के लिए |इतिहासगवाह है हिन्दू चाहे कितना भी कट्टर हुआ हो उसने किसी को बेवजह नुकसान नहीं पहुँचाया पर उसने हमेशा अपने धारण की रक्षा के लिए सश्त्र जरुर उठाये है और मै समझता हु इसमें कोई बुराई नहीं है |इस्लाम कहता है अगरतुम इस्लाम को नहीं मानते तोतुमकाफीर हो तुमको जीने का कोई हक नहीं है जबकि मेरा सनातन धरम कहता है सब धरम एक है | लेकिन जब मेरे उसी सनातन धरमपर कोई प्रहार करे तो क्या मेरा कर्तव्य नहीं बनता की मै उसकी रक्षा करू|जिस गौ को मै माता मानता हु उसकी हत्या का विरोध करना क्या मेरा कर्तव्य नहीं है मै एक बात साफ़ कर देना चाहूँगा कीमै ऐसे किसी धरम ऐसे किसी खुदा या अल्लाह को नहीं मान सकता जो यह कहता हो की उससे नहीं मानने वाला काफ़िर है |रही बात मेरे कट्टर होने की तो अगर हिन्दूअस्मिता की बात करना कट्टरता है तो मै कट्टर हु अगर हिन्दू हित की बात करना साम्प्रदायिकता हैतो मै सांप्रदायिक हूँ | अगरअपने भगवन राम में आस्था रखना साम्प्रदायिकता है तो मै सांप्रदायिक हूं | मै उन सभीकारणों के लिए कट्टर रहूँगा अपने धरम के प्रति जोमेरे सनातन धरम पर चोट करेंगे | कुछ सवालों के जवाबउन सब से जो मुझे भाईचारे का पाठ पढ़ाते है :01.जब ओवैसी भाई हमारे आस्था के प्रतीक भाग्यलक्ष्मी मंदिर को खुलेआम तोड़ने की बात करते है तो सब चुप क्यों रहते है ? और जब हम अपने आराध्य श्री राम का मंदिर उनकी जन्मभूमि अयोध्या में बनाने की बात करते है तो सांप्रदायिक क्यों हो जाते है? !!!! मै पूछना चाहता हूँ कथित भाईचारे के ठेकेदारों से की हम श्री राम का मंदिर अयोध्या में नहीं तो क्या मक्का मदीना में बनाए ?02. हमपर सवाल उठाने वाले कभी उनपर सवाल क्यों नहीं उठाते जोमाँ भारती को डायन कहते हैऔर वन्देमातरम का अपमान करते है ?03.तिरंगे को जलाने वालो पे क्यों खामोश रहते हैये सब?04.कहाँ मर जाते है सब जब हम कश्मीरी पंडितो की बात करते है ?05.गोधरा पर छाती पीटने वालेक्यों कभी असम की बात नहीं करते है ?06. मुसलमानों के लिए देश में अल्पसंख्यक के नाम पर विशेष कानून बन जाते है जबकिहिन्दू कभी अपने लिए विशेष कानून बनाने को नहीं कहता हैबल्कि वो तो समान नागरिक कानून की बात करता है तो सब क्यों चुप रहते है क्यों उसेखा जाने वाली नजरो से देखा जाता है जैसे उसने कोई गुनाहकर दिया हो ?07. हज़यात्रा का हमने कभी विरोध नहीं किया न कभी हज़ पर दी जाने वाली सब्सिडी का विरोध किया लेकिन अमरनाथ यात्रा पर की बात करने वाले फिर भी धर्मनिरपेक्ष और हम सम्प्रदियिक क्यों हो जाते है ?08. दुसरे देशो में मुस्लिमोके साथ कुछ भी होने पर भारत के मस्लिम भारत में क्यों तोड़फोड़ और विरोध प्रदर्शनकरते है ? जबकि यहाँके हिन्दुओ के साथ कुछ भी होने पर चुप रहते है!!!!!!09.साम्प्रदायिकता निवारण बिल के नाम पर क्यों सिर्फ हिन्दू विरोधी कानून बनाये जाते है ?10.हिन्दू सांप्रदायिक क्यों जबकि भूतकाल से लेकर आजतक उसने किसी दंगे की शुरुआत नहीं की? क्या अपना बचाव करना साम्प्रदायिकता है???!!!!!!!!11.
हिन्दू सदैव कहता है राष्ट्र सर्वोपरी जबकि मुसलमान के लिए इस्लाम सर्वोपरी है फिर भी मुस्लिम राष्ट्रभक्त कैसे ??मै जानता हूँ किसी सेकुलर केपास कोई जवाब नहीं होगा अगर होगा भी तो ये कहेगा की सारे मुस्लिम ऐसे नहीं है ? तो फिरमेरा ये भी सवाल है की फिर सारे मुस्लिम कैसे है ? शाही इमाम जैसे , जाकिर नाइक जैसे, आज़म खान जैसे , या फिर ओवैसी भाइयो जैसे जो इनका नेतर्त्व करते है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!कुछ दिनों से मै देख रहा हूं की मै हिंदुत्व पर खतरे की बात वाला कोई भी पोस्ट करता हु तो कुछ लोगो को बड़ा बुरा लगता है की मै तो हिन्दू मुस्लिम की बात करता हू | मेरा उन सभी भाइयो दोस्तों , बहनों से विनम्र निवेदन है की वो अगर मेरे पोस्ट से सहमत नहीं हो तो मेरे पोस्ट को नज़रन्दाज कर दे या जरा भी बर्दास्त नहीं हो उनसे ऐसे पोस्ट तो मै उनसे कहना चाहूँगा की वो मुझे फ़ौरन अपनी मित्र सूचि से हटा दे और अगर मेरा पेज लाइक कर रखा हो तो उसे भी अन्लाइक कर दे |मुझे ऐसे लोगो की ऐसे दोस्तों की ऐसे भाइयो, ऐसी बहनों की कोई जरुरत नहीं है जो मेरे धरम पर कटाक्ष करने वालो का परोक्ष समर्थन करते हो झूठी धरमनिर्पेक्षता के नाम पर और हमें सांप्रदायिक समझते हो |

Jai Hind

पढ़े - लिखे लोग बोलते हैं , देश में कानून है | कौन सा कानून है भारतीय शासन अधिनियम 1935 के काफी कानून जो अंग्रेजों ने अपने सुविधा के लिए बनाया था , आज भी सिटी बजा कर चल रहे हैं | पुलिस एक्ट और जुडिशल एक्ट जो अंग्रेजों ने बनाया था , वही आज तक चल रहे हैं , जबकि अंग्रेजों ने अपने देश में कभी इन कानूनों को नहीं अपनाया | कानून ऐसा हो, जिससे भ्रष्टाचारियों की रूह कांपें , अपराधी , बलात्कारी संसद के अन्दर न पहुंचे | देश के आम लोगों को न्याय मिले , अगर कानून सही है तो देश में तथाकथित भ्रष्टाचारी सुरेश कलमाडी, राजा , लालू , केनिमोड़ी, येद्दुरप्पा , श्रीरामलू का क्या हुआ ?? सभी जमानत पर बाहर घूम रहे हैं , जबकि चीन में एक रेलमंत्री ने भ्रष्टाचार किया और उसे फांसी की सजा हो गयी | हम तो विरोध करेंगे , जिनको चादर तान कर सोना है , सोयें और बोलें- देश में कानून अपना काम कर रहा है | भगत सिंह की शहादत बेकार नहीं जाएगी |

क्यों त्रिशूलधारी हैं महादेव ?

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शिव स्वरूप में त्रिशूल अहम अंग है। त्रिशूल का शाब्दिक अर्थ है 'त्रि' यानी तीन और 'शूल' यानी कांटा। त्रिशूल धारण करने से ही भगवान शिव, शूलपाणि यानी त्रिशूल धारण करने वाले देवता के रूप में भी वंदनीय है। इसके पीछे धार्मिक दर्शन है कि त्रिशूल घातक और अचूक हथियार तो है, किंतु सांसारिक नजरिए से यह कल्याणकारी है, क्योंकि त्रिशूल के तीन कांटे जगत में फैले रज, तम और सत्व गुणों का प्रतीक हैं।
दरअसल, इन तीन गुणों में दोष होने पर ही कर्म, विचार और स्वभाव भी विकृत होते हैं, जो सभी दैहिक, भौतिक और मानसिक पीड़ाओं का कारण बन शूल यानी कांटे की तरह चुभकर असफल जीवन का कारण बनते हैं।
शिव के हाथों में त्रिशूल संकेत है कि महादेव इन तीन गुणों पर नियंत्रण करते हैं। शिव त्रिशूल धारण कर यही संदेश देते हैं कि इन तीन गुणों में संतुलन और समायोजन के द्वारा ही व्यक्तिगत जीवन के साथ सांसारिक जीवन में भी सुखी और समृद्ध बन सकता है, अन्यथा कलहपूर्ण, कटु और असफल जीवन की पीड़ाओं को भोगना पड़ता है।

Friday, May 23, 2014

देसी फ्रिज


मिट्टी के पात्रों का इतिहास हमारी मानव सभ्यता से जुड़ा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक मिट्टी के बर्तन मिले थे। पुराने समय से कुम्हार लोग मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं। कुम्हार शब्द कुम्भकार का अपभ्रंश है। कुम्भ मटके को कहा जाता है, इसलिए कुम्हार का अर्थ हुआ-मटके बनाने वाला। पानी भरने के साथ-साथ हमारे पूर्वज भोजन पकाने और दही जमाने जैसे कार्यों में भी मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल करते थे। वे इन बर्तनों के गुणों से भी अच्छी तरह परिचित थे। चलिए जानते हैं कि इन बर्तनों के इस्तेमाल से लाभ....
हमारे यहां सदियों से प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का इस्तेमाल होता आया है। दरअसल, मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में भोजन या पानी रखा जाए, तो उसमें मिट्टी के गुण आ जाते हैं। इसलिए मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी व भोजन हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। मिट्टी की छोटी-सी मटकी में दही जमाया गया दही गाढ़ा और बेहद स्वादिष्ट होता है। मटके या सुराही के पानी की ठंडक और सौंधापन के तो क्या कहने!!!!!!!!!!!!!
गर्भवती स्त्रियों को फ्रिज में रखे, बेहद ठंडे पानी को पीने की सलाह नहीं दी जाती। उनसे कहा जाता है कि वे घड़े या सुराही का पानी पिएं। इनमें रखा पानी न सिर्फ हमारी सेहत के हिसाब से ठंडा होता है, बल्कि उसमें सौंधापन भी बस जाता है, जो काफी अच्छा लगता है।
गर्मियों में लोग फ्रिज का या बर्फ का पानी पिते है ,इसकी तासीर गर्म होती है.यह वात भी बढाता है |
बर्फीला पानी पीने से कब्ज हो जाती है तथा अक्सर गला खराब हो जाता है |
मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता ,इसका पानी संतुष्टि देता है.
मिटटी सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है तथा पानी में सभी ज़रूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाती है.
मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता है |मटके के पानी से कब्ज ,गला ख़राब होना आदि रोग नहीं होते |
सावधानी
सुराही और घड़े को साफ रखें, ढककर रखें तथा जिस बर्तन से पानी निकालें, वह साफ तरह से रखा जाता हो। मटकों और सुराही का इस्तेमाल करने के भी कुछ नियम होते हैं। इनके छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों को हाथ लगाकर साफ नहीं किया जाता। बर्तन को ताजे पानी से भरकर, जांच लेने के बाद केवल साधारण तरीके से धोकर तुंरत इस्तेमाल किया जा सकता है। बाद में कभी धोना हो, तो स्क्रब आदि से भीतर की सतह को साफ कर लें। मटकों और सुराही के पानी को रोज बदलना चाहिए। लम्बे समय तक भरे रहने से छिद्र बंद हो जाते हैं।

Tuesday, May 20, 2014

गौ माँ का महत्व

1) 1 तोला देसी गाय के घी में बेल का रस मिलाकर पिलाने से ह्रदयघात में आराम मिलता है I
2) देसी गाय का दुध मा के दुध के समान होता है I 
3) हररोज आधा ग्लास पाणी में चार चमचे गोमूत्र (गोअर्क), दो चमचे शहद और एक चमचा लींबूका रस मिलाकर सेवन करने से मोटापा कम होता है I
4) देसी गाय के गोबर जैसा दुसरा किटाणूनाशक द्रव्य नहीं है I
5) देसी गाय का गोमूत्र (गोअर्क) हररोज सेवन करने से हर प्रकारका कफ रोग में आराम मिलता है I

Sunday, May 18, 2014

सोलह शृंगार

सोलह शृंगार घर मे सुख और समृद्धि की पुनर्स्थापना के लिए किया जाता है। शृंगार का उपक्रम यदि पवित्रता और दिव्यता के दृष्टिकोण से किया जाए तो यह प्रेम और अहिंसा का सहायक बनकर समाज में सौम्यता और शुचिता का वाहक बनता है। तभी तो भारतीय संस्कृति में सोलह शृंगार को जीवन का अहं और अभिन्न अंग माना गया है…ऋग्वेद की सौभाग्य के लिए किए जा रहे सोलह शृंगारों का उल्लेख है। इसमंे कहा गया है कि सोलह शृंगार घर में सुख और समृद्धि की पुनर्स्थापना के लिए किया जाता है। शृंगार का उपक्रम यदि पवित्रता और दिव्यता के दृष्टिकोण से किया जाए तो यह प्रेम और अहिंसा का सहायक बनकर समाज में सौम्यता और शुचिता का वाहक बनता है। तभी तो भारतीय संस्कृति में सोलह शृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग माना गया है।आइए देखते हैं क्या होते हैं सोलह श्रृंगार-
1.बिंदीःमाथे पर लाल गोल चिन्ह ।
2. सिंदूरः बालों के बीच सिंदूर की रेखा।
3. मांग टीकाःबालों के बीच की रेखा पर पहने जाने वाला आभूषण।
4. काजलः पलकों के किनारे पर लगने वाली काली रेखा।
5. नथः इसे नाक में पहनते हैं ।
6. मंगलसूत्रः स्त्री विवाह के बाद गले में पहनती हैं।
7. कर्ण फूलः इसे कान में पहनते हैं ।
8. मेहंदीः हाथों में लगाई जाती है।
9. चूडि़यांः हाथों में पहनी जाती हैं।
10. बाजूबंदः इसको बाजू में बांधा जाता है।
11. कमरबंदः इसे कमर में बांधा जाता है।
12. सुहाग का जोड़ाः जब लड़की की शादी होती है तो उसको लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं|
13. पायलः इसको पावों में डाला जाता है।
14. बिछुए: इसको पावों की अंगुली में डाला जाता है।
15. केशपाशः इसको बालों में लगाया जाता है।
16. इत्रः सुगंधित पदार्थ अथवा परफ्यूम ।

||कुरान ईश्वरीय है क्या की भूमिका||

||कुरान ईश्वरीय है क्या की भूमिका||
आज समस्त विष्य में डॉ जाकिर नाईक के नाम से किसी का परिचय हो न हो, किन्तु सम्पूर्ण इस्लाम जगत उन्हें जानते हैं | उन्हों ने तहरीर और तक़रीर के माध्यम से गैर मुस्लिमों को इस्लाम का दावत दिया है, और उन्हें मुस्लमान बनानेका मुहीम छेड़ रखा है, और ज्यादा तर लोग जो अनभिज्ञ, और न समझ है उनके चंगुल में आसानी से फंस जाते हैं | इसमें ज्यातर वह लड़के और लड़कियां फंस जाती हैं, जिन्हें अपनी धर्म के बारे मे कुछ पता नहीं होता फिर उनको यह इस्लाम समझा देते हैं | उन्हें दिखाते हैं यह मूर्ति पूजा देवी और देवतावों को, और कहते हैं देखो तुमहारे यही देवता है हनुमान जो सूरज को भी निगल जाते हैं बोलो यह कैसे हो सका ? हमारे बच्चे निरुत्तर हो जाते हैं, उनके सामने उनकी बातों का जवाब नहीं दे पाते इससे वह मजबूर होकर उनकी बातों को स्वीकार कर इस्लाम कुबूल करलेते हैं |
हमारे लोगों को मालूम ही नहीं की इस्लाम में इस प्रकार की बातें है या नहीं ? जब इनको अपने बारे में ही जानकारी नहीं तो वह इस्लाम के बारे मे कैसे जानते भला ? यह काम सिर्फ और सिर्फ उन मुसलमानो को अगर निरुत्तर किया तो आर्य समाज के विद्वानों ने किया इतिहास साक्षी है | आर्य समाज के विद्वानो ने झट कहा की मानलिया सूरज का निगल जाना यह हनुमान के लिए नहीं हुवा कारण यह बात विज्ञानं विरुद्ध है, सृष्टि नियम विरुद्ध भी है | पर आप इस्लाम वाले यह तो बताव की चाँद को हज़रत मोहम्मद साहब ने ऊँगली के इशारे से किस प्रकार तोड़े थे ? वह भी उस चाँद में हाथ लगाये बिना इतने दूर से तोड़ना कैसे उचित मानते हैं आप ? तब इनका अन्धबिश्वास का पोल खुल जाता है, यानि उनकी अंधबिश्वास सत्य है किसी और की गलत, यह है इस्लामिक मान्यता | पर करें तो क्या यह हिन्दू कहलाने वाले इस्लाम को क्या जानते यह तो अपने को ही नहीं जानते, वरना उनके शिकार नहीं बनते |
तो इस प्रकार जाकिर नाईक ने सम्पूर्ण विश्व में अपना नेटवर्क बिछा रखा है और बोहुत ज्यादा तायदाद में हिन्दुवों को योजनावध्य तरीके से काम कर रहे हैं | और यह काम इस्लाम प्रचार प्रसार के नाम से अरब देशों से और अन्य देशों से मानो उसपर धन की वर्षा हो रही है, और वह जाकिर साहब धड़ल्लेसे हिन्दुओं को मुसलमान बनाने में जुटे हैं |
इधर जिस आर्य समाज ने जन्म काल से इस्लाम को मात देता आया शास्त्रार्थ करते हुए सम्पूर्ण जगत में यह सिद्ध किया की मानव मात्र का धर्म एक है, मानव मात्र का इष्ट देव एक परमात्म है, मानव मात्र का धर्म ग्रन्थ वेद है | इसी प्रमाण के तौर पर 1875 से लेकर अबतक यह आर्य समाज नामी संस्था काम करती आ रही हैं | मै आर्य समाज को जाना 1983 में पहले मेरठ –अब बागपत है, यही एक बड़ी मस्जिद में इमाम रहते गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ के माध्यम से उर्दू वाली सत्यार्थ प्रकाश मिली उसे पड़ने के बाद 25 जगह इस्लामिक मदरसे में सवाल लिख कर भेजा जिस का जवाब नहीं दे पाए, और उसी समय मै वैदिक धर्मी बनगया | यह हिन्दू कहलाने वाले दयानन्द को पढ़ा ही नहीं वरना जाकिर नाईक के चंगुल में न फंसते, अब इन हिन्दू कहलाने वालों का दयानन्द को पढ़ना तो दुर की बात है उनका नाम ही सुनना पसंद नहीं करते | कारण दयानन्द ने मूर्ति पूजना वेद विरुद्ध बताया, यह बात हिन्दुओं को पसंद नहीं हुवा, अगर यहलोग उनकी किताब पढ़ लेते तो मुस्लमान बन्ने से भी बच जाते |
जिस प्रकार जाकिर नाईक हिन्दू को खुले आम मुस्लमान बना रहे हैं, उस से अब इन आर्यसमाज को भी कोई चिंता नहीं | इसका मूल कारण आर्यसमाज अब इस्लाम का पोषक और इस्लाम का प्रचारक बन चूका है, जो आर्यों के शिरोमणि सभा में रमजान की अफ्तार पार्टी दी जाने लगी, और इस्लाम वालों को लेकर उसी दयानन्द के जन्मस्थली टंकारा में जमाते इस्लामी हिन्द के अधिकारिओं को साथ ले जाने लगे | जो जाकिर नाईक वेद के खिलाफ प्रचार कर रहा है उसके जिनते साथी संगी हैं वह वेद में मुहम्मद का नाम बता रहे हैं, वेद में परिवर्तन बतला रहे हैं, उसपर आर्यों समाज के अधिकारिओं को कोई आपत्ती नहीं | सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए 2 मुसलमानों का लाम देकर कोर्ट में केस दायर हुवा, उसमे सारे आर्य समाज के अधिकारी सिर्फ जनता से पैसा इकट्ठा किया केस में कोर्ट के नजदीक तह नहीं गये |
आज तक जाकिर नाईक को किसी भी आर्य समाजी ने पूछ कर नहीं देखा की वेद में मुहम्मद का नाम कहाँ है जरा दिखा तो दें ? यह काम सिर्फ महेन्द्रपाल के जिम्मे है, मैंने उसे लिखा भी और चुनौती भी दी जो आज सम्पूर्ण इन्टरनेट में छाया है, मेरी किताब में मौजूद है | जाकिर नाईक की दुकानदारी भारत में बन्द करने में सुदर्शन न्यूज़ चेनल और महेन्द्रपाल का काम था सिर्फ इतना ही नहीं उसी IRF से जुड़े जितने भी हैं मुश्फिक सुल्तान, असलम कासमी, सतीशचन्द्र गुप्ता, सबको मै ही निरुत्तर कर रखा हूँ | यहाँ तक की कुरान का हिन्दी अनुवादक मौलाना फारुक खान को 2004 के एक अगस्त में दिल्ली के खारी बावली आर्य समाज में शास्त्रर्थ में निरुत्तर किया | आर्य समाज के अधिकारी सहमत नहीं थे, इस कार्य में, यह शास्त्रर्थ हमारे एक मित्र लालचंद गुप्ता जी के माध्यम से हुवा था, यही आर्य समाजी उसकी रेकॉर्डिं भी नहीं की | खतौली के मौलवी गयासुद्दीन को मेरे एक मित्र संजीव उपाध्याय अपने साथ लेकर आये 15 हनुमान रोड के आर्य समाज में भारी भीड़ में दिनके 12 बजे से लेकर शाम को 6 बजे तक उसे खाता खोलने ही नहीं दिया, आर्यसमाज के अधिकारी उसकी भी रेकोडिं नहीं की |
27 मार्च 2007 को अलीगढ़ मुस्लिम विष्यविद्यालय के प्रोफेसर डॉ तारिक मुर्तोजा जो शास्त्रर्थ में परास्त हुए, स्वामी शिवानन्द जी की अध्यक्षता में, जिसे घरेलु वातावरण में रेकोडिंग की गयी जिसमे मै अपने साथ लेकर गया, मेरे ही गुरु भाई लाजपत राय ने संचालन किया, जो दुनिया देख रही है | उसके बाद 8 फरवरी 2008 को अब्दुल्ला तारिक के साथ शस्त्रार्थ बुलन्द शहर में हुवा जिसमे दिल्ली के एक आर्यसमाज के नेता व अधिकारी धर्मपाल जी को मै साथ लेगया, उन्ही को अध्यक्ष बनाया, निर्णय देने की जगह उन्होंने क्या कहा सबके सामने है इन्ही दोनों CD को हमारे साथिओं ने नेट पर डाला TRUTH WISDOM 2008 के नामसे आज जिसका paswad मेरे को न मिलने से उसे चला नहीं पाया | इसका पूरा बिवरण मेरी पुस्तक में है ‘मस्जिद से यज्ञशाला की ओर’ में | मेरी साईट को बनाने वाला संजीव नेवर था, अब तक अग्निवीर का जन्म ही नहीं हुवा था | मुझे इन्टरनेट पर लाने वालों में यही हमारे 3 मित्र ही थे |
इन दोनों CD अनेक हिन्दू लड़के व लड़किओं को मुस्लमान बन ने से बचाया, इसी दिल्ली में एक कमिश्नर का पुत्र जो IAS की तैयारी कर रहे जिसने इस्लाम कुबूल करने से बचा आज वर्षों से मुझसे अरबी पढ़ रहे | यही दिल्ली में ही न मालूम मैंने कितनों को मुस्लमान होने से बचाया मेरे पास सब के प्रमाण है | भारत भर में ही नहीं अपितू अरब देशों में मेरे द्वारा अनेकों तार्किक और वैदिक ज्ञानवाण तैयार हुवे जो यही जाकिर नाईक के बनाये शिष्यों को परास्त कर चुके हैं | भारत भर में हजारों को मैंने तैयार कर दिया, जिन्होंने इस्लाम के दिग्गजों को पानी पिला चुके, अभी बंगाल में मेरे संपर्क से बने जिन्होंने वेद को कभी जानते ही नहीं थे आज एक आर्य समाजी विद्वानों से ज्यादा जानकारी रखने वाले इस्लाम जगत के विद्वानों का छक्का छुड़ा रहे हैं, ठीक इसी प्रकार हैद्राबाद में – बंगलौर में, मुम्बई में, केरला में न मालूम कितने ही बच्चे मेरे प्रयास से बने है उ प्र में, गुजरात में –पंजाब में–हमारी टीम काम कर रही हैं | परमात्मा की असीम अनुकम्पा है की आज मै अपने आप में खुश हूँ की मेरे 30 वर्ष की जो मेहनत है वह रंग लाई है, हिन्दू घराने के अनेक बच्चे अपने नाम आर्य लिखने लगे जो कभी आर्य समाज को जाना ही नहीं था | मै सिर्फ असत्य और अधर्म के लिए काम करता हूँ इसमें कोई मुझे अपना विरोधी माने या कुछ और, वह यह न समझें की उनके विरोध करने से मै काम छोड़ दूँ | यह नहीं होगा जिस इस्लाम से मै आया शायद उनका इतना विरोध मुझे झेलना नहीं पड़ा होगा जितना की इन तथा कथित आर्यसमाजी या हिन्दू कहलाने वालों का | मुझे इस्लाम में वापस जाने के लिए लोगों का बोहुत प्रयास रहा जो मै लिखा भी –यह बुलावा किसलिए जरुर आप सभी ने पढली होगी | जो आर्य समाजी मुझ पर लिखते या कहते हैं उन्हें मै कई जन्म तक वैदिक मान्यता को पढ़ा सकता हूँ | जो अधिकारी है वह वैदिक मान्यता की तो क– ख भी नहीं जानते | कुछ जो काम मै किया हूँ, जिसमे वैदिक मान्यता का गलाघोटने वालों का पर्दा फाश हुवा जिससे वह तिलमिला रहे | ठीक इसी प्रकार डॉ जाकिर नाईक का पर्दा फाश मै टीवी चेनल के माध्यम से किया हूँ जिन्होंने सुदर्शन न्यूज़ चेनल को देखा है उन्हें ज़रूर मालूम है | मुश्फिक सुल्तान का पर्दाफाश, बेचारेने जवाब देकर फंसाया इस्लाम को मेंने किया है | ठीक इसी प्रकार डॉ असलम कासमी का पर्दाफाश किया हूँ , अकल पर दखल न देने वाले धर्म और मज़हब के भेद को क्या जाने लिख कर | अभी गाजियाबाद में एक मुस्लमान बना जिससे मेरा संपर्क हो गया आगे कहाँ तक बात होती है देखते है | इन कामों में आर्य समाजी कोई भाग नहीं लेते, यह निर्मात्री वालों का भेजा हुवा मै ही घर वापसी की | यह लोग सिर्फ बात बनाते है आर्यों के संपत्ति की ओर नज़र रखते हैं, परावर्तन का काम उनका नहीं और वह जानते भी नहीं, गलत जानकारी इस्लाम के बारे मे दे रहे हैं, मैंने जितेन्द्र को टोक दिया था | अब डॉ जाकिर नाईक को कुरान ईश्वरीय ग्रन्थ है अथवा नही का ज़वाब, कुरान ईश्वरीय कैसे लिख कर दे रहा हूँ | अभी एक सूरा यूसुफ़ को लिखा की कुरान में अल्लाह ने अपनी अरबी जुबान में किस प्रकार की कहानी सुनाया है यह कलामुल्ला का होना उचित है अथवा नहीं, मानव कहलाने वाले इसको परखें | जो 13 भागों में है, कुरान की भाषा में अल्लाहने क्या कहा उसी को अरबी उर्दू और, हिंन्दी तीनो में लिखा हूँ, नोट में मै अपना विचार भी दिया, की आसानी से सभी को समझमें आजाये|
महेन्द्र पालआर्य वैदिक प्रवक्ता,दिल्ली ----------

Saturday, May 17, 2014

हम नमस्ते क्यों करते है ?

हम नमस्ते क्यों करते है ?
शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है जिन में से एक है "नमस्कारम"।
नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है। संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + ते।
नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया। नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नही। आध्यात्म की दृष्टी से इसमें मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है। नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया... जाता है जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये।

हम बड़ों के पैर क्यों छूते है ?
भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है। अच्छे भावः से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक ऊर्जा होती है।
आदर के निम्न प्रकार है : * प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना
* नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना
* उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना
* साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना
* प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना

किसे किसके सामने किस विधि से सत्कार करना है ये शास्त्रों में विदित है। उदाहरण के तौर पर राजा केवल ऋषि मुनि या गुरु के सामने नतमस्तक होते थे।

स्त्री और पुरुष को शासक

यजुर्वेद 20.9 – स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार
है
यजुर्वेद 17.45 -स्त्रियों की भी सेना हो और, स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए
प्रोत्साहित करें |
यजुर्वेद 10.26 - शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें | जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों |
अथर्ववेद 11.5.18 – ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है |
यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है | कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें |
अथर्ववेद 14.1.6 – माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय
बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें | वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें |
जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे |

Thursday, May 15, 2014

'अहम् ब्रह्म अस्मि' का तात्पर्य

अहम् ब्रह्मास्मि का सरल हिन्दी अनुवाद है कि मैं ब्रह्म हूँ । सुनकर बहुधा लोग ग़लतफ़हमी का शिकार हो जाया करते हैं। इसका कारण यह है लोग - जड़ बुद्धि व्याख्याकारों के कहे को अपनाते है। किसी भी अभिकथन के अभिप्राय को जानने के लिए आवश्यक है कि उसके पूर्वपक्ष को समझा जाय।
उपनिषद् अथवा इसके एक मात्र प्रमाणिक भाष्यकार आदिशंकराचार्य किसी व्यक्ति-मन में किसी भी तरह का अंध-विश्वास अथवा विभ्रम नहीं उत्पन्न करना चाहते थे। 
इस अभिकथन के दो स्पष्ट पूर्व-पक्ष हैं-
१- वह धारणा जो व्यक्ति को धर्म का आश्रित बनाती है। जैसे, एक मनुष्य क्या कर सकता है करने वाला तो कोई और ही है। मीमांसा दर्शन का कर्मकांड-वादी समझ , जिसके अनुसार फल देवता देते हैं, कर्मकांड की प्राविधि ही सब कुछ है । वह दर्शन व्यक्ति सत्ता को तुच्छ और गौण करता है- देवता, मन्त्र और धर्म को श्रेष्ठ बताता है। एक मानव - व्यक्ति के पास पराश्रित और हताश होने के आलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता। धर्म में पौरोहित्य के वर्चस्व तथा कर्मकांड की 'अर्थ-हीन' दुरुहता को यह अभिकथन चुनौती देता है। 
२- सांख्य-दर्शन की धारणा है कि व्यक्ति (जीव) स्वयं कुछ भी नहीं करता, जो कुछ भी करती है -प्रकृति करती है। बंधन में भी पुरूष को प्रकृति डालती है तो मुक्त भी पुरूष को प्रकृति करती है। यानि पुरूष सिर्फ़ प्रकृति के इशारे पर नाचता है। इस विचारधारा के अनुसार तो मानव-व्यक्ति में कोई व्यक्तित्व है ही नहीं। 
इन दो मानव-व्यक्ति-सत्ता विरोधी धारणाओं का खंडन और निषेध करते हुए शंकराचार्य मानव-व्यक्तित्व की गरिमा की स्थापना करते हैं। आइये, समझे कि अहम् ब्रह्मास्मि का वास्तविक तात्पर्य क्या है?
अहम् = मैं , स्वयं का अभिमान , कोई व्यक्ति यह सोच ही नहीं सकता कि वह नहीं है। मैं नही हूँ - यह सोचने के लिए भी स्वयं के अभिमान की आवश्यकता होती है। या नहीं ? विचार करें । 
ब्रह्म= सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ , सर्व-व्याप्त , वह शक्ति जिससे सब कुछ, यहाँ तक कि ईश्वर भी उत्पन्न होते हैं। 
अस्मि= हूँ, होने का भाव , बने होने का संकल्प ।
 
सबसे पहले तो सभी मनुष्य को यह दृढ़ता से महसूस करना चाहिए कि वह है । अपने को किसी दृष्टि से , किसी भी कारण से, किसी के भी कहने से अपने को हीन, तुच्छ, अकिंचन आदि कतई नहीं मानना चाहिए। यह एक तरह का आत्म-घात है, अपने अस्तित्व के प्रति द्रोह है। कोई यदि आपको यह विश्वास दिलाने का यत्न करे कि आप तुच्छ हैं तो आप उस बात को पागल को प्रलाप समझ कर नज़र-अंदाज़ कर जाएँ।
दूसरी बात यह कि आप में, यानि हर व्यक्ति में सबकुछ= कुछ भी कर सकने की शक्ति विद्यमान है। ब्रह्म कहे जाने का अभिप्राय यही है कि प्रत्येक व्यक्ति में संभावन एक-सा है । कोई वहां उस गद्दी पर बैठ कर जो आपको ईश्वर प्राप्ति का रास्ता बता रहा है, वह स्वयं दिग्भ्रमित है और आपको मुर्ख बनने का प्रयास कर रहा है। आप स्वयं सर्व-शक्तिमान ब्रह्म हैं, इस सत्य का आत्मानुभव बड़ा है। उपनिषद और शंकराचार्य हमें यही विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। 
अंत में ,
अहम् ब्रह्मास्मि का तात्पर्य यह निगमित होता है कि मानव-व्यक्ति स्वयं संप्रभु है। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त महिमावान है - इसलिए हे मानवों !
अपने व्यक्तित्व को महत्त्व दो। आत्मनिर्भरता पर विश्वास करो। कोई ईश्वर, पंडित, मौलवी, पादरी और इस तरह के किसी व्यक्तियों को अनावश्यक महत्त्व न दो। तुम स्वयं शक्तिशाली हो -उठो, जागो और जो भी श्रेष्ठ प्रतीत हो रहा हो , उसे प्राप्त करने हेतु उद्यत हो जाओ । 
जो व्यक्ति अपने पर ही विश्वास नही करेगा-उससे दरिद्र और गरीब मनुष्य दूसरा कोई न होगा। यही है अहम् ब्रह्मास्मि का अन्यतम तात्पर्य।
----------- हर हर महादेव ........जय अम्बे

हिंदू धर्म का पवित्र चिह्न स्वास्तिक


हिंदू धर्म का पवित्र चिह्न स्वास्तिक
विवरण भारत का सर्वप्रमुख धर्म हिन्दू धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है।
प्रमुख देवता शिव, विष्णु, गणेश, कृष्ण, राम, हनुमान, सूर्य आदि
प्रमुख देवियाँ दुर्गा, पार्वती, पृथ्वी, महालक्ष्मी, सरस्वती, काली, गायत्री आदि
दस अवतार मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि
धर्म प्रवर्तक और संत आदि शंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु, दयानंद सरस्वती, निम्बार्काचार्य, स्वामी रामानंद, समर्थ रामदास, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी हरिदास, रामकृष्ण परमहंस, रामानुज, वल्लभाचार्य आदि
धर्मग्रंथ 4 वेद (ॠग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद), 13 उपनिषद, 18 पुराण, रामायण, महाभारत, गीता, रामचरितमानस आदि।
सम्प्रदाय शैव मत, वैष्णव, शाक्त, आर्य समाज, कबीरपंथ, चैतन्य, दादूपन्थ, द्वैतवाद, निम्बार्क, ब्रह्मसमाज, वल्लभ, सखीभाव आदि
तीर्थ स्थल हिन्दू मन्दिर, शक्तिपीठ, ज्योतिर्लिंग
संबंधित लेख ॐ, स्वस्तिक, वैदिक धर्म, हिन्दू संस्कार, हिन्दू कर्मकाण्ड, आरती स्तुति स्तोत्र
अन्य जानकारी हिन्दू धर्म की परम्पराओं का मूल वेद ही हैं। वैदिक धर्म प्रकृति-पूजक, बहुदेववादी तथा अनुष्ठानपरक धर्म था।
भारत का सर्वप्रमुख धर्म हिन्दू धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये। वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्राम देवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है। वास्तव में हिन्दू धर्म लघु एवं महान परम्पराओं का उत्तम समन्वय दर्शाता है। एक ओर इसमें वैदिक तथा पुराणकालीन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती है, तो दूसरी ओर कापलिक और अवधूतों द्वारा भी अत्यंत भयावह कर्मकांडीय आराधना की जाती है। एक ओर भक्ति रस से सराबोर भक्त हैं, तो दूसरी ओर अनीश्वर-अनात्मवादी और यहाँ तक कि नास्तिक भी दिखाई पड़ जाते हैं। देखा जाय, तो हिन्दू धर्म सर्वथा विरोधी सिद्धान्तों का भी उत्तम एवं सहज समन्वय है। यह हिन्दू धर्मावलम्बियों की उदारता, सर्वधर्मसमभाव, समन्वयशीलता तथा धार्मिक सहिष्णुता की श्रेष्ठ भावना का ही परिणाम और परिचायक है।
ओम
हिन्दू धर्म के स्रोत
हिन्दू धर्म की परम्पराओं का अध्ययन करने हेतु हज़ारों वर्ष पीछे वैदिक काल पर दृष्टिपात करना होगा। हिन्दू धर्म की परम्पराओं का मूल वेद ही हैं। वैदिक धर्म प्रकृति-पूजक, बहुदेववादी तथा अनुष्ठानपरक धर्म था। यद्यपि उस काल में प्रत्येक भौतिक तत्त्व का अपना विशेष अधिष्ठातृ देवता या देवी की मान्यता प्रचलित थी, परन्तु देवताओं में वरुण, पूषा, मित्र, सविता, सूर्य, अश्विन, उषा, इन्द्र, रुद्र, पर्जन्य, अग्नि, वृहस्पति, सोम आदि प्रमुख थे। इन देवताओं की आराधना यज्ञ तथा मंत्रोच्चारण के माध्यम से की जाती थी। मंदिर तथा मूर्ति पूजा का अभाव था। उपनिषद काल में हिन्दू धर्म के दार्शनिक पक्ष का विकास हुआ। साथ ही एकेश्वरवाद की अवधारणा बलवती हुई। ईश्वर को अजर-अमर, अनादि, सर्वत्रव्यापी कहा गया। इसी समय योग, सांख्य, वेदांत आदि षड दर्शनों का विकास हुआ। निर्गुण तथा सगुण की भी अवधारणाएं उत्पन्न हुई। नौंवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य विभिन्न पुराणों की रचना हुई। पुराणों में पाँच विषयों (पंच लक्षण) का वर्णन है-
सर्ग (जगत की सृष्टि),
प्रतिसर्ग (सृष्टि का विस्तार, लोप एवं पुन: सृष्टि),
वंश (राजाओं की वंशावली),
मन्वंतर (भिन्न-भिन्न मनुओं के काल की प्रमुख घटनाएँ) तथा
वंशानुचरित (अन्य गौरवपूर्ण राजवंशों का विस्तृत विवरण)।
इस प्रकार पुराणों में मध्य युगीन धर्म, ज्ञान-विज्ञान तथा इतिहास का वर्णन मिलता है। पुराणों ने ही हिन्दू धर्म में अवतारवाद की अवधारणा का सूत्रपात किया। इसके अलावा मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा, व्रत आदि इसी काल के देन हैं। पुराणों के पश्चात् भक्तिकाल का आगमन होता है, जिसमें विभिन्न संतों एवं भक्तों ने साकार ईश्वर की आराधना पर ज़ोर दिया तथा जनसेवा, परोपकार और प्राणी मात्र की समानता एवं सेवा को ईश्वर आराधना का ही रूप बताया। फलस्वरूप प्राचीन दुरूह कर्मकांडों के बंधन कुछ ढीले पड़ गये। दक्षिण भारत के अलवार संतों, गुजरात में नरसी मेहता, महाराष्ट्र में तुकाराम, पश्चिम बंगाल में चैतन्य महाप्रभु, उत्तर भारत में तुलसी, कबीर, सूर और गुरु नानक के भक्ति भाव से ओत-प्रोत भजनों ने जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
हिन्दू धर्म की अवधारणाएँ एवं परम्पराएँ
हिन्दू धर्म की प्रमुख अवधारणाएं निम्नलिखित हैं-
ब्रह्म- ब्रह्म को सर्वव्यापी, एकमात्र सत्ता, निर्गुण तथा सर्वशक्तिमान माना गया है। वास्तव में यह एकेश्वरवाद के 'एकोऽहं, द्वितीयो नास्ति' (अर्थात् एक ही है, दूसरा कोई नहीं) के 'परब्रह्म' हैं, जो अजर, अमर, अनन्त और इस जगत का जन्मदाता, पालनहारा व कल्याणकर्ता है।
आत्मा- ब्रह्म को सर्वव्यापी माना गया है अत: जीवों में भी उसका अंश विद्यमान है। जीवों में विद्यमान ब्रह्म का यह अशं ही आत्मा कहलाती है, जो जीव की मृत्यु के बावजूद समाप्त नहीं होती और किसी नवीन देह को धारण कर लेती है। अंतत: मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् वह ब्रह्म में लीन हो जाती है।
पुनर्जन्म- आत्मा के अमरत्व की अवधारणा से ही पुनर्जन्म की भी अवधारणा पुष्ट होती है। एक जीव की मृत्यु के पश्चात् उसकी आत्मा नयी देह धारण करती है अर्थात् उसका पुनर्जन्म होता है। इस प्रकार देह आत्मा का माध्यम मात्र है।
योनि- आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 करोड़ योनियों की कल्पना की गई है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। योनि को आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में जैव प्रजातियाँ कह सकते हैं।
कर्मफल- प्रत्येक जन्म के दौरान जीवन भर किये गये कृत्यों का फल आत्मा को अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। अच्छे कर्मों के फलस्वरूप अच्छी योनि में जन्म होता है। इस दृष्टि से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ योनि है। परन्तु कर्मफल का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति अर्थात् आत्मा का ब्रह्मलीन हो जाना ही है।
स्वर्ग-नरक- ये कर्मफल से सम्बंधित दो लोक हैं। स्वर्ग में देवी-देवता अत्यंत ऐशो-आराम की ज़िन्दगी व्यतीत करते हैं, जबकि नरक अत्यंत कष्टदायक, अंधकारमय और निकृष्ट है। अच्छे कर्म करने वाला प्राणी मृत्युपरांत स्वर्ग में और बुरे कर्म करने वाला नरक में स्थान पाता है।
स्वस्तिकमोक्ष- मोक्ष का तात्पर्य है- आत्मा का जीवन-मरण के दुष्चक्र से मुक्त हो जाना अर्थात् परमब्रह्म में लीन हो जाना। इसके लिए निर्विकार भाव से सत्कर्म करना और ईश्वर की आराधना आवश्यक है।
चार युग- हिन्दू धर्म में काल (समय) को चक्रीय माना गया है। इस प्रकार एक कालचक्र में चार युग-कृत (सत्य), सत त्रेता, द्वापर तथा कलि-माने गये हैं। इन चारों युगों में कृत सर्वश्रेष्ठ और कलि निकृष्टतम माना गया है। इन चारों युगों में मनुष्य की शारीरिक और नैतिक शक्ति क्रमश: क्षीण होती जाती है। चारों युगों को मिलाकर एक महायुग बनता है, जिसकी अवधि 43,20,000 वर्ष होती है, जिसके अंत में पृथ्वी पर महाप्रलय होता है। तत्पश्चात् सृष्टि की नवीन रचना शुरू होती है।
चार वर्ण- हिन्दू समाज चार वर्णों में विभाजित है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। ये चार वर्ण प्रारम्भ में कर्म के आधार पर विभाजित थे। ब्राह्मण का कर्तव्य विद्यार्जन, शिक्षण, पूजन, कर्मकांड सम्पादन आदि है, क्षत्रिय का धर्मानुसार शासन करना तथा देश व धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करना, वैश्यों का कृषि एवं व्यापार द्वारा समाज की आर्थिक आवश्यकताएँ पूर्ण करना तथा शूद्रों का अन्य तीन वर्णों की सेवा करना एवं अन्य ज़रूरतें पूरी करना। कालांतर में वर्ण व्यवस्था जटिल होती गई और यह वंशानुगत तथा शोषणपरक हो गई। शूद्रों को अछूत माना जाने लगा। बाद में विभिन्न वर्णों के बीच दैहिक सम्बन्धों से अन्य मध्यवर्ती जातियों का जन्म हुआ। वर्तमान में जाति व्यवस्था अत्यंत विकृत रूप में दृष्टिगोचर होती है।
चार आश्रम- प्राचीन हिन्दू संहिताएँ मानव जीवन को 100 वर्ष की आयु वाला मानते हुए उसे चार चरणों अर्थात् आश्रमों में विभाजित करती हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। प्रत्येक की संभावित अवधि 25 वर्ष मानी गई। ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति गुरु आश्रम में जाकर विद्याध्ययन करता है, गृहस्थ आश्रम में विवाह, संतानोत्पत्ति, अर्थोपार्जन, दान तथा अन्य भोग विलास करता है, वानप्रस्थ में व्यक्ति धीरे-धीरे संसारिक उत्तरदायित्व अपने पुत्रों को सौंप कर उनसे विरक्त होता जाता है और अन्तत: संन्यास आश्रम में गृह त्यागकर निर्विकार होकर ईश्वर की उपासना में लीन हो जाता है।
चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- ये चार पुरुषार्थ ही जीवन के वांछित उद्देश्य हैं उपयुक्त आचार-व्यवहार और कर्तव्य परायणता ही धर्म है, अपनी बौद्धिक एवं शरीरिक क्षमतानुसार परिश्रम द्वारा धन कमाना और उनका उचित तरीके से उपभोग करना अर्थ है, शारीरिक आनन्द भोग ही काम है तथा धर्मानुसार आचरण करके जीवन-मरण से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही मोक्ष है। धर्म व्यक्ति का जीवन भर मार्गदर्शक होता है, जबकि अर्थ और काम गृहस्थाश्रम के दो मुख्य कार्य हैं और मोक्ष सम्पूर्ण जीवन का अंति लक्ष्य।
चार योग- ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग तथा राजयोग- ये चार योग हैं, जो आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने के मार्ग हैं। जहाँ ज्ञान योग दार्शनिक एवं तार्किक विधि का अनुसरण करता है, वहीं भक्तियोग आत्मसमर्पण और सेवा भाव का, कर्मयोग समाज के दीन दुखियों की सेवा का तथा राजयोग शारीरिक एवं मानसिक साधना का अनुसरण करता है। ये चारों परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि सहायक और पूरक हैं।
चार धाम- उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम- चारों दिशाओं में स्थित चार हिन्दू धाम क्रमश: बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, जगन्नाथपुरी और द्वारका हैं, जहाँ की यात्रा प्रत्येक हिन्दू का पुनीत कर्तव्य है।
प्रमुख धर्मग्रन्थ- हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथ हैं- चार वेद (ॠग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद) तेरह उपनिषद, अठारह पुराण, रामायण, महाभारत, गीता, रामचरितमानस आदि। इसके अलावा अनेक कथाएँ, अनुष्ठान ग्रंथ आदि भी हैं।
सोलह संस्कार
मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह अथवा सत्रह पवित्र संस्कार सम्पन्न किये जाते हैं-

गर्भाधान
पुंसवन (गर्भ के तीसरे माह तेजस्वी पुत्र प्राप्ति हेतु किया गया संस्कार),
सीमोन्तोन्नयन (गर्भ के चौथे महीने गर्भिणी स्त्री के सुख और सांत्वना हेतु),
जातकर्म (जन्म के समय)
नामकरणनिष्क्रमण (बच्चे का सर्वप्रथम घर से बाहर लाना),
अन्नप्राशन (पांच महीने की आयु में सर्वप्रथम अन्न ग्रहण करवाना),
चूड़ाकरण (मुंडन)
कर्णछेदन
उपनयन (यज्ञोपवीत धारण एवं गुरु आश्रम को प्रस्थान)
केशान्त अथवा गौदान (दाढ़ी को सर्वप्रथम काटना)
समावर्तन (शिक्षा समाप्त कर गृह को वापसी)
विवाह
वानप्रस्थ
संन्यास
अन्त्येष्टि
इस प्रकार हिन्दू धर्म की विविधता, जटिलता एवं बहु आयामी प्रवृत्ति स्पष्ट है। इसमें अनेक दार्शनिकों ने अलग-अलग प्रकार से ईश्वर एवं सत्य को समझने का प्रयास किया, फलस्वरूप अनेक दार्शनिक मतों का प्रादुर्भाव हुआ।

शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन बाल और नाखून

शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन बाल और नाखून
भूल कर भी क्यों नहीं काटना चाहिये ?
हिंदुत्व की अधिकतर परंपराओं और रीति-रिवाजों के पीछे एक सुनिश्वित वैज्ञानिक कारण होता है।
आज भी हम घर के बड़े और बुजुर्गों को यह कहते हुए सुनते हैं कि, शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन बाल और नाखून भूल कर भी नहीं काटना चाहिये।
पर आखिर ऐसा क्या कारण है ?
जब हम अंतरिक्ष विज्ञान और ज्योतिष की प्राचीन और प्रामाणिक पुस्तकों का अध्ययन करते तो इन प्रश्रों का बड़ा ही स्पष्ट वैज्ञानिक समाधान प्राप्त होता है। वह यह कि शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन ग्रह-नक्षत्रों की दशाएं तथा अंनत ब्रह्माण्ड में से आने वाली अनेकानेक सूक्ष्मातिसूक्ष्म किरणें मानवीय मस्तिष्क पर अत्यंत संवेदनशील प्रभाव डालती हैं।


यह भी स्पष्ट है कि इंसानी शरीर में उंगलियों के अग्र भाग तथा सिर अत्यंत संवेदनशील होते हैं। कठोर नाखूनों और बालों से इनकी सुरक्षा होती है। इसीलिये ऐसे प्रतिकूल समय में इनका काटना शास्त्रों के अनुसार वर्जित, निंदनीय और अधार्मिक कार्य माना गया है।
कृपया हिंदुत्व के अत्यंत गूढ़ विज्ञान को शेयर करें ... _/|\_
जय हिंदुत्व ...
जय हिन्द ... वन्दे मातरम ...

Tuesday, May 13, 2014

घमौरियां या प्रिकली हीट

गर्मी के मौसम में पसीना आना स्वाभाविक है | इस पसीने को यदि साफ़ न किया जाए तो यह शरीर में ही सूख जाता है और इसकी वजह से शरीर में छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं जिन्हें हम घमौरियां या प्रिकली हीट कहते हैं | घमौरी एक प्रकार का चर्म रोग है जो गर्मियों तथा बरसात में त्वचा पर हो जाता है | इसमें त्वचा पर छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं ,जिनमें हर समय खुजली होती रहती है | घमौरियों से निजात पाने के लिए हम आपको कुछ सरल उपाय बताते हैं -

१- मेंहदी के पत्तों को पीसकर नहाने के पानी में मिला लें | इस पानी से नहाने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं | 

२- देसी घी की पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां मिटती हैं | 

३- शरीर पर मुल्तानी मिटटी का लेप करने से घमौरियां मिटती हैं और इनसे होने वाली जलन और खुजली में भी राहत मिलती है | 

४- नारियल के तेल में कपूर मिला लें | इस तेल से रोज़ पूरे शरीर की मालिश करने से घमौरियां दूर हो जाती हैं | 

५- नीम की पत्तियां पानी में उबाल लें | इस पानी से स्नान करने से घमौरियां मिटती हैं | 


६- तुलसी की लकड़ी पीस लें | इसे पानी में मिलकर शरीर पर मलने से घमौरियां समाप्त हो जाती हैं |

टोपी एवं पगड़ी स्वास्थ्यरक्षक है

टोपी एवं पगड़ी स्वास्थ्यरक्षक है

नियमित ऋतु के मुताबिक अथवा सामान्यतः टोपी या पगड़ी पहनने से बालों के रोग नहीं होते, सिरदर्द नहीं होता, आँख व कान के रोग नहीं होते।

पहले समय में भारत में पगड़ी का बहुत प्रचलन था और सभी वर्गों के लोग इसे धारण करते थे। अंग्रेजों के आगमन के बाद इसमें धीरे-धीरे कमी आयी।
पूर्व काल में हमारे दादा-परदादा नियमित रूप से टोपी या पगड़ी पहनते थे। महिलाएँ हमेशा सिर को ढक कर रखती थी। अतः उन लोगों को समय से पूर्व बाल सफेद होना, सिर के बाल उड़ना, सर्दी होना, आँख, कान, नाक के रोग आदि कम होते थे। आज फैशन के कारण या अज्ञान के कारण सिर खुले रखने से बाल, सिर, आँख, कान, नाक के रोग बहुत बढ़ गये हैं। सिर में हवा लगने से, गरमी एवं बारिश का पानी लगने से अनेक रोग होते हैं।

मोबाइल में सेवा प्रदात्ता

क्या आपको भी आपकी मोबाइल सेवा प्रदात्ता कंपनी इस प्रकार के सन्देश भेजती है ??

क्या सरकार की नज़र या महिला आयोगों की नज़र या फिर बलात्कार होने के बाद मोमबत्ती लेकर महिलाओं की सुरक्षा के हक़ में नौटंकी करने वाले मोमबत्ती ब्रिगेड की तीक्ष्ण दृष्टी इस प्रकार के विज्ञापनों पर नहीं पड़ती है?
आजकल जब ओसतन 8 वर्ष का बालक मोबाइल का इस्तेमाल करता है उसकी मनोस्थिति को ये मोबाइल सेवा प्रदात्ता कम्पनियां किस और मोड़ना चाहती है ?


जो लोग ऑनलाइन पिटीशन दाखिल करना जानते है कृप्या इस प्रकार के विज्ञापनों के खिलाफ ऑनलाइन पिटीशन दाखिल करें ! भारत का अमरीकीकरण होने से बचाये !!http://www.youtube.com/watch?v=Nm8fafTWd3o

हिंदी संक्षेपाक्षर - एक अच्छा विकल्प.

हिन्दी चैनल वालो! हिन्दी में 'राजग' होता है, 'एनडीए' अथवा 'NDA' को अंग्रेजी चैनलों के पास ही रहने दो
राजनीतिक दल/गठबंधन/संगठन :

राजग: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [एनडीए]
संप्रग: संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन [यूपीए]
तेदेपा: तेलुगु देशम पार्टी [टीडीपी]
अन्ना द्रमुक: अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम[ अन्ना डीएमके]
द्रमुक: द्रविड़ मुनेत्र कषगम [डीएमके]
भाजपा: भारतीय जनता पार्टी [बीजेपी]
रालोद : राष्ट्रीय लोक दल [आरएलडी]
बसपा: बहुजन समाज पार्टी [बीएसपी]
मनसे: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [एमएनएस]
माकपा: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीएम]
भाकपा: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीआई]
राजद: राष्ट्रीय जनता दल [आरजेडी]
बीजद: बीजू जनता दल [बीजेडी]
तेरास: तेलंगाना राष्ट्र समिति [टीआरएस]
नेका: नेशनल कॉन्फ्रेन्स
राकांपा : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [एनसीपी]
अस: अहिंसा संघ
असे: अहिंसा सेना
गोजमुमो:गोरखा जन मुक्ति मोर्चा
अभागोली:अखिल भारतीय गोरखा लीग
मगोपा:महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी [एमजीपी]
पामक : पाटाली मक्कल कच्ची [पीएमके] 
गोलिआ:गोरखा लिबरेशन आर्गेनाइजेशन [जीएलओ]


हिंदी संक्षेपाक्षर सदियों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं, मराठी में तो आज भी संक्षेपाक्षर का प्रयोग भरपूर किया जाता है और नये-२ संक्षेपाक्षर बनाये जाते हैं पर आज का हिंदी मीडिया इससे परहेज़ कर रहा है, देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि का उपयोग कर रहा है. साथ ही मीडिया हिंदी लिपि एवं हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को हिंदी के प्रचार में बाधा मानता है, जो पूरी तरह से निराधार और गलत है.

मैं अनुरोध करूँगा कि नए-नए सरल हिंदी संक्षेपाक्षर बनाये जाएँ और उनका भरपूर इस्तेमाल किया जाये, मैं यहाँ कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची देना चाहता हूँ जो हैं तो पहले से प्रचलन में हैं अथवा इनको कुछ स्थानों पर इस्तेमाल किया जाता है पर उनका प्रचार किया जाना चाहिए, आपको कुछ अटपटे और अजीब भी लग सकते हैं, पर जब हम एक विदेशी भाषा अंग्रेजी के सैकड़ों अटपटे शब्दों/व्याकरण को स्वीकार कर चुके हैं तो अपनी भाषा के थोड़े-बहुत अटपटे संक्षेपाक्षरों को भी पचा सकते हैं बस सोच बदलने की ज़रूरत है.


मेरा विनम्र निवेदन:
१. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में अंग्रेजी के अनावश्यक शब्दों का प्रयोग बंद होना चाहिए.
२. जहाँ जरूरी हो अंग्रेजी के शब्दों को सिर्फ देवनागरी में लिखा जाए रोमन में नहीं.
३. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए..

‘‘किसी भी सभ्य देश में विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान नहीं की जाती। विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से छात्रों का मन विकारग्रस्त हो जाता है और वे अपने ही देश में स्वयं को विदेशी सिद्ध करते जान पड़ते हैं।’’ - रवीन्द्रनाथ ठाकुर 

रावण का चमत्कार या राम का...पावर.??

श्री राम के नाम से पत्थरो के तैरने की news जब लंका पहुँची , तब वहाँ की public में काफी gossip हुआ कि भैया जिसके नाम से ही पत्थर तैरने लगें, वो आदमी क्या गज़ब होगा।
इस तरह की बेकार की अफ़वाहों से परेशान रावण ने तैश में आकर announce करवा दिया कि कल रावण के नाम लिखे हुए पत्थर भी पानी में तिराये जायेंगे।
और अगले दिन लंका में public holiday declare कर दिया गया। निश्चित दिन और समय पर सारी population रावण का चमत्कार देखने पहुँच गयी।
Set time पर रावण अपने भाई - बँधुओं , पत्नियों तथा staff के साथ वहाँ पहुँचे और एक भारी से पत्थर पर उनका नाम लिखा गया। Labor लोगों ने पत्थर उठाया और उसे समुद्र में डाल दिया -- पत्थर सीधा पानी के भीतर ! सारी public इस सब को साँस रोके देख रहे थी जबकी रावण लगातार मन ही मन में मँत्रोच्चारण कर रहे थे।
अचानक, पत्थर वापस surface पर आया और तैरने लगा। Public पागल हो गयी , और 'लँकेश की जय' के कानफोड़ू नारों ने आसमान को गुँजायमान कर दिया।
एक public celebration के बाद रावण अपने लाव लश्कर के साथ वापस अपने महल चले गये और public को भरोसा हो गया कि ये राम तो बस ऐसे ही हैं पत्थर तो हमारे महाराज रावण के नाम से भी तिरते हैं।
पर उसी रात को मँदोदरी ने notice किया कि रावण bed में लेटे हुए बस ceiling को घूरे जा रहे थे।
“ क्या हुआ स्वामी ? फिर से acidity के कारण नींद नहीं आ रही क्या ?” eno दराज मे पडी है ले कर आऊँ ? - मँदोदरी ने पूछा।
“ मँदु ! रहने दो , आज तो इज़्ज़त बस लुटते लुटते बच गयी। आइन्दा से ऐसे experiment नहीं करूंगा। " ceiling को लगातार घूर रहे रावण ने जवाब दिया।
मँदोदरी चौंक कर उठी और बोली , “ऐसा क्या हो गया स्वामी ?” रावण ने अपने सर के नीचे से हाथ निकाला और छाती पर रखा , “ वो आज सुबह याद है पत्थर तैरा था ?”
मँदोदरी ने एक curious smile के साथ हाँ मे सर हिलाया।
“ पत्थर जब पानी में नीचे गया था , उसके साथ साथ मेरी साँस भी नीचे चली गयी थी। " रावण ने कहा।
इसपर confused मँदोदरी ने कहा , “ पर पत्थर वापस ऊपर भी तो आ गया था ना । वैसे ऐसा कौन सा मँत्र पढ़ रहे थे आप जिससे पानी में नीचे गया पत्थर वापस आकर तैरने लगा ?”
इस पर रावण ने एक लम्बी साँस ली और बोले ,
“ मँत्र-वँत्र कुछ नहीं पढ़ रहा था बल्कि बार बार बोल रहा था कि 'हे पत्थर ! तुझे राम की कसम, PLEASE डूबियो मत भाई !! "
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राम नाम मेँ है दम !!
बोलो जय श्री राम !!